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वैज्ञानिकों ने खोजा 2400 डिग्री सेल्सियस से धधकता ग्रह, जिस पर होती है पिघले लोहे की बरसात

Published: Mar 16, 2020 07:28:17 pm

Submitted by:

Vivhav Shukla

वैज्ञानिकों ने खोजा अनोखा ग्रह
यहां पानी की जगह बरसता है लोहा

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नई दिल्ली। ‘बारिश’ शब्द का मतलब हमारे लिए पानी से है, क्योंकि हमारे यहां यानी पृथ्वी पर बारिश पानी के रूप में होती है। पृथ्वी की सतह से पानी वाष्पित होकर ऊपर जाता है और भी पानी की बूंदों के रूप में पुनः वापस आ जाता है। लेकिन हमारे ब्रह्माण्ड में एक ऐसा भी ग्रह है जहां पानी नहीं बल्कि लोहा बरसता है।ये बात सुनकर आपको हैरानी हो रही होगी लेकिन ये सच है।

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दरअसल, स्पेन के इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स ऑफ कैनरी आइलैंड्स ( Institute of Astrophysics of the Canary Islands) के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे ग्रह का पता लगाया है जहां हर शाम को पिघले लोहे की बरसात होती है। इस अनोखे ग्रह का नाम एक्सोप्लेनेट डब्ल्यूएएसपी-76बी (Exoplanet WASP-76b) है। एक्सोप्लैनेट वे ग्रह होते हैं जो सौरमंडल के बाहर मौजूद होते हैं। ये ग्रह सूर्य की जगह किसी और तारे की परिक्रमा करते हैं।
वहीं स्विट्जरलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ जिनेवा (University of Geneva in Switzerland) के शोधकर्ताओं ने बताया कि डब्ल्यूएएसपी-76बी पृथ्वी से बहुत दूर है। उन्होंने बताया इस ग्रह से हमारे यहां प्रकाश पहुंचने में भी 640 साल लग जाएगा। ऐसे में इसकी दूरी का अंदाजा आसानी से लगाया जै सकता है।

क्यों होती है लोहे की बारिश?

लोहे की बारिश होने की वजह इस ग्रह (exoplanet WASP-76b) का अत्यधिक गर्म होना है। यहां दिन में तापमान 2400 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, जिसके कारण लोहे का भी वाष्पीकरण हो जाता है। इसके बाद रात में ग्रह उतना ही ठंडा हो जाता है। और लोहा वाष्प के जरिए संघनित होकर बरसने लगता है।

कैसे लगा इस ग्रह का पता?

वैज्ञानिकों ने चिली के अटाकामा रेगिस्तान में ईएसओ के उच्च रिजॉल्यूशन स्पेक्ट्रोग्राफका उपयोग करते हुए इस ग्रह का पता लगाया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस ग्रह पर रात और दिन के तापमान में बहुत ज्यादा अंतर है। इसे समझना किसी पहेली से कम नहीं है। उन्होंने बताया कि इस ग्रह की एक खासियत यह है कि यहां सुबह के समय रात में हुई ‘लोहे की बारिश’ के सुबूत दिखाई ही नहीं देते हैं। जो किसी चमत्कार से कम नहीं है।
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