scriptगांव बने रहे विलेज, बिना मदद संवारी किस्मत | Self employed: Women set example in villages | Patrika News

गांव बने रहे विलेज, बिना मदद संवारी किस्मत

locationसेंधवाPublished: Aug 07, 2017 05:20:00 pm

रोजगार जैसे मामले भी सफल साबित हो रहे हैं। इस दिशा में महिलाएं पुरुषों से आगे हैं। अबतक हजारों महिलाओं ने स्वरोजगार अपनाकर भाग्य की रेखा बदली है। हाट

सेंधवा. गांव जो विकास व बुनियादी सुविधाओं से आज भी महरूम दिखते हैं। सड़कें बनाई गईं, ताकि शहर से विकास यहां तक पहुंचे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बल्कि गांव के लोग शहरों की ओर कूच करने लगे। मकसद था रोजी रोजगार प्राप्त करने का। ऐसा सेंधवा क्षेत्र के ग्रामों के साथ भी हुआ। हजारों की संख्या में ग्रामीण अन्य राज्यों में जाकर मेहनत मजदूरी करते हैं। इन परिस्थितयों में भी कुछ सकारात्मक बाते हैं, जो गांवों को आज भी मूल्यवान बनाता है। जहां रोजगार जैसे मामले भी सफल साबित हो रहे हैं। इस दिशा में महिलाएं पुरुषों से आगे हैं। अबतक हजारों महिलाओं ने स्वरोजगार अपनाकर भाग्य की रेखा बदली है। हाट बाजार जैसी छोटी सी सहूलियत से ही रोजी रोटी की बेहतर व्यवस्था होने लगी है। वह भी बिना किसी आर्थिक मदद के। ग्रामीण आजीविका मिशन के मार्गदर्शन में स्वरोजगार बढ़ा और महिलाएं आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ीं।

सेंधवा ब्लॉक क्षेत्र में लगभग 114 ग्राम पंचायत हैं। प्रमुख बाजार के रूप में सेंधवा का स्थान है। ग्रामीण यहीं से खरीदी एवं अन्य जरूरी चीजों का इंतजाम करते हैं। आसपास के क्षेत्रों के लिए सेंधवा प्रमुख आर्थिक केंद्र है। लेकिन ये शहर भी इतना विकसित नहीं है, कि क्षेत्र में बेरोजगारी को कम कर सके या सभी रोजगार मुहैया करा सके। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन का क्रम शुरू हुआ, जो वर्तमान में भी बरकार है। इन हालात में प्रयास किया गया कि ग्रामीणों को स्थानीय स्तर पर रोजगार मुहैया हो। ताकि पलायन की समस्या कम हो और आजीविका के साधन भी गांव में ही मिल सके। इसके लिए मनरेगा भी है, लेकिन इसमें भी सभी को रोजगार मिलना मुश्किल साबित हुआ। करीब 14 वर्ष पूर्व ग्रामीण आजीविका मिशन ने स्वरोजगार के लिए ग्रामीणों को प्रेरित करना शुरू किया। खासकर महिलाओं को। कोशिशें रंग लाई और वर्तमान में सिर्फ सेंधवा संकुल में ही लगभग 22 हजार महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हुई हैं। आमदनी भी दोगुना तक होने लगा है। गौरतलब है कि सेंधवा संकुल में 02 हजार के करीब समूह हैं, जिन्हें ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं हीं संचालित करती हैं।
बढ़ गई हमारी आमदनी
प्रमिला बताती हैं, कि परिवार के पास रोजगार नहीं था। समूह से जुड़कर स्वरोजगार अपनाया। हाट बाजार में दुकान लगाई। पहली दफा केले की बिक्री की। मुनाफा 4 सौ रु. एक दिन में हुआ। अब वह अन्य हाट बाजारों में भी जाएंगी। महेतगांव की संगीताबाई ने कहा कि, गांव के पास ही रोजी रोटी का इंतजाम हो गया। हाट बाजार में दुकान लगाती हैं। आय भी बेहतर हुई। कई अन्य महिलाएं भी हैं, जिन्होंने स्वयं का रोजगार शुरू कर आर्थिक संकट पर जीत दर्ज की। साथ ही दूसरों को भी प्रेरित किया। गड्डी बाई ने कहा, अब तो घर के पुरुष भी काम काज में हाथ बटाते हैं। पहले तो ऐसा कम ही होता था।
नए बाजार बने मददगार
ग्रामीणों को जरूरत की चीजों के लिए सेंधवा आना पड़ता है। अब कई ग्रामों के पास हाट बाजार लगने से राहत मिल रही है। साथ ही लोगों को रोजगार भी मिला है। इस वर्ष महेतगांव में नए हाट बाजार की शुरूआत हुई। यहां 125 दुकानें लगने लगी हैं। प्रत्येक शुक्रवार को बाजार का आयोजन होता है। जिसमें बड़ी संख्या में आसपास के ग्रामीण पहुंचकर खरीदी करते हैं। इसके पूर्व अजगरिया व गवाड़ी में लगने वाली हाट बाजार में क्रमश: 40 व 35 दुकानें लगती हैं। ग्राम झोपाली में भी हाट बाजार खोलने की तैयारी है। झोपाली में 550 महिलाओं का संगठन है। जिन्हें स्वयं का रोजगार उपलब्ध हो सकेगा।
पोषण आहार करेंगी तैयार
महिलाएं संगठित होकर समूहों के जरिए गांवों की तस्वीर बदल रही हैं। कई अन्य व्यवसाय भी वे अपना रही हैं। चूड़ी, बैग, सिलाई कढ़ाई, सेनेटरी नैपकीन, सजावटी सामग्री जैसे कार्य प्रमुख हैं। इसी कड़ी में अब महिलाएं बच्चों के लिए पूरक पोषण आहार भी तैयार करेंगी। सेंधवा संकुल से जुड़ी 40 महिलाओं (दीदीयां) ने शिवपुरी से पूरक पोषण आहार तैयार करने का प्रशिक्षण लिया है। आंगनवाडिय़ों के लिए अब ये पूरक पोषण तैयार करेंगी। और सरकार इसके लिए ऑर्डर देगी।
महिलाओं को प्रेरित किया
स्वरोगजार के लिए महिलाओं को प्रेरित किया गया। कैसे स्वरोजगार अपनाएं, योजनाओं का लाभ कैसे लें, जैसी जानकारी दी गई। जो अभी भी जारी है। समूहों का गठन हुआ। प्रशिक्षण दिलाया गया। महिलाओं ने स्वयं का रोजगार शुरू किया और कामयाब हुईं। बिना किसी आर्थिक मदद के। सेंधवा संकुल में लगभग 22 हजार दीदीयां हैं। अधिकतर के पास अपना रोजगार है। वह भी गांव में। हाट बाजार भी इसका जरिया बना। अब नए स्थानों पर भी हाट बाजार शुरू करने की तैयारी है।
– किरण कठाने, समन्वयक ग्रामीण आजीविका मिशन

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