scriptवेदों की निंदा करने वाला नास्तिक | Anathema to condemn the Vedas | Patrika News

वेदों की निंदा करने वाला नास्तिक

locationसिवनीPublished: Jan 29, 2018 12:04:28 pm

Submitted by:

santosh dubey

बिलकटा में जारी श्रीमद् भागवत कथा

Dharmachar, Sanskar, Vedas, Shrimad Bhagwat Katha, Spirituality

सिवनी. संस्कार के अभाव में लोग नाना प्रकार के कुसंगो में फंसकर अपराध कर बैठते हैं और धर्म का बहिष्कार करने लग जाते हैं। धर्म किसी प्राणी विशेष की वस्तु नही धर्म तो संपूर्ण जगत के कल्याण का मार्ग है। दुष्ट पुरुषों का संग और उनसे विनय करना अनर्थकारक ही है। उक्ताशय की बात शंकराचार्य स्वामी नारायणानन्द तीर्थ महाराज ने ग्राम बिलकटा में जारी श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह में श्रद्धालुजनों से कही।
उन्होंने आगे कहा कि जो धर्म की रक्षा करता है उसका रक्षण उसका धर्म ही करता है और जो धर्म पर आघात करता है वह स्वत: ही अपने आप में ही आघात करता है। वेद हमारे सनातन धर्म के मूल हैं और ये अपौरुषेय है। इनका संरक्षण करना ही हमारे वैदिक सनातन धर्म का परम कर्तव्य है और जो वेदों की निंदा करता है वह नास्तिक है। नास्तिकों वेद निंदक: ईश्वर, गुरु और शास्त्रों की सत्ता को मानना ही नास्तिकों के लक्षण है। काम , क्रोध, लोभ और मोह का सर्वथा परित्याग कर देना ही मनुष्य के कल्याण का मार्ग है क्योंकि ये चारों के वस होकर लोग भांति-भांति प्रकार के पाप करता है अत: इनका त्याग कर देना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा इस पृथ्वी में सभी पदार्थ विद्यमान हैं, परंतु उन्हें पाने के लिए कर्म का होना जरूरी कर्महीन लोगों को इनकी प्राप्ति नही होती। हमारा सनातन धर्म शास्वत है। अर्थात जो हमेशा रहने वाला है किसी को भी अपने धर्म का परिवर्तन नहीं करना चाहे कितनी भी परिस्थिति क्यों न आ जाए? धर्म परिवर्तन से बचना है। इच्छाओं के वशीभूत होकर लोग अनेक प्रकार के झगड़ों में उलझा रहता है। इच्छाओं का दमन ही पूर्ण ब्रम्ह परमात्मा का मार्ग है।
बेलगांव में जारी श्रीमद् भागवत महापुराण
श्रीमद्भागवत कथा के श्रवण से मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्रीभागवत भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति के प्रचार-प्रसार में एक समर्थ महापुराण है। इसलिए तो इसे श्रीमद्भागवत महापुराण कहा जाता है। उक्ताशय की बात ग्राम बेलगांव (सुकतरा) में जारी श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताह कथा ज्ञान यज्ञ में कथावाचक सुनंदा बाजपेयी ने श्रद्धालुजनों से कही।
उन्होंने आगे कहा कि भारती धर्म ग्रंथों में मात्र दो ही ऐसे ग्रंथ हैं जिनके पीछे श्रीमद् शब्द का प्रयोग हुआ है। एक श्रीमद् भागवत और दूसरा श्रीमद् भगवतगीता। मानव जीवन का कल्याण तभी होगा जब मानव धर्म की आस्था को समझने लगेगा। प्रभु को याद कर उसका सुमिरन करना अत्यंत जरूरी है। कलियुग में अधर्म का नाश हो और धर्म का साथ होना ही सुमिरन है। जीव जंतुओं पर दया करो। बेसहारा को सहारा प्रदान करने से भगवान सदैव प्रसन्न रहते हैं। लालच विनाश का मूल मंत्र है। मानव को लालच न कर प्रेम व्यवहार से रहना चाहिए।

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