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हॉलीवुड फिल्म ‘इंसेप्शन’ की तरह वैज्ञानिकों ने सपनों में जाकर रियल टाइम में बातें की

locationजयपुरPublished: Feb 21, 2021 04:20:23 pm

Submitted by:

Mohmad Imran

सपने देखते हुए पूछे गए 158 सवालों के18.6 फीसदी सही जवाब मिले

हॉलीवुड फिल्म 'इंसेप्शन' की तरह वैज्ञानिकों ने सपनों में जाकर रियल टाइम में बातें की

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क्रिस्टोफर नोलन द्वारा निर्देशित हॉलीवुड फिल्म ‘इन्सेप्शन’ (Inception) में लियोनार्डो डिकैप्रियो (Leonardo D’caprio) दूसरों के सपनों में प्रवेश कर उनसे बातचीत करने और उनके अवचेतन में छिपे रहस्यों को चुराने का काम करता है। अब लगता है यह साइंस फैंटेसी वास्तविकता के करीब पहुंच गई है। पहली बार, वैज्ञानिकों ने स्पष्ट सपने देखने वाले लोगों के साथ उसी अवस्था में नए सवाल पूछे और गणित से जुड़े प्रश्न हल करने को कहा। इन सभी लोगों को मालूम था कि वे सपने देख रहे हैं। चार प्रयोगशालाओं और 36 प्रतिभागियों पर किए इस शोध का निष्कर्ष है कि इंसान गहरी नींद में सपने देखने के दौरान भी असल दुनिया की से जटिल जानकारी प्राप्त कर उन्हें विश्लेषित कर सकते हैं। विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय, मैडिसन के न्यूरोसाइंटिस्ट बेंजामिन बेयर्ड नींद और सपने का अध्ययन करते हैं। उनका कहना है कि यह शोध नींद की मूलभूत परिभाषाओं को चुनौती देता है। वे कहते हैं, नींद को एक ऐसी अवस्था के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें मस्तिष्क का संपर्क बाहरी दुनिया से समाप्त हो जाता है।
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चौथी सदी में हुई थी शुरुआत
स्पष्ट सपने (Lucid Dreaming) को चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में यूनानी दार्शनिक अरस्तू (Aristotle) के लेखों में सबसे पहले उल्लेख मिलता है। इसके बाद 1970 के दशक से वैज्ञानिकों ने नींद की सबसे गहरी अवस्था (रैपिड आइ मूवमेंट या REM Sleep Dreaming) जब सबसे अधिक सपने आते हैं, कि गहराई से पड़ताल शुरू की। शोध के दौरान, प्रत्येक दो में से एक व्यक्ति को आकर्षक सपना आया, लगभग 10 फीसद लोगों ने महीने में कम से कम एक बार स्पष्ट सपनों का अनुभव किया। लेकिन ये बात दुर्लभ बात है कि व्यक्ति गहरी नींद में लगातार सपने देखते हुए भी वास्तविक दुनिया की जानकारी को समझने की क्षमता रखता है, यहां तक कि थोड़े प्रशिक्षण के बाद इसे एक सीमा तक नियंत्रित भी कर सकता है।

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चार देशों की टीमों ने किया शोध
फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड्स और अमरीका में वैज्ञानिकों की चार स्वतंत्र टीमों ने हाल ही इसी शोध में आगे बढ़ते हुए सपनों के दौरान व्यक्ति से दो-तरफा जटिल संचार (Two-Way Communication) स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। उन्होंने सोए हुए लोगों से ऐसे सवाल और बातें की जो उन्होंने पहले नहीं सुने थे। उन्होंने अनुभवी स्पष्ट सपने देखने वाले 36 स्वयंसेवकों पर यह अध्ययन किया। शोधकर्ताओं ने पहले प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया ताकि जब वे सपने देख रहे हों तो ध्वनियों, रोशनी या अंगुली के इशारे से बता सकें। अलग-अलग समय पर नींद के सत्रों का अध्ययन किया गया। संवाद करने के लिए बोले गए सवालों से लेकर चमकती रोशनी तक का उपयोग किया गया था। स्लीपर्स को कोई आकर्षक सपना देखने पर संकेत देने के लिए कहा गया था, विशेष रूप से अपनी आंखों और चेहरे को घुमाकर वे उस समय पूछे जा रहे सवालों के जवाब दे रहे थे।

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जैसे-जैसे प्रतिभागी सोते गए, वैज्ञानिकों ने उनके मस्तिष्क की गतिविधियों, आंखों की गति और चेहरे की मांसपेशियों के संकुचन पर नजर रखी। इसके लिए प्रतिभागियों को इलेक्ट्रोडों के साथ इलेक्ट्रोएन्सेफ्लोग्राम हेलमेट पहनाया गया। कुल 57 सत्रों में से, छह व्यक्तियों ने संकेत दिया कि उन्होंने 15 सत्रों में स्पष्ट सपने देखे थे। इस दौरान इन लोगों ने सिखाए गए संकेतों का उपयोग किया, इनमें मुस्कुराना, भौंकना, अपनी आंखों को कई बार हिलाना या जर्मन लैब में मोर्स कोड से मेल खाने वाले पैटर्न में अपनी आंखों को हिलाना आदि शामिल था।
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18.6 फीसदी ने दिया सही जवाब
शोधकर्ताओं ने स्पष्ट सपने देखने वालों से 158 सवाल पूछे। 36 वॉलंटीयर्स में से 18.6 फीसदी ने सही जवाब दिए। शोधकर्ताओं ने पाया कि स्पष्ट सपने देखने वालों ने केवल 3.2 फीसद प्रश्नों का गलत उत्तर दिया जबकि 17.7 फीसद उत्तर स्पष्ट नहीं थे और 60.8 फीसद सवालों के जवाब नहीं मिल सके। शोधकर्ताओं का कहना है कि ये नंबर संचार को दर्शाते हैं, भले ही मुश्किल हो, लेकिन गहरी नींद की अवस्था में लगातार सपने देखने के दौरान भी दो-तरफा संचार संभव है।

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आघात, चिंता और अवसाद से मिलेगी राहत
सपनों का अध्ययन करने वाले विशेषज्ञ और नॉर्थवेस्ट यूनिवर्सिटी में शोध के प्रमुख लेखक करेन कोंकोली कहते हैं कि भविष्य में इस तकनीक का इस्तेमाल लोगों के सपनों को प्रभावित करने के लिए किया जा सकता है ताकि वे आघात, चिंता और अवसाद से बेहतर तरीके से निपट सकें। सपनों के दौरान लोगों के विचारों को बदलना अब भी किसी विज्ञान कथा से कम नहीं है, फिर भी सपने देख रहे लोगों से यूं बातें करना एक महत्वपूर्ण कदम है। भविष्य में इस तकनीक के जरिए टेलीफोन का उपयोग करके या किसी अन्य ग्रह पर एक अंतरिक्ष यात्री से बात करने के लिए भी किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने सपनों की दुनिया में भी लोगों के साथ बातचीत करने का एक तरीका खोज निकाला है।

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ताकि एस्ट्रोनॉट से बात कर सकें
केन पॉलर ने कहा कि हमारा यह परीक्षण दरअसल, दूसरे ग्रह पर गए किसी अंतरिक्ष यात्री से बात करने का तरीका खोजने के लिए किया गया है। लेकिन इस परीक्षण में तथाकथित दुनिया दिमाग में ही मौजूद है जो मस्तिष्क में संग्रहीत यादों के आधार पर गढ़ी गई है। शोधकर्ताओं के अनुसार इस परीक्षण की सफलता ने भविष्य में दिमाग में गहरी बसी यादों के बारे में और अधिक जानने के लिए दरवाजा खोलने का काम किया है। इस शोध में अमरीका की नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के अलावा, फ्रांस के सोरबोन विश्वविद्यालय, जर्मनी के ओस्नाब्रुक विश्वविद्यालय और नीदरलैंड के रेडबॉड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की टीम ने भी सहयोग किया।

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अध्ययन का निष्कर्ष
नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी की पीएचडी छात्रा और शोध की लेखिका करेन कोंकोली ने कहा कि जिन लोगों के साथ आसानी से टू-वे कम्युनिकेशन स्थापित हुआ उन्हें लगातार आकर्षक और मीठी यादों से जुड़े सपने आ रहे थे। कुल मिलाकर, शोधकर्ताओं ने पाया कि निर्देशों का पालन करते हुए सपने देखते हुए लोगों ने आसान गणितीय सवालों के जनाब, पूछे गए प्रश्नों के हां या न में जवाब और अलग-अलग संवेदी उत्तेजनाओं के बीच अंतर बताए। आंखों की मूवमेंट का उपयोग करके या चेहरे की मांसपेशियों के सहयोग से वे सभी प्रश्नों के उत्तर दे रहे थे। शोधकर्ताओं ने इसे ‘इंटरएक्टिव ड्रीमिंग’ यानी ‘संवादी सपने’ कहा। कोंकोली का कहना है कि इससे अनिद्रा, नींद का बार-बार टूटना और लगातार बुरे सपने आने जैसी स्लीपिंग प्रॉब्लम्स से लोगों को छुटकारा दिलाने में इस्तेमाल किया जा सकता है।

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