कथा के अंतिम दिन रविवार को मिश्रा ने कहा कि चरित्रबल सबसे बड़ी ताकत होती है। इसकी बदौलत जीवन की हर मुश्किल से निकलना आसान हो जाता है, लेकिन विपरीत भाव आते ही यह सर्वनाश का कारण बन जाता है। प्रतापी जालंधर के साथ यही हुआ। वह नारद के बहकावे में गया और पार्वती को स्त्री मानकर शिव से युद्ध करने पहुंच गया, जो उसके विनाश का कारण बन गया। उन्होंने कहा कि मर्यादा को तोडऩे वाले जीव को शिव स्वीकार नहीं करते। जब माता सती शिव के वचनों पर विश्वास न करते हुए श्री राम की परीक्षा लेने के लिए सीता का रूप बनाकर गई तो राम जी ने सीता रूप में आई हुई माता सती की चरण वंदना की एवं भगवान शिव की महिमा का वर्णन किया। भगवान शिव को जब सारी घटना का पता चला कि माता सती ने मर्यादा की पालना नहीं किया है, तभी शिव ने अपनी अर्धांगिनी सती का मन से परित्याग कर दिया। अगले जन्म में सती ने पार्वती का अवतार लेकर भगवान शिव को प्राप्त किया। कार्यक्रम के दौरान धार्मिक प्रस्तुतियां दी गई, जिन्हें देख श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो गए।