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बाल्य अवस्था में ही भक्ति का बीजारोपण होना चाहिए : ओमशंकर कृष्ण रसिक

locationसिवनीPublished: Feb 17, 2019 02:36:39 pm

Submitted by:

santosh dubey

चमारी (खमरिया) में जारी श्रीमद् भागवत कथा

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बाल्य अवस्था में ही भक्ति का बीजारोपण होना चाहिए : ओमशंकर कृष्ण रसिक

सिवनी. बाल्यावस्था एक ऐसी अवस्था है, कि इस अवस्था जो संस्कार पड़ जाते हैं, वह दीर्घकालीन होते हैं। माता-पिता को अपने बच्चों को धर्म नीति की शिक्षा अवश्य देना चाहिए क्योंकि आज के परिवेश में तमाम तरह की शिक्षा तो विद्यालय महाविद्यालय में मिल जावेगी, लेकिन धर्म की शिक्षा देना का मूल कर्तव्य मां का होता है। इसके लिए पहले मां को धार्मिक होना आवश्यक है। उक्ताशय की बात छपारा के समीपस्थ ग्राम चमारी (खमरिया) में जारी श्रीमद् भागवत कथा में कथावाचक बाल व्यास ओमशंकर कृष्ण रसिक ने श्रद्धालुजनों से कही।
उन्होंने सति चरित्र सुनाते हुए कहा कि विशिष्ट आयोजनों बिना निमंत्रण जाने से पहले इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि जहां आप जा रहे है वहां आपका, अपने इष्ट या अपने गुरु का अपमान तो नहीं हो रहा है। यदि ऐसा होने की आशंका हो तो उस स्थान पर जाना नहीं चाहिए। चाहे वह स्थान अपने जन्मदाता पिता का ही घर क्यों हो? इस प्रसंग में गोस्वामी तुलसीदास ने भी आगाह किया है कि ..आवत ही हरषे नही, नैनन नही सनेह। तुलसी तहां न जाईये कंचन बरषे मेह। कथा के दौरान सती चरित्र के प्रसंग को सुनाते हुए भगवान शिव की बात को नहीं मानने पर सती के पिता के घर जाने से अपमानित होने के कारण स्वयं को अग्नि में स्वाह होना पड़ा।
कथा में उत्तानपाद के वंश में ध्रुव चरित्र की कथा को सुनाते हुए समझाया कि ध्रुव की सौतेली मां सुरुचि के द्वारा अपमानित होने पर भी उसकी मां सुनीति ने धैर्य नहीं खोया जिससे एक बहुत बड़ा संकट टल गया। परिवार को बचाए रखने के लिए धैर्य संयम की नितांत आवश्यकता रहती है। भक्त ध्रुव द्वारा तपस्या कर श्रीहरि को प्रसन्न करने की कथा को सुनाते हुए बताया कि भक्ति के लिए कोई उम्र बाधा नहीं है। भक्ति को बचपन में ही करने की प्रेरणा देनी चाहिए क्योंकि बचपन कच्चे मिट्टी की तरह होता है उसे जैसा चाहे वैसा पात्र बनाया जा सकता है।
कथा के दौरान उन्होंने बताया कि पाप के बाद कोई व्यक्ति नरकगामी हो, इसके लिए श्रीमद्भागवत में श्रेष्ठ उपाय प्रायश्चित बताया है। अजामिल उपाख्यान के माध्यम से इस बात को विस्तार से समझाया गया। साथ ही प्रह्लाद चरित्र के बारे में विस्तार से सुनाया और बताया कि भगवान नृसिंह रुप में लोहे के खंभे को फाड़कर प्रगट होना बताता है कि प्रह्लाद को विश्वास था कि मेरे भगवान इस लोहे के खंभे में भी है और उस विश्वास को पूर्ण करने के लिए भगवान उसी में से प्रकट हुए एवं हिरण्यकश्यप का वध कर प्रह्लाद के प्राणों की रक्षा की। कथा के दौरान महाराज ने ब्रज रसिक गीतो से भक्तों को मंत्र मुग्ध किया।
कथा वाचक ने महाभारत रामायण से जुड़े विभिन्न प्रसंग भी सुनाए। साथ ही उन्होंने कहा कि परम सत्ता में विश्वास रखते हुए हमेशा सद्कर्म करते रहना चाहिए सत्संग हमें भलाई के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है। यहां धार्मिक आयोजन मंगलवार 19 फरवरी तक आयोजित हैं जिसमें सभी ग्रामवासी एवं क्षेत्रवासी पहुंचकर धर्मलाभ ले रहे हैं। यहां प्रतिदिन सुबह आठ से 11 बजे तक शिवलिंग पूजन अभिषेक विद्वान ब्राम्हणों के द्वारा वैदोक्त मंत्रों से होते हैं। दोपहर दो बजे से पांच बजे तक संगीतमयी कृष्ण कथा अमृत प्रवचन ओमशंकर महाराज के मुखारबिन्द से प्रवाहित हो रहे हैं।

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