उन्होंने कहा, ‘एक प्रकार से देश को जेलखाने में बदल दिया गया था। विरोधी स्वर को दबोच दिया गया था। जयप्रकाश नारायण सहित देश के गण्यमान्य नेताओं को जेलों में बंद कर दिया था। न्याय व्यवस्था भी आपातकाल के उस भयावह रूप की छाया से बच नहीं पाई थी। अखबारों को तो पूरी तरह बेकार कर दिया गया था।’
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र एक व्यवस्था है और एक संस्कार भी है। इसके प्रति नित्य जागरूकता जरूरी है। लोकतंत्र को आघात पहुंचाने वाली बातों को भी स्मरण करना होता है और लोकतंत्र की अच्छी बातों की दिशा में आगे बढऩा होता है। उन्होंने युवाओं और लोकतंत्र प्रेमियों का आह्वान किया कि वे लोकतंत्र के संरक्षण के लिए हमेशा सजग रहें । उन्होंने कहा, ‘आज के पत्रकारिता जगत के विद्यार्थी, लोकतंत्र में काम करने वाले लोग, उस काले कालखंड को बार-बार स्मरण करते हुए लोकतंत्र के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास करते रहे हैं और करते भी रहने चाहिए।’
मोदी ने आपातकाल को याद करते हुए आगे कहा, ‘उस समय अटल बिहारी वाजपेयीजी भी जेल में थे। जब आपातकाल को एक वर्ष हो गया, तो अटल जी ने एक कविता लिखी थी और उन्होंने उस समय की मन:स्थिति का वर्णन अपनी कविता में किया है, जिसकी पंक्तियां इस प्रकार हैं : झुलसाता जेठ मास, शरद चाँदनी उदास, झुलसाता जेठ मास, शरद चाँदनी उदास, सिसकी भरते सावन का, अंतर्घट रीत गया, एक बरस बीत गया, एक बरस बीत गया। सींखचों में सिमटा जग, किंतु विकल प्राण विहग, सींखचों में सिमटा जग,किंतु विकल प्राण विहग, धरती से अम्बर तक,धरती से अम्बर तक, गूंज मुक्ति गीत गया,एक बरस बीत गया।। पथ निहारते नयन,गिनते दिन पल-छिन, पथ निहारते नयन,गिनते दिन पल-छिन, लौट कभी आएगा,लौट कभी आएगा, मन का जो मीत गया,एक बरस बीत गया।’
मोदी ने कहा कि उस समय लोकतंत्र प्रेमियों ने बड़ी लड़ाई लड़ी और इस महान देश ने जब मौका मिला तो चुनाव के माध्यम से उस ताकत का प्रदर्शन कर दिया जिससे पता चलता है कि भारत के जन-जन की रग-रग में लोकतंत्र किस तरह से व्याप्त है, जन-जन की रग-रग में फैला हुआ। लोकतंत्र को देश की धरोहर बताते हुए उन्होंने देशवासियों से संजो कर संरक्षित रखने का आह्वान भी किया। उन्होंने कहा, ‘ये लोकतंत्र का भाव ये हमारी अमर विरासत है। इस विरासत को हमें और सशक्त करना है।’