नासा के साथ कई निजी कंपनियां भी अंतरिक्ष के रहस्य खंगालने में जुटीं
- इस वर्ष 14 बड़े अंतरिक्ष मिशन, मंगल और चांद के अलावा क्षुद्रग्रहों पर टिकी नजर

शीतयुद्ध के दौरान अंतरिक्ष में अमरीका और सोवियत संघ के बीच प्रतिस्पर्धा शुरू हुई थी। फिर इसमें कुछ देश और जुड़े। अब जबसे नासा ने निजी फर्मों को इस क्षेत्र में आने की अनुमति दी है, तब से होड़ तेज हो गई है। भारत, चीन के साथ ही कई देश इसमें शामिल हो गए हैं। तकनीकी उन्नयन के इस दौर में अंतरिक्ष अनुसंधान को और गति मिलने की संभावना भी बढ़ गई है।
1. नए खिलाड़ी आए
वर्ष 2011 में जब से अंतरिक्ष शटल कार्यक्रम समाप्त हुआ तो नासा ने अपने अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर (आइएसएस) भेजने के लिए रूस पर भरोसा जताया है, जो दो दशकों से पृथ्वी की कक्षा में परिक्रमा लगा रहा है। 2020 में एलन मस्क की कम्पनी स्पेस एक्सप्लोरेशन टेक्नोलॉजी कॉर्प या स्पेस एक्स ने रीयूजेबल बूस्टर्स के साथ पहला दल भेजा, जिसकी लागत काफी कम आई थी। अब बोइंग ने अंतरिक्ष यान को मौजूदा एटलस रॉकेट पर उड़ान के लिए डिजाइन किया है।
ISS : अंतरिक्ष स्टेशन पर मंडरा रहा नया खतरा
2. बढ़ी प्रतिस्पर्धा के फायदे
स्पेसएक्स ने वर्ष 2012 में पहली निजी अंतरिक्ष उड़ान शुरू की। इसके बाद रिचर्ड ब्रैन्सन की वर्जिन गेलैक्टिक होल्डिंग और अमेजन की ब्लू ओरिजन भी इस दौड़ में शामिल हो गई। इस प्रतिस्पर्धा से अंतरिक्ष में जाने का खर्च कम हो रहा है। स्पेस एक्स इस वर्ष अमरीकी उद्यमी और तीन अन्य यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजेगा। निजी स्पेस स्टेशन की योजना बना रहे एक्सियोम भी 2022 में अपना मिशन भेजेगा। मस्क की कम्पनी 2023 में एक जापानी अरबपति और उसके मेहमानों को चंद्रमा पर भेजेगी।
3. भारत भी पीछे नहीं
भारत 2021 या 22 में चंद्रमा पर मानव रहित यान भेजेगा। भारत अपने अंतरिक्ष यान गगनयान की नियोजित उड़ान के लिए अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षण भी दे रहा है। चीन चांद पर एक अनुसंधान स्थल बनाने पर विचार कर रहा है। संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) इसी वर्ष मंगल की कक्षा में वैज्ञानिक उपग्रह भेजेगा।
Amazing Fact : जानिए शुक्र ग्रह पर क्यों होता है दिन से छोटा वर्ष
4. चंद्रमा ही क्यों?
1960 से लेकर अब तक चंद्रमा पर पहुंचने की प्रतिस्पद्र्धा के चलते अंतरिक्ष के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई। सौरमंडल और चंद्रमा की उत्पत्ति को लेकर चल रही खोज में नए तथ्य सामने आने की संभावना बढ़ी है। चांद पर अमरीका के पहले अपोलो मिशन की लागत 25.8 बिलियन डॉलर से बढकऱ अब 260 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई।
5. इतनी दूर क्यों
गहन अंतरिक्ष खोज से अन्य ग्रह पर जीवन संबंधी संकेतों का पता चलता है। यह भी पता चलता है कि दुर्गम परिस्थितियों में इंसान कैसे रह सकता है। सौरमंडल जैसे अभियान से लेजर संप्रेषण और विकिरण परीक्षण जैसी तकनीकी विकसित होंगी। नासा और एलन मस्क मंगल पर ऐसे शहर की परिकल्पना कर रहे हैं, जिसका वजूद अपने गुरुत्वाकर्षण बल पर टिका हो। वर्ष 2021 के प्रारंभ में चीन और अमरीका दोनों ने लाल ग्रह पर उतारने के लिए रोबोट रोवर्स तैयार किए हैं।
6. दुर्लभ खनिज पर नजर
जैसा विज्ञान कथाओं में उल्लेख मिलता है, पिंडों पर खनन से दुर्लभ खनिज की संभावना खोजी जा रही है। जापान ने 2019 में ऐसे एक खगोलपिंड की जांच की थी। नासा ने 2020 में ऐसा ही किया। ग्रहों की सतहों के नमूने लाने के भी बड़े वैज्ञानिक लाभ हैं। इससे अंतरिक्ष यात्रा सहज बन सकती है।
नासा ढूंढ रहा है चांद पर यात्रियों को उतारने की जगह
7. निगरानी से लेकर इंटरनेट तक
1957 में रूस ने स्पूतनिक 1 लॉन्च किया था। तब से लेकर आज तक उपग्रही तकनीक मोबाइल फोन से लेकर निगरानी तंत्र तक विकसित हो चुकी है। अब लागत भी कम आने लगी है। मस्क और बेजोस पृथ्वी की निचली कक्षा में हजारों छोटे उपग्रह लॉन्च करने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं ताकि तेज रफ्तार इंटरनेट सुलभ हो सके।
Hindi News अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें (Hindi News App) Get all latest Science and Tech News in Hindi from Politics, Crime, Entertainment, Sports, Technology, Education, Health, Astrology and more News in Hindi