सोमवार से पितृपक्ष की शुरूआत हुई। लोग पितरों को जल तर्पण करने कलश व कुशा लेकर जलस्रोतों पर पहुंचे। शहर के सीवन नदी पर सुह से लोगों की भीड़ जुटी। पंडितों ने अपने जजमानों को संकल्प दिलाकर उनके पूर्वजों को जल तर्पण कराया गया।इसके बाद घर-घर पूर्वजों की पूजन आरती करने व हवन करने के बाद जल कलश व कुशा को पकवानों खीर पूड़ी हलवा आदि का भोग लगाया।इसके बाद घरों मेें कन्या भोज, ब्राम्हण भोज कराया गया उन्हें यथा संभव उपहार भी दिए गए। इसके बाद सामूहिक भोज का आयोजन का सिलसिला प्रारंभ हुआ। इधर, गायत्री मंदिर के विमल तेजराज ने बताया कि गायत्री परिवार द्वारा प्रतिदिन सुबह ७.३० बजे श्राद्ध कराया जा रहा है। सोमवार को भी श्राद्ध कराया गया। गायत्री मंदिर से कोई भी यजमान श्राद्ध कर्म करा सकता है।
विद्वानों के अनुसार इस कारण मनाते है श्राद्ध… – शास्त्रों में कहा गया है कि जो स्वजन अपने शरीर को छोड़कर चले गए हैं चाहे वे किसी भी रूप में अथवा किसी भी लोक में हों, उनकी तृप्ति और उन्नति के लिए श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है, वह श्राद्ध है।
– वेदों में श्राद्ध को पितृ यज्ञ कहा गया है। यह श्राद्ध-तर्पण हमारे पूर्वजों, माता, पिता के प्रति सम्मान का भाव है। – माना जाता है कि सावन की पूर्णिमा से ही पितर मृत्यु लोक में आ जाते हैं और नवांकुरित कुशा की नोकों पर विराजमान हो जाते हैं।
– ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष में हम जो भी पितरों के नाम का निकालते हैं, उसे वे सूक्ष्म रूप में आकर ग्रहण करते हैं। – केवल तीन पीढिय़ों का श्राद्ध और पिंड दान करने का ही विधान है।
– श्रद्धा से कराया गया भोजन और पवित्रता से जल का तर्पण ही श्राद्ध का आधार है। ज्यादातर लोग अपने घरों में ही तर्पण करते हैं। – श्राद्ध का अनुष्ठान करते समय दिवंगत प्राणी का नाम और उसके गोत्र का उच्चारण किया जाता है।
– हाथों में कुश की पैंती (उंगली में पहनने के लिए कुश का अंगूठी जैसा आकार बनाना) डालकर काले तिल से मिले हुए जल से पितरों को तर्पण किया जाता है।