जिले में करीब पौने तीन लाख हैक्टेयर में सोयाबीन की बोवनी हुई थी।बारिश के शुरू होते ही किसानों ने खेतो में बुआई कर अच्छी फसल होने का इंतजार कर रहे थे। अच्छी बारिश ने इस उम्मीद को ओर भी बड़ा दिया था, लेकिन पिछले कुछ दिनों से थमी बारिश ने किसानों की नींद उड़ा दी है। खेतों में खड़ी सोयाबीन की फसल में तना मक्खी कीट का प्रकोप दिखाई देने लगा है। यह प्रकोप जिले के करीब 130 से अधिक गांवों में देखा जा रहा है।
जिले में करीब एक हजार हैक्टेयर से अधिक की फसल को नुकसान हो चुका है। यदि समय रहते बारिश नहीं होती है या दवाई का छिड़काव नहीं किया जाता है तो किसानों को फसल खराब होने के चलते नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। इधर, यह रोग सोयाबीन के साथ ही मूंग, उड़द में मिला है। किसानों की शिकायत मिलने के बाद कृषि विभाग के अधिकारी भी खेतों में पहुंच कर फसलों का जायजा लेकर बचाव के तरीके किसानों को बता रहे है।
पांचों ब्लाकों में दिख रहा असर
तना मक्खी के कारण फसले सूखने लगी है। इसका असर जिले की आष्टा, सीहोर, इछावर बुधनी और नसरूल्लागंज ब्लाक के करीब 130 से अधिक गांवों में देखा जा रहा है। सबसे ज्यादा असर आष्टा, इछावर और सीहोर के आसपास के गांवों में ज्यादा देखने को मिल रहा है। किसानों की शिकायत के बाद आष्टा के ग्राम बापचा में कृषि विभाग की टीम ने निरीक्षण कर किसानों को उपचार को लेकर सलाह दी जा रही है। इसके अलावा बुदनी, नसरुल्लागंज के गुलरपुरा, झिरनिया, पलासीकलां, लाड़कुई एवं भादाकुईक्षेत्र में भी कृषि विभाग की टीम पहुंचीं है।
तने से शुरू हो रहा रोग
खेतों में जगह-जगह खराब सोयाबीन के टप्पे नजर आ रहे है। कृषि विभाग की माने तो तना मक्खी पौधे के तने के अंदर अंडे देती है। पांच से 10 दिनों के अंदर अंडे इल्ली का रूप लेकर पौधे के तने पर हमला करना शुरू कर देती है। तने पर इल्ली के हमले के कारण पौधों की बढ़त पर विपरित असर पड़ता है। वही इसके चलते पौधा पीला पड़ जाता है, और पत्ते सूखने की कगार पर आ जाते है।
रोए दार फसल पर दिख रहा प्रभाव
सोयाबीन की अधिकतर फसले जिनमें रोए पाए जाते हैं, उनमें तनाम मक्खी का प्रकोप ज्यादा नजर आ रहा है। वही 9305, 9560 और जो जिले की जलवायु के अनुसार टेस्फाइड नहीं है उन फसलो में पीलापन और पौधे सूखने की स्थिति साफ नजर आ रही है। आरवीएस, 2004, 20, 29 जिनमें रोए नहीं पाए जाने उन फसलो पर कीट का असर नहीं देखा जा रहा है।
यह कर सकते हैै उपचार
कृषि विभाग के अनुसार तना मक्खी के प्रकोप से बचने किसान क्लोरोप्रिड और सायकोप्रोथिन दवा 140 एमएल प्रति एकड़ के अनुसार करीब 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते है। अगर मशीन पंप से छिड़काव करते है तो पानी की मात्रा कम की जा सकती है।
तना मक्खी की पहचान
– वयस्क मक्खी छोटे आकार 2 मि.मी. की चमकदार काले रंग की होती है जून से अप्रैल माह में सक्रिय रहती है।
– इसके पैर श्रृंगिकाए तथा पंखों की शिरायें हल्के भूरे रंग की होती है।
– ग्रसित तनों को चीरने पर तना खोखला दिखाई देता है मध्य भाग गहरा लाल या भूरे रंग का हो जाता है।
– इसकी इल्ली जिसे मेगट कहते हैं हल्के सफेद रंग की बेलनाकार होती है जिसकी लंबाई 2 मीमी होती है।
– मेगट का आकार अग्र भाग जिसमें मुखांग होते हैं नुकीला तथा पश्चात भाग गोल तथ चपटा होता है।
– शंखी तने के अंदर ही बनती है जिसका रंग भूरा तथा लंबाई 2-3 मीमी होती है।
फसलों में नुकसान के लक्षण
– इस कीट की इल्ली अवस्था ही हानिकारक होती है।
– नव विकसित मेगट पत्तियों के डठंलों से तने के अंदर घुसती है और टेढी, मेढ़ी बनाती है।
– ग्रसित पौधों में प्रारंभ में पत्तियों की ऊपरी सतह भाग सूख जाता है।
– इसकी शंखी भी तने के अंदर ही बनती है। तने के छेद का उपयोग मक्खी पौधे से बाहर निकलने में करती है।
जिले में तना मक्खी का प्रकोप देखा जा रहा है। किसानों की शिकायत पर विभाग की टीम मौके पर जाकर स्थिति देख रही है
अवनीश चतुर्वेदी, डीडीएम कृषि विभाग सीहोर