…और वैज्ञानिकों की चिंता ये
बीते साल जब नासा और एनओएए के वैज्ञानिकों ने बताया कि अंटार्कटिका के ऊपर स्ट्रैटोस्फीयर परत (समताप मंडल) में 11 से 40 किमी (7-25 मील) ऊपरी सतह में ओजोन की एक मोटी परत वाला क्षेत्र होता है। लेकिन सितंबर 2019 में यह अपनी चरम सीमा 1.63 करोड़ वर्ग किमी (6.33 मिलियन स्क्वेयर माइल्स) तक पहुंच गया। इसके बाद यह अचानक सितंबर-अक्टूबर के बाकी दिनों में 1.01 करोड़ वर्ग किमी (3.7 मिलियन स्क्वेयर माइल्स) से भी नीचे चला गया। वैज्ञानिकों का कहना है कि सामान्य मौसम में वर्षों की प्रक्रिया के दौरान ओजोन छेद आमतौर पर लगभग 2.07 करोड़ वर्ग किमी (8 मिलियन वर्ग माइल्स) तक ही बढ़ता है। यानी सामान्य मौसमी परिस्थितियों में जो ओज़ोन छेद 2 करोड़ वर्ग किमी ही बढ़ता है वह बीते साल इसकी ऊपरी परत में हुए तापमान के हल्के से बदलाव के चलते 1.63 करोड़ वर्ग किमी चौड़ा हो गया। यही वैज्ञानिकों की असल चिंता का कारण है। क्योंकि बीते 40 वर्षों में यह तीसरी बार है जब समताप मंडल में तापमान बढऩे से वे मौसम प्रणालियां गड़बड़ा गईं जो ओजोन परत के नुकसान को रोकने का काम करती हैं। इससे पहले ऐसा 1988 और 2002 में भी हो चुका है जब ऐसे मौसम ने छोटे ओजोन छिद्रों को जन्म दिया है। यह एक दुर्लभ घटना है जिसे वैज्ञानिक अब भी समझने की कोशिश कर रहे हैं।
दुनिया का सुरक्षा आवरण है ओजोन परत
समताप मंडल की ओजोन परत सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरण से हमें बचाती है। सूरज की पराबैंगनी विकिरण से त्वचा का कैंसर, मोतियाबिंद और पौधो को नुकसान पहुंचाती हैं। लेकिन क्लोरोफ्लोरोकार्बन और हाइड्रोफ्लोरोकार्बन जो आमतौर पर कोल्ड स्टोरेज और एसी में उपयोग किया जाता है। उससे रसायन स्ट्रैटोस्फेरिक निकलता है जो ओजोन परत को नुकसान पहुंचाते हैं जिससे पराबैंगनी विकिरण अधिक मात्रा में पृथ्वी तक पहुंचती है।