पीएचइ की माने तो वर्ष 1980 के आसपास हैंडपंप, ट्यूबवेल नाममात्र होने की वजह से 200 फीट गहराई जमीन में पर्याप्त पानी माना जाता था। अब ट्यूबवेल, हैंडपंप की संख्या हजारों में हो गई, वही सिंचाई का रकबा तीन लाख 96 हजार हैक्टेयर हो गया। यह तक की अन्य कार्यो में पानी की जरूरत बढ़ी, नतीजा जमीन का जलस्तर 500 फीट नीचे चला गया। पानी की जरूरत बढऩे के बावजूद उसे सहेजने में कोई पहल नहीं हुई। इसी का परिणाम है कि हर साल गर्मी के चार महीने लोगों को जलसंकट से जूझना पड़ता है। वर्तमान में कई गांव, शहर के लोगों को इधर-उधर से पानी लाकर प्यास बुझाना पड़ रही है। यह समस्या आगामी दिनों में हैंडपंप, ट्यूबवेल के जवाब देने से विकराल बनेगी। ऐसी स्थिति से निपटने लोग सजग नहीं है, वह अब भी जितना पानी है उसकी बचत करने की बजाए ज्यादा मात्रा में बर्बाद कर समाप्त करने में जुटे हैं।
गांव में 55, शहर में 120 लीटर हर व्यक्ति को जरूरत
सरकारी रेकार्ड के अनुसार गांव में एक व्यक्ति को प्रतिदिन 55 लीटर और शहर में 120 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। इस पानी में पीना, कपड़े धोना, नहाना सहित अन्य तमाम काम शामिल है। वर्तमान मेंं इससे कई गुना ज्यादा पानी लोग खर्च कर बर्बाद करते हैं। पीएचइ के मुताबिक जिले के 1250 गांव में दो लाख 32 हजार परिवार निवास करते हैं। चार दशक पहले करीब 200 हैंडपंप,200 के आसपास ही किसानों के पास ट्यूबवेल थे। अब 9 हजार से ज्यादा पीएचइ के बोर और 35 हजार से ज्यादा किसान व अन्य लोगों के ट्यूबेवल हो गए।
एक्सपर्ट से जाने कैसे बचा सकते हैं पानी
पीएचइ के इइ एमसी अहिरवार के अनुसार जिन लोगों के घर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगे उनको लगाने की जरूरत है। ताकि सिस्टम के जरिए बारिश का पानी व्यर्थ बर्बाद नहीं होकर जमीन में उतर सकें। नदी, नालों में जगह-जगह छोटे चैक डैम बनाना जरूरी हो गया है। तालाब, तलैया का पानी को खत्म नहीं कर जलस्त्रोत (कुएं,ट्यूबवेल, हैंडपंप) का जलस्तर बढ़ा सकते हैं। दूसरे उपाय से पानी बचत कर सकते हैं। अभी रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम शहरी क्षेत्र में चुनिंदा जगह देखने मिलेंगे, गांवों में होता क्या उसकी लोगों को जानकारी नहीं है। उल्लेखनीय है कि जिले में 1148 एमएम औसत बारिश मानी जाती है। यह पर्याप्त होने पर ही जिले की पूर्ति हो पाती है और कम हुई तो परेशानी आती है।
वर्जन...
पिछले कुछ वर्षो में सिंचाई का रकबा बढऩे और अधिक ट्यूबवेल आदि खनन होने से पानी की खपत बड़ी है। उसी वजह से जमीन का वाटर लेवल नीचे गया है। पानी बचत करने की तरफ लोगों को गंभीरता दिखाने की जरूरत है। पीएचइ जिले में हर घर नलों से पानी पहुंचाने की दिशा में काम कर रही है।
एमसी अहिरवार, इइ पीएचइ सीहोर
गांव में 55, शहर में 120 लीटर हर व्यक्ति को जरूरत
सरकारी रेकार्ड के अनुसार गांव में एक व्यक्ति को प्रतिदिन 55 लीटर और शहर में 120 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। इस पानी में पीना, कपड़े धोना, नहाना सहित अन्य तमाम काम शामिल है। वर्तमान मेंं इससे कई गुना ज्यादा पानी लोग खर्च कर बर्बाद करते हैं। पीएचइ के मुताबिक जिले के 1250 गांव में दो लाख 32 हजार परिवार निवास करते हैं। चार दशक पहले करीब 200 हैंडपंप,200 के आसपास ही किसानों के पास ट्यूबवेल थे। अब 9 हजार से ज्यादा पीएचइ के बोर और 35 हजार से ज्यादा किसान व अन्य लोगों के ट्यूबेवल हो गए।
एक्सपर्ट से जाने कैसे बचा सकते हैं पानी
पीएचइ के इइ एमसी अहिरवार के अनुसार जिन लोगों के घर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगे उनको लगाने की जरूरत है। ताकि सिस्टम के जरिए बारिश का पानी व्यर्थ बर्बाद नहीं होकर जमीन में उतर सकें। नदी, नालों में जगह-जगह छोटे चैक डैम बनाना जरूरी हो गया है। तालाब, तलैया का पानी को खत्म नहीं कर जलस्त्रोत (कुएं,ट्यूबवेल, हैंडपंप) का जलस्तर बढ़ा सकते हैं। दूसरे उपाय से पानी बचत कर सकते हैं। अभी रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम शहरी क्षेत्र में चुनिंदा जगह देखने मिलेंगे, गांवों में होता क्या उसकी लोगों को जानकारी नहीं है। उल्लेखनीय है कि जिले में 1148 एमएम औसत बारिश मानी जाती है। यह पर्याप्त होने पर ही जिले की पूर्ति हो पाती है और कम हुई तो परेशानी आती है।
वर्जन...
पिछले कुछ वर्षो में सिंचाई का रकबा बढऩे और अधिक ट्यूबवेल आदि खनन होने से पानी की खपत बड़ी है। उसी वजह से जमीन का वाटर लेवल नीचे गया है। पानी बचत करने की तरफ लोगों को गंभीरता दिखाने की जरूरत है। पीएचइ जिले में हर घर नलों से पानी पहुंचाने की दिशा में काम कर रही है।
एमसी अहिरवार, इइ पीएचइ सीहोर