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गौ-वत्स द्वादषी पर करें गाय का पूजा, होगा यह फायदा

locationसिवनीPublished: Sep 10, 2018 11:45:21 am

Submitted by:

akhilesh thakur

मनाया गया गौ माता का उत्सव

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गौ-वत्स द्वादषी पर करें गाय का पूजा, होगा यह फायदा

सिवनी. गौ-माता ही हमारी संस्कृति और धर्म में ऐसे देवता के रूप में प्रतिष्ठित है, जिनकी नित्य सेवा और दर्शन करने का विधान हमारे शास्त्रों ने किया है। वर्ष में दो बार दो बड़े पर्व गौ माता के उत्सव के रूप में मनाए जाते हैं। एक भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को और दूसरा कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को।
गौ, गीता, गंगा महामंच द्वारा आयोजित गौ-वत्स द्वादषी पूजन कार्यक्रम के संबंध में आरती कुशवाहा ने जानकारी देते हुए बताया कि भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी के नाम से जाना जाता है। इसे और भी कई नामों से जाना जाता है जैसे वन द्वादशी, वत्स द्वादशी, और बछ बारस आदि। यह त्यौहार संतान की कामना और उसकी सुरक्षा के लिए किया जाता है। इसमें गाय-बछड़ा और बाघ-बाघिन की मूर्तियां बना कर उनकी पूजा की जाती है। साथ ही साथ महिलाएं असली गाय और बछड़े की पूजा करती हैं।
नेहा पाण्डेय द्वारा व्रत के संबंध में जानकारी देते हुए बताया गया कि गोवत्स द्वादशी के व्रत में गाय का दूध-दही, गेहूं और चावल नहीं खाने का विधान है। इनके स्थान पर इस दिन अंकुरित मोठ, मूंग, तथा चने आदि को भोजन में उपयोग किया जाता है और इन्हीं से बना प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस दिन द्विदलीय अन्न का प्रयोग किया जाता है। साथ ही चाकू द्वारा काटा गया कोई भी पदार्थ खाना वर्जित होता है। व्रत के दिन बछड़े वाली गाय की पूजा कर कथा सुनी जाती है फिर प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
गौ, गीता गंगा महामंच द्वारा अयोजित कार्यक्रम में पुजारी पं. हेमंत त्रिवेदी द्वारा गौ-वत्स द्वादषी के महत्व का प्रतिपादन करते हुए बताया गया कि भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को सम्पूर्ण भारत में गौ-वत्स द्वादशी अथवा बछ बारस के रूप में मनाया जाता है। सौभाग्यवती स्त्रियां गौ-वत्स द्वादशी का उपवास पुत्र प्राप्ति और संतान की दीर्घायु के निमित्त करती है। उन्होंने बताया कि गौ माता को सारे शास्त्रों में सर्वतीर्थमयी व मुक्तिदायिनी कहा गया है। गौ माता के शरीर में सारे देवताओं का निवास है। ब्रह्म वैवर्तपुराण के अनुसार गौ के पैरों में समस्त तीर्थ व गोबर में साक्षात लक्ष्मी का वास माना गया है। गौ माता के पैरों में लगी मिट्टी का जो व्यक्ति नित्य तिलक लगाता है, उसे किसी भी तीर्थ में जाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उसे सारा फल उसी समय वहीं प्राप्त हो जाता है। सारे यज्ञ करने में जो पुण्य है और सारे तीर्थ नहाने का जो फल मिलता है वह फल गौ माता को चारा डालने से सहज ही प्राप्त हो जाता है।

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