ऐसे बना रहे मिनटों में हीरे
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में हीरे बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय वैज्ञनिकों की यह टीम ‘डायमंड एनविल सेल’ नामक एक छोटे उपकरण का उपयोग कर रही है। इस उपकरण में दो हीरे एक-दूसरे के बिल्कुल आमने-सामने लगे हुए हैं जो खास तकनीक की मदद से अत्यंत उच्च दबाव पैदा करते हैं जो एरिजोना में कैनाइन डियाब्लो में क्रेटर बनाने जितने दबाव के बराबर हैं। इस तकनीक की बदौलत अब वैज्ञानिक कमरे के तापमान में मिनटों में इन कीमती क्रिस्टल्स को बनाने में सक्षम हैं।
640 अफ्रीकी हाथियों जितना दबाव डाला
एएनयू और आरएमआइटी विश्वविद्यालय (ANU & RMIT Universities) के वैज्ञानिकों ने अत्यंत कठोर पत्थर बनाने के लिए एक बैले शू पर 640 अफ्रीकी हाथियों के बराबर सुपर हाई प्रेशर उत्पन्न करने के लिए डायमंड एविल सेल का इस्तेमाल किया। इससे डिवाइस के कार्बन परमाणुओं पर अप्रत्याशित प्रतिक्रिया हुई। एएनयू रिसर्च स्कूल ऑफ फिजिक्स के प्रोफेसर जोडी ब्रैडबी ने बताया कि प्राकृतिक रूप से हीरे पृथ्वी की कम से कम 150 किमी की गहराई में करीब 1000 डिग्री सेल्सियस के अत्यधिक तापमान और उच्च दबाव पर अरबों वर्षों की रासायनिक प्रक्रिया के दौरान बनते हैं। उन्होंने कहा कि इस उच्च दबाव ने शूज के कार्बन पर इतना दबाव पैदा किया कि परमाणुओं में बदल गया और अंतत: लोंसडेलाइट और सामान्य हीरे में तब्दील हो गया। लेकिन सामान्य हीरे की तुलना में लोंसडेलाइट हीरे दुर्लभ हैं क्योंकि वे आमतौर पर उन स्थानों पर बनते हैं जहां कभी कोई उल्कापिंड (metior) टकराया हो।सामान्य हीरे से 58 फीसदी ज़्यादा कठोर
शोधकर्ताओं ने इस स्टडी को जर्नल स्मॉल में प्रकाशित किया है। उन्होंने नमूनों की जांच करने के लिए उन्नत इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल किया और पाया कि हीरे शत-प्रतिशत शुद्ध थे। उन्हें यह भी उम्मीद है कि इस तकनीक का उपयोग लोंसडेलाइट जैसे दुर्लभ हीरों के लिए किया जा सकेगा, जो नियमित हीरे की तुलना में 58 फीसदी तक दुर्लभ और ज्यादा कठोर होते हैं। साथ ही अब हीरों का लैब में ही उत्पादन किया जा सकता है। लोंसडेलाइट हीरों में अल्ट्रा सॉलिट मैटीरियल्स को भी काटने की क्षमता होती है। टीम की वरिष्ठ प्रोफेसर ब्रैडबाइ ने बताया कि जो हीरा उन्होंने बनाया है वह नैनो क्रिस्टलाइन फॉर्म में है इसलिए यह सामान्य हीरे से ज्यादा कठोर और अपने से कई गुना जटिल मटीरियल को काटने में सक्ष्म भी है।