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छोटे उपग्रहों से हल होंगे एशिया-प्रशांत के मसले

Published: Nov 18, 2017 07:22:21 pm

जापान की शिक्षा मामी ओयामा ने कहा कि छोटे उपग्रहों के आंकड़े आम जनता से जुड़े मुद्दों को हल करने में काफी मददगार साबित होंगे।

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बेंगलूरु। एशिया-प्रशांत क्षेत्रीय अंतरिक्ष एजेंसी फोरम (एपीआर सैफ) की २४ वीं बैठक यहां शुक्रवार को संपन्न हो गई। करीब 10 वर्षों के अंतराल पर (वर्ष २००७ के बाद) बेंगलूरु में आयोजित इस चार दिवसीय सम्मेलन के दौरान आम जनता की समस्याओं के हल के लिए छोटे उपग्रहों के निर्माण पर बल दिया गया। सदस्य देश साझेदारी के जरिए छोटे उपग्रहों का निर्माण करेंगे।

सम्मेलन के आखिरी दिन संवाददाताओं से बातचीत करते हुए भारतीय अंतरिक्ष अुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एवं एपीआर सैफ के सह अध्यक्ष व जापान की शिक्षा और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी निदेशक मामी ओयामा ने कहा कि छोटे उपग्रहों के आंकड़े आम जनता से जुड़े मुद्दों को हल करने में काफी मददगार साबित होंगे। बैठक में सदस्य देशों के बीच शैक्षणिक गतिविधियों को बढ़ाने तथा मानव संसाधन विकास में अंतरिक्षीय सुविधाओं के अधिकतम उपयोग पर सहमति बनी। किरण कुमार ने कहा कि बैठक में यह फैसला किया गया कि हर देश में
अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन के उपयोग तथा छोटे उपग्रहों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाएगा। फोरम धान तथा अन्य फसलों की निगरानी, वैश्विक स्तर पर वर्षा की निगरानी, आग लगने वाले स्थानों, धुंध की निगरानी और आपदा प्रबंधन में अंतरिक्ष तकनीक को सदस्य देशों में बढ़ावा देगा।

इस बार बैठक में सदस्य देशों ने रिकॉर्ड संख्या में भागीदारी की। प्रमुख रूप से जापान, रूस, फ्रांस और इजरायल के अलावा दक्षिण कोरिया, थाइलैंड, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया के अंतरिक्ष एजेंसी प्रमुख बैठक में शामिल हुए। लगभग 600 प्रतिनिधि इस बैठक में शामिल हुए जिसमें से आधे विदेशी प्रतिनिधि थे। बैठक में संयुक्त राष्ट्र के आउटर स्पेस मामलों के कार्यालय ने भी भागीदारी की जबकि दो जापानी अंतरिक्ष यात्री चाकी मुकाई और कोइची वाकाता शामिल हुईं।

 

‘कूलिंग’ घटाएगी बिजली के बिल
क्या आपने कभी सोचा है कि आपके मकान में एयर कंडीशनर बिना बिजली के काम कर सकता है? मगर अमेरिका के स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि हां, ऐसा हो सकता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि ऐसा रेडिएटिव स्काई कूलिंग की तकनीक से संभव है। कूलिंग टूल एक नई कोटिंग सामग्री से विकसित किया गया है। शोध रिपोर्ट के प्रमुख सह-लेखक यानी मुंबई में जन्मे आस्वथ रमन ने कहा, रेडिएटिव स्काई कूलिंग हमारे वातावरण की प्राकृतिक संपत्ति का लाभ उठाती है। यदि आप गर्मी को अवरक्त विकिरण के रूप में किसी ठंडी चीज में डाल सकते हैं, जैसे कि बाहरी अंतरिक्ष तो आप बिजली के बिना किसी भी एक इमारत को ठंडा कर सकते हैं। इसके बाद यह पूरे परिवेश में वायु तापमान को शांत करता है और गैर-वाष्पीकरणीय रास्ता प्रदान करता है।
इस आविष्कार को एक अत्यंत पतली बहुस्तरित सामग्री से बनाया गया है। साथ ही इसको विकसित करने का श्रेय रमन और सह-कार्यकर्ता एली गोल्डस्टीन और शानुई फैन को जाता है। वर्ष 2014 में इसका पहला परीक्षण किया गया था। यह सामग्री, सिलिकॉन डाइऑक्साइड की सात परतों और सिल्वर की पतली परत के शीर्ष पर हैफनियम ऑक्साइड से बना है। यह एक ही समय में दो चीजें करती हैं।
यह एक इमारत के भीतर अदृश्य अवरक्त गर्मी को ठंडे बाहरी अंतरिक्ष में (एक गर्मी सिंक के रूप में उपयोग कर) तब्दील करती है, साथ ही सूरज की रोशनी जो इमारत को गर्म करती है, उसे प्रतिबिंबित करती है।
लेखकों के मुताबिक, सामग्री ‘रेडिएटर और एक उत्कृष्ट दर्पण’ के रूप में कार्य करती है और भवन को कम एयर कंडीशनिंग की स्थिति में अधिक ठंडा करती है। सामग्री की आंतरिक संरचना एक आवृत्ति पर अवरक्त किरणों को विकीर्ण करने के लिए तैयार की जाती है, जिससे उन्हें इमारत के पास हवा को गर्म किए बिना अंतरिक्ष में पहुंचा देती है।
रमन ने कहा, भारतीय इमारतों, सुपरमार्केट, शीत भंडारण सुविधाओं, डेटा केंद्र, कार्यालय भवन, मॉल और अन्य व्यावसायिक भवनों में हमारा तरल पदार्थ कूलिंग पैनल वाणिज्यिक रेफ्रिजरेशन में बड़ा प्रभावी हो सकता है। साथ ही, पूरी तरह से बिजली मुक्त। जहां कम ठंडा की जरूरत है, उन ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस तकनीक का उपयोग किया जा सकता है।
उन्होंने कहा, प्रौद्योगिकी के व्यावहारिक उपयोग करने के लिए कम से कम दो तकनीकी समस्याएं हल होनी चाहिए। पहली, इंजीनियरों को सबसे पहले यह पता होना चाहिए कि कोटिंग सामग्री में इमारत की गर्मी को कुशलतापूर्वक कैसे ले जाएं। इसके लिए वे एक पैनल बना सकते हैं।
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