ऐसी स्थिति में प्राइवेट क्लीनिक जाकर इलाज के साथ जांच कराना पड़ती है। वही अस्पताल की लिफ्ट बंद होने से गंभीर मरीजों को दूसरी और तीसरी मंजिल सीढिय़ों के सहारे चढऩा, उतरना पड़ता है।
जिला अस्पताल के ट्रामा सेंटर में मरीजों को सहूलयत प्रदान करने लिफ्ट लगाई है। यह लिफ्ट पिछले कई समय से खराब होने के कारण सिर्फ शोपीस बनकर रह गई है। प्रबंधन ने इसे चालू कराने की बजाए लिफ्ट खराब है सुधरवाने शासन को पत्र लिखा है का पंपलेट चस्पा कर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है।
नतीजन गंभीर मरीजों को दूसरी और तीसरी मंजिल पैदल ही उतरना, चढऩा पड़ रहा है। वहीं कई को स्टे्रचर के भरोसे ले जाना पड़ता है। इससे उनको काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। यह स्थिति पिछले तीन महीने से बनी हुई है। उसके बावजूद आज तक कुछ नहीं हो सका है। खास बात यह है जिन स्ट्रेचर पर मरीजों को लादकर ले जाते हैं, उनमें से भी कई की हालत बेकार हो गई है।
जिलेभर से आते हैं मरीज
जिले का सबसे बड़ा अस्पताल होने से पूरे जिलेभर से यहां मरीज और घायलों को इलाज के लिए लाया जाता है। उनके पहुंचते ही व्यवस्था सामने आती है तो चेहरे पर मायूसी छा जाती है।
मरीजों का कहना है कि शासन ने जब करोड़ों रुपए स्वास्थ्य सेवा सुधरने के नाम पर खर्च किए हैं तो फिर इन समस्याओं को दूर करने में क्यों गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है। इससे सिस्टम पर भी कई तरह के सवालिया निशान खड़े होते हैं। उल्लेखनीय है कि यह समस्या पिछले कई समय से बनी है।
ऐसे समझें अस्पताल की स्थिति
जिला अस्पताल में डॉक्टर के 28 पद है, जिसमें अभी की स्थिति में सिर्फ 8 ही पदस्थ है। रेडियोलास्टि के 2 और सर्जरी डॉक्टर के 3 पद में से सभी खाली है। इसी प्रकार से 89 के करीब नर्स है, जिनकी संख्या कम है।
कहने को तो अस्पताल 200 पलंग का है, लेकिन यह पलंग मरीजों की संख्या के आगे कम पड़ रहे हैं। इससे महिला और पुरूष मेडिकल वार्ड में अधिकांश समय एक पलंग पर दो से तीन मरीजों को इलाज कराते देखा जा सकता है।
भटक रही महिलाएं
रेडियोलाजिस्ट का ट्रांसफर होने के बाद अस्पताल की सोनोग्राफी मशनी भी शोपीस बनकर रह गई है। इस कारण पिछले पांच महीनों से महिलाओं को सोनोग्राफी कराने इधर उधर भटकना पड़ रहा है। प्रबंधन इस समस्या को दूर करने कई बार उच्च स्तर पर पत्र लिख चुका है। लापरवाही का आलम यह है कि आज तक कुछ नहीं हो सका है।
– डॉ. आनंद शर्मा, सिविल सर्जन सीहोर