सिंह और चीन के तीन भूकंप विशेषज्ञों द्वारा किए गए अध्ययन के निष्कर्ष हाल ही में टेकटनफिजिक्स पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। नेपाल में सबसे घातक गोरखा भूकंप में मुख्य रूप से करीब 5000 लोग मारे गए थे, जबकि भारतीय सीमा से सटे इलाकों में भी कुछ लोग, बांग्लादेश में दो और चीन में एक शख्स की मौत हुई थी और 9,200 लोग घायल हो गए थे।
सिंह ने यह बात एक ईमेल के जरिए संवाददाता को बताई कि जब भी भूकंप आते हैं तो पृथ्वी की सतह पर व्यापक दरारें और विकृतियां आम तौर पर दिखाई देती हैं, जिसके परिणामस्वरूप भूजल स्तर में बदलाव भी होता है। चीन में, आने वाले भूकंप से पहले किसी भी संकेत का पता लगाने के लिए कुएं के पानी, पानी का तापमान, और जल राडान सांद्रता समेत कई चीजों की निगरानी की जा रही है।
गोरखा भूकंप के मामले में, वैज्ञानिकों ने भूकंप के केंद्र से 2,769 किलोमीटर की दूरी पर चीन के शांक्सी प्रांत में एक कुएं के जल स्तर के ऊपरी भाग, एक बोरवेल में पानी के स्तर को मापा, जिसे ङ्क्षजगल कहते हैं। नेपाल भूकंप के तुरंत बाद डेटा का विश£ेषण किया गया था। इसके अलावा, विश्लेषण में वास्तविक घटना से लगभग 6.5 घंटे पहले ‘जिंगलÓ वेल पर संभावित आने वाली लहर का खुलासा हुआ था।
सिंह ने कहा कि भूजल में सह-भूकंपी परिवर्तन का अध्ययन एक महत्वपूर्ण अनुसंधान क्षेत्र के रूप में उभरा है, जो भूकंप प्रक्रियाओं की बेहतर समझ प्रदान कर सकता है। साथ ही सतह और उपसतह मानदंडों में इसी प्रकार के परिवर्तनों को प्रदान करता है।
उन्होंने कहा कि आने वाले भूकंप की शुरुआती चेतावनी के संकेत मिलने में जमीनी स्तर के पास पानी के स्तर के आंकड़ों को काफी महत्व दिया जा सकता है। चीन और अमेरिका नियमित रूप से 15 मिनट के अंतराल पर जल स्तर की निगरानी करते हैं। सिंह ने कहा कि भारत का पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय हिमालय की तलहटी इलाकों में पानी के स्तर पर निगरानी के लिए सेंसर लगाने पर विचार कर सकता है, जो हिमालय क्षेत्र में आने वाले भूकंप के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान कर सकता है, जो एक बड़े भूकंप का कारण हो सकता है। उन्होंने कहा कि इस तरह के डेटा से भारतीय प्लेट की गतिशील प्रकृति को समझने में भी मदद मिल सकती है।