त्योहार हमें खुशमिजाज और उत्साहित बनाए रखते हैं। रोजमर्रा की व्यस्त
जीवनशैली के बीच एक बदलावपूर्ण माहौल बनाते हैं। दिवाली के इस मौके को ईको
फ्रेंडली तरीके से सेलिब्रेट करके सेेहतमंद त्योहार मनाएं। ग्रीन फेस्टिवल
यानी ईको फ्रेंडली त्योहार मनाने का के्रज इन दिनों सभी जगह तेजी से बढ़
रहा है। गणेश चतुर्थी, नवरात्र के बाद अब लोग दिवाली भी पर्यावरण को नुकसान
पहुंचाए बगैर मनाने की योजना बना रहे हैं। तो फिर क्यों न आप भी मनाएं इस
बार खास दिवाली।
त्योहार हमें खुशमिजाज और उत्साहित बनाए रखते हैं। रोजमर्रा की व्यस्त जीवनशैली के बीच एक बदलावपूर्ण माहौल बनाते हैं। दिवाली के इस मौके को ईको फ्रेंडली तरीके से सेलिब्रेट करके सेेहतमंद त्योहार मनाएं। ग्रीन फेस्टिवल यानी ईको फ्रेंडली त्योहार मनाने का के्रज इन दिनों सभी जगह तेजी से बढ़ रहा है। गणेश चतुर्थी, नवरात्र के बाद अब लोग दिवाली भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बगैर मनाने की योजना बना रहे हैं। तो फिर क्यों न आप भी मनाएं इस बार खास दिवाली। विषैले तत्त्वों से सुरक्षा कई शोधों में यह बात साबित हो चुकी है कि पटाखों की भयानक आवाज न केवल बुजुर्गों की श्रवण क्षमता को कमजोर करती है, वहीं इससे हार्ट अटैक के मामलों में भी वृद्धि हुई है। ऐसे में पटाखों के विकल्प के तौर पर सूखे पत्ते, घास और डालियां जैसी चीजों से बोनफायर जला कर रोशनी के इस त्योहार को किसी खुली जगह पर सबके साथ मनाएं। अगर बच्चे पटाखे जलाने की जिद करें तो उन्हें प्राकृतिक पटाखे जलाने के लिए दें। ये पटाखे रिसाइकिल पेपर से बनते हैं और इनसे शोर बहुत कम होता है। अगर फिर भी बच्चे बाजार के पटाखे जलाने के लिए जिद करें तो आप कई बच्चों का एक समूह बनाकर किसी मैदान या खुली जगह पर अपनी देखरेख में पटाखे जला सकते हैं, आतिशबाजी कर सकते हैं। इस तरह आप बच्चों को पटाखों के खतरे से तो बचाएंगे ही और उन्हें एक जिम्मेदार नागरिक भी बनाएंगे।
प्राकृतिक रंगों की रंगोली इस मौके पर बनने वाली रंगोली के लिए कृत्रिम रंगों की बजाय प्राकृतिक रंगों से रंगोली बनाएं। सफेद रंग चावल के पाउडर से बनाएं। पीले रंग के लिए हल्दी या दाल का इस्तेमाल करें। भूरे रंग के लिए लौंग या दालचीनी का, हरे रंग के लिए सौंफ और लाल रंग के लिए कुमकुम का इस्तेमाल करें। इसके अलावा फूलों से भी रंगोली बनायी जा सकती है। रिसाइक्लेबल गिफ्ट दिवाली के मौके पर उपहार देने का भी चलन है। बाजार में कई ऐसे सामान बिकने लगे हैं, जो नष्ट नहीं होते हैं। ऐसे सामान को नॉन-रिसाइकल्ड सामान कहते हैं। जैसे-प्लास्टर ऑफ पेरिस की बनी मूर्तियां, पॉलीथिन से बने गिफ्ट आदि। ये नॉन-रिसाइकल्ड सामान वर्षों तक कचरे के रूप में यूं ही पड़े रहते हैं। इसलिए कोशिश करें कि मिट्टी की मूर्तियां, ईकोफें्रडली लैंप आदि रिसाइक्लेबल गिफ्ट ही उपहार के रूप में दें।
दीए सेहत के साथी दीपावली पर मिट्टी के दीपक जलाने का रिवाज रहा है लेकिन बदलती जीवनशैली के चलते इनकी जगह अब इलेक्ट्रिक दीयों ने ले ली है, जिससे बिजली की ज्यादा खपत होती है। ऐसे में मिट्टी के दीए और मोमबत्तियां पर्यावरण के मित्र का काम करते हैं। सस्ते होने के साथ ये स्वाभाविक तरीके से नष्ट भी हो जाते हैं साथ ही घर को भी पारंपरिक लुक देती हैं। अगर आप बिजली की झालर आदि का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो सादा लाइट के बजाय एलईडी लाइट का इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे ऊर्जा की खपत भी कम होगी, रोशनी भी ज्यादा मिलेगी।
ये बातें भी जानना जरूरी सामान्यत: एक व्यक्ति 60 डेसिबल तक आवाज सुन सकता है। इसके बाद हर 3 डेसिबल आवाज की वृद्धि खतरनाक होती है। कई पटाखों जैसे रस्सी बम आदि से शोर 115 डेसिबल से भी ज्यादा होता है। एक अध्ययन के मुताबिक दिवाली के दौरान ज्यादा शोर श्रवण शक्ति को क्षति पहुंचाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन के अनुसार दुनिया के सबसे प्रदूषित वायु वाले 20 शहरों में देश के 13 शहर हैं। दिवाली के दिनों में तो वायु प्रदूषण कई गुना बढ़ जाता है। साथ ही दूसरे दिन शहर की सड़कों पर कई मीट्रिक टन अतिरिक्त कचरा भी मिलता है। पटाखों के प्रदूषण से अस्थमा, मिर्गी और कैंसर का खतरा बढ़ता है। हाई ब्लडप्रेशर व हृदयरोग के मरीज पटाखे फूटने से असहज हो जाते हैं। इसमें भरा जाने वाला सीसा व पारा किडनी, फेफड़ों व नर्वस सिस्टम को क्षति पहुंचाता है। पटाखों से खांसी का अटैक होता है। आंखों में एलर्जी होने से पानी निकलने की समस्या हो सकती है। पटाखों का शोर छोटे बच्चों को विचलित करता है। उनके नर्वस सिस्टम को नुकसान होता है।