इंसान के खून में माइक्रोप्लास्टिक
दुनिया में पहली बार वैज्ञानिकों ने पाया है कि इंसान के खून में माइक्रोप्लास्टिक है। इस खुलासे ने सभी को हैरान कर दिया है। दरअसल, एम्स्टर्डम की व्र्ज यूनिवर्सिटी और द एम्सटर्डम यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर ने शोधकर्ताओं ने 22 लोगों के खून की जांच की। ये वो लोग हैं जिन्होंने ब्लड डोनैट किया था। जब इनके खून के नमूनों का अध्ययन किया गया। इसमें पॉलीप्रोपाइलीन, पॉलीस्ट्रीन, पॉलीमिथाइल मेथाक्रायलेट, पॉलीथाइलिन और पॉलीथाइलिन टेरिप्थेलेट जैसे प्लास्टिक के कणों की जांच की गई।
80 फीसदी के खून में Microplastic
इस अध्ययन में पाया गया कि 22 में से 17 व्यक्तियों के खून में प्लास्टिक की अच्छी खासी मात्रा थी। अर्थात कुल 80 फीसदी के खून में माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है। इस अध्ययन को एनवायरनमेंट इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित किया गया था।
दुनिया में पहली बार वैज्ञानिकों ने पाया है कि इंसान के खून में माइक्रोप्लास्टिक है। इस खुलासे ने सभी को हैरान कर दिया है। दरअसल, एम्स्टर्डम की व्र्ज यूनिवर्सिटी और द एम्सटर्डम यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर ने शोधकर्ताओं ने 22 लोगों के खून की जांच की। ये वो लोग हैं जिन्होंने ब्लड डोनैट किया था। जब इनके खून के नमूनों का अध्ययन किया गया। इसमें पॉलीप्रोपाइलीन, पॉलीस्ट्रीन, पॉलीमिथाइल मेथाक्रायलेट, पॉलीथाइलिन और पॉलीथाइलिन टेरिप्थेलेट जैसे प्लास्टिक के कणों की जांच की गई।
80 फीसदी के खून में Microplastic
इस अध्ययन में पाया गया कि 22 में से 17 व्यक्तियों के खून में प्लास्टिक की अच्छी खासी मात्रा थी। अर्थात कुल 80 फीसदी के खून में माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है। इस अध्ययन को एनवायरनमेंट इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित किया गया था।
सबसे अधिक पाया गया PET
इस टेस्ट में ये सामने आया कि सबसे अधिक PET की मात्रा थी। इसके बाद दूसरे नंबर पर पॉलीस्टाइरिन, तीसरे पर पॉलीथायलिन की मात्रा पाई गई। पॉलीथायलिन का इस्तेमाल प्लास्टिक बैग बनाने के लिए किया जाता है। इस अध्ययन से स्पष्ट है कि माइक्रोप्लास्टिक कहीं भी, यहाँ तक कि इंसानों के शरीर में भी घुस सकते हैं।
मानव कोशिकाओं को पहुंचाते हैं नुकसान
प्रयोगशाला में भी ये पाया गया था कि माइक्रोप्लास्टिक्स मानव कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है। बता दें कि लोग पहले से ही भोजन और पानी के माध्यम से छोटे कणों का उपभोग करते रहे हैं। कई शोधकर्ताओं ने तो शिशुओं और वयस्कों के मल में भी माइक्रोप्लास्टिक पाया है।
इस टेस्ट में ये सामने आया कि सबसे अधिक PET की मात्रा थी। इसके बाद दूसरे नंबर पर पॉलीस्टाइरिन, तीसरे पर पॉलीथायलिन की मात्रा पाई गई। पॉलीथायलिन का इस्तेमाल प्लास्टिक बैग बनाने के लिए किया जाता है। इस अध्ययन से स्पष्ट है कि माइक्रोप्लास्टिक कहीं भी, यहाँ तक कि इंसानों के शरीर में भी घुस सकते हैं।
मानव कोशिकाओं को पहुंचाते हैं नुकसान
प्रयोगशाला में भी ये पाया गया था कि माइक्रोप्लास्टिक्स मानव कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है। बता दें कि लोग पहले से ही भोजन और पानी के माध्यम से छोटे कणों का उपभोग करते रहे हैं। कई शोधकर्ताओं ने तो शिशुओं और वयस्कों के मल में भी माइक्रोप्लास्टिक पाया है।