विज्ञान और टेक्नोलॉजी

जलवायु अध्ययन में भी कारगर स्कैट सैट-1

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का मौसम उपग्रह ScatSat-1 भारत ही नहीं विश्व समुदाय के लिए कारगर साबित हो रहा है।

Oct 10, 2017 / 11:48 pm

जमील खान

ScatSat-1

बेंगलूरु. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का मौसम उपग्रह स्कैटसैट-1 भारत ही नहीं विश्व समुदाय के लिए कारगर साबित हो रहा है। मौसम की सटीक भविष्यवाणी और चक्रवाती तूफानों को टेस करने के लिए भेजा गया यह उपग्रह जलवायु अध्ययन में भी अहम भूमिका निभा रहा है। इस उपग्रह को गत वर्ष पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया था।

इसरो की ओर से दी जानकारी के अनुसार ओशियनसैट-2 की जगह भेजे गए केयू बैंड स्कैटेरोमीटर युक्त स्कैटसैट-1 का वैज्ञानिक उपकरण 1800 किलोमीटर चौड़ाई के साथ एक दिन में धरती के 90 फीसदी भू-भाग की स्कैनिंग करता है। ओशियनसैट मिशन के अनुभवों के आधार पर इस उपग्रह के उपकरणों में कुछ विशेष परिवर्तन किए गए हैं, जिससे इसकी उपयोगिता और बढ़ गई है। मुख्य रूप से सेंसर और बैकस्कैटर में विशेष फीचर का इस्तेमाल किया गया है। हालांकि, इस उपग्रह का प्रमुख काम वैश्विक स्तर पर विशाल सागर का अध्ययन करते हुए 25 एवं 50 किमी क्षेत्र वाले ग्रिड में समुद्री सतह पर हवाओं के वेग से जुड़े उत्पाद तैयार करना है लेकिन, स्कैट सैट-१ इसके अलावा भी कई मूल्यवॢधत उत्पाद तैयार कर रहा है। ये उत्पाद आपदा नियंत्रण प्रयासों के साथ-साथ नई जानकारियां दे रहे हैं जिनका विश्लेषण हो रहा है। इनमें प्रमुख हैं 6.25 किमी वाले ग्रिड पर हाई रिजोल्यूशन विंड के बारे में सटीक जानकारी, हवाओं की गति का दैनिक विश्लेषण, हाई रिजोल्यूशन सिग्माउत्पाद और धु्रवीय क्षेत्रों की निगरानी आदि ।

चक्रवाती तूफानों की भविष्यवाणी करना सरल हुआ
इसरो ने कहा है कि मैथ्यू, हिमा, नीना, नाडा, वर्धा, मारूत, मूरा, हारवी और इरमा चक्रवाती तूफानों के दौरान स्कैट सैट-1 ने बेहद अहम आंकड़े उपलब्ध कराए। इस दौरान स्कैटसैट-1 का ऑब्जर्वेशन अत्यंत मूल्यवान साबित हुआ। स्कैट सैट-1 से मौसम पूर्वानुमान के साथ चक्रवाती तूफानों को ट्रैक करना और उसकी समय रहते भविष्यवाणी करना काफी सरल हुआ है। इस उपग्रह के बैकस्कैटर उपकरण से प्राप्त आंकड़े खेतों की नमी, नदियों के जलस्तर और सिंचाई की स्थिति के बारे में भी सटीक जानकारी दे रहे हैं। वहीं ध्रुवों पर हिमपरतों के भी अध्ययन में भी यह कारगर है। दुनिया का 90 फीसदी ताजा पानी अंटार्कटिका में है और जलवायु में परिवर्तन के अध्ययन का यह एक सर्वश्रेष्ठ परीक्षण बेड है। इसरो ने कहा है कि इस उपग्रह के आंकड़ों का उपयोग रोजाना राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय उपयोगकर्ता बड़े पैमाने पर कर रहे हैं।

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