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वैज्ञानिकों ने लगा लिया पता की आखिर हम झूठ क्यों बोलते हैं?

locationजयपुरPublished: Sep 20, 2020 02:48:00 pm

Submitted by:

Mohmad Imran

हम जब भी परिस्थितियों और तथ्यों में कोई विसंगति देखते हैं तो हमें झूठ का आभास होता है

वैज्ञानिकों ने लगा लिया पता की आखिर हम झूठ क्यों बोलते हैं?

वैज्ञानिकों ने लगा लिया पता की आखिर हम झूठ क्यों बोलते हैं?

झूठ बोलने का एक कारण है कि हम विवादित बयानों के जरिए अन्य लोगों को बुरे इरादों वाला या उनके चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लगाने का प्रयास करते हैं ताकि स्वयं के दोष छुपा सकें। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार यह ‘सेल्फ सर्विंग ह्यूमन टेंडेंसी’ (Selff Serving Human Tenddency) है।
वैज्ञानिकों ने लगा लिया पता की आखिर हम झूठ क्यों बोलते हैं?
अक्सर हम किसी त्रुटि या अशुद्धि को झूठ मान लेते हैं लेकिन यह जरूरी नहीं कि वास्तव में सामने वाले व्यक्ति का इरादा आपको धोखा देने का ही हो। झूठ का तात्पर्य गुमराह करने के इरादे से बोली गई ऐसी बात से है जो तथ्यों से परे है। खासकर झूठ उस स्थिति में बोला जाता है जब हमें दूसरों को किसी ऐसी चीज के बारे में यकीन दिलाना हो जो हम जानते हैं कि सच नहीं है। लेकिन सत्य भी हमेशा स्पष्ट नहीं होता है। तर्क करने वाले लोग तथ्यों के एक ही पहलू को देखते हैं इसलिए उन्हें झूठ ही लगता है। हम जब भी परिस्थितियों और तथ्यों में कोई विसंगति देखते हैं तो हमें झूठ का आभास होता है।
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आदत क्यों हो जाती?
झूठ हमें आकर्षित क्यों करता है? इसका एक कारण तो यह है कि झूठ बोलने की हमारी सेल्फ सर्विंग ह्यूमन टेंडेंसी इतनी सामान्य है कि मनोवैज्ञानिकों ने इसे एक रोचक नाम दिया है- ‘ द फंडामेंटल अट्रिब्यूशन एरर’ यानी मौलिक रूप से गलती थोपने की आदत। यह हमारे भीतर इतनी गहरी बैठ गई है कि हम हर किसी के साथ झूठ बोलने के अभ्यस्त हो गए हैं। ऐसा हम ईमेल, सोशल मीडिया, वाहन बीमा राशि के समय, बच्चों के साथ, दोस्तों और यहां तक कि अपने जीवनसाथी के साथ भी बेवजह लगातार झूठ बोलते रहते हैं।

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ट्रंप रोज बोलते 22 झूठ
अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अक्सर भाषणों में फैक्ट्स को गलत तरीके से प्रस्तुत करते हैं। वाशिंगटन पोस्ट फैक्ट-चेकर्स ने उनके असत्य बयानों को खंगाला तो पता चला कि वे औसतन लगभग 22 झूठ प्रतिदिन झूठ बोलते हैं। 2008 के एक अध्ययन में सामने आया कि सच्ची भावनाओं को छिपाना आसान नहीं। जबकि हम स्वाभाविक रूप से झूठ नहीं बोल सकते। ऐसे ही 2014 में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि धोखा या झूठ किसी को अस्थायी रूप से थोड़ा और रचनात्मक होने के लिए प्रेरित कर सकता है।

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