सिवनीPublished: Oct 26, 2019 08:16:31 pm
santosh dubey
कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष को मनाई जाती है द्वादशी
गौ, गीता, गंगा महामंच ने बच्चों संग मनाई गोवत्स द्वादशी
सिवनी. गौ, गीता, गंगा महामंच द्वारा गोवत्स द्वादषी पर्व पर गौमाता का बछड़े सहित पूजन कर मनाया गया। गौ के महत्व पर प्रकाश डालते हुए महामंच की सोना संजय मिश्रा ने बच्चों को बताया कि गोवत्स द्वादशी कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है। आज के दिन से ही बालकृष्ण द्वारा गोचारण प्रारंभ किया गया जिस कारण वे बालगोपाल कहलाए।
महामंच द्वारा बताया गया कि हिन्दू मान्यताओं और धर्म ग्रंथों के अनुसार इसको बड़ा ही महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन गाय तथा उनके बछड़ों की सेवा की जाती है। यदि किसी के यहां गाय-बछड़ा नहीं मिलता है, तो वह किसी दूसरे के घर की गाय और बछड़े का पूजन कर सकता हैं। फिर भी यदि घर के आस-पास गाय और बछड़ा नहीं मिले, तो गीली मिट्टी से इनकी आकृति बनाकर उनकी पूजा की जा सकती है। तथा अन्य विधि से कुछ लोग चांदी के गाय और बछड़े बनाकर उनका विधिवत् पूजनार्चन् कर योग्य ब्राह्मण को पूजनोपरांत यथाशक्ति दक्षिणा, अन्न और वस्त्र के साथ दान देते हैं। इस व्रत में गाय के दूध से बनी खाद्य वस्तुओं का उपयोग नहीं किया जाता है।
इस अवसर पर उपस्थित माताओ बहनो को पं. सजय मिश्र द्वारा गाय के महत्व का प्रतिपादन कर बताया गया कि गाय माता में तैंतीस कोटी देवी और देवता बसते हैं। साथ ही गौ माता को पृथ्वी का प्रतीक भी माना जाता है। जिस समय सागर मंथन हुआ था, तब उसमें दानवों द्वारा सुरभि, नंदा, सुशीला, बहुला और सुभद्रा नाम की पांच गाय उत्पन्न हुई थी। जिसके बाद वशिष्ट, गौतम, जमदाग्नि, आसित और भारद्वाज जो कि पंच महर्षि थे, इन सभी ने इन पांचों गायों की देखभाल की थी। गायों के पंचगव्य यानि गौमूत्र, घी, गोबर, दही और दूध में सभी भगवानों की शक्तियां बसी हुई हैं।
महामंच की नन्ही सदस्य ऋशिका पांडे ने बताया कि ऐसा माना जाता है कि जब कृष्ण भगवान का जन्म हुआ था तो गोवत्स द्वादशी के ही दिन माता यशोदा ने गौ दर्शन और उनकी पूजा भी की थी। पहली बार इसी दिन भगवान कृष्ण गायों को चराने के लिए वन लेकर गए थे। साथ ही गाय चराने जाने से पहले माता यशोदा ने अपने कान्हा का श्रृंगार भी किया था। जिसके चलते गाय के कारण ही कृष्ण भगवान का नाम गोपाल पड़ा। साथ ही गोकुल में गौ माता की रक्षा के लिए ही बाके बिहारी ने अवतार लिया था।
गोवत्स द्वादशी की कथा के संबंध मे पंचमुखी हनुमान मंदिर के पुजारी पं सुमित चौबे ने बताया कि सुरुचि उत्तानपाद की दूसरी पत्नी थी, वो राजा के बेटे ध्रुव से जलती थी। जिसके चलते उन्होंने ध्रुव को मारने की कई कोशिश भी की, लेकिन वो ऐसा कर ना पाई और ध्रुव बड़ा होकर पराक्रमी बना। वहीं सुनीति ने सुरुचि से पूछा कि ध्रुव सुरक्षित कैसे बच गया। जिस पर सुनीति ने अपने गाय की सेवा और अपने व्रत के बारे में पूरी बात बताई। जिसके बाद सुरुचि ने भी वही व्रत किया और जिसके बाद सुरुचि को भी पुत्र प्राप्त हुआ। वहीं ध्रुव कालांतर में आकाश में चमकते हुए तारे के रूप में प्रसिद्ध हुआ।