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सिवनी

मनुष्य के जीवन में जरुरी है धैर्य का होना

पांजरा में हो रही श्रीमद् भागवत कथा

सिवनीJan 14, 2018 / 11:46 am

santosh dubey

Dharmachar, Sanskar, Spirituality, Knowledge, Panjra, Shrimad Bhagwat Story

सिवनी. केवलारी विकासखण्ड के ग्राम पांजरा-लोपा में चल रहे संगीतमय श्रीमद भागवत पुराण ज्ञान यज्ञ में शनिवार को आध्यत्मिक सत्संग के माध्यम से उपस्थित जनों को धैर्य, श्रम और सत्य मार्ग का संदेश देते वृंदावनवासी आचार्य पंडित अनिरूद्धाचार्य महाराज ने कहा कि मनुष्य जीवन में धैर्य का होना बहुत ही जरुरी है। संसार में संयोग-वियोग से होने वाले सुख और दु:ख से परे एक परम सुख है। महापुरुष संत लोग उसी परमसुख सहज सुख में निमग्न रहते हैं। भौतिक और सांसारिक वस्तुओं से सहज सुख की अनुभूति नही की जा सकती उसके लिए सत्कर्म और महापुरुषों का संयोग उनकी कृपा जीवन में होनी जरूरी है। ईश्वर कृपा सभी जीवों पर सामान रूप से होती है सुख और दु:ख मनुष्य जीवन के दो प्रमुख सत्य है सुख का अर्थ अभीष्ट की प्राप्ति नही है अपितु उसमें संतोष का भाव होना परमावश्यक है।
उन्होंने कहा कि सुख और दु:ख स्वत: किए कर्मो के अनुरूप ही प्राप्त होता है काहु न कोउ सुख दुख कर दाता इसमें कोई भागीदार नही है और न ही किसी के द्वारा हमें सुखनुभूति हो सकती और न ही दु:ख की। अहंकार और अभिमान के वश होकर लोग अनावश्यक प्रलाप करने लग जाते है और अपराध कर बैठते है परंतु वे लोग यह नही जानते कि रावणएकंस और शिशुपाल जैसे लोगो का पतन सिर्फ उनके अहंकार और अभिमान के कारण हुआ इस लिए आप सभी को सावधान रहना है हमेंअपने धर्म शस्त्रों और साधु संतों का अपमान नही करना है। सभी को कर्म करना है, परिश्रम करना है, क्योकि अकर्मण्य लोगों की सहायता ईश्वर भी नहीं करते।
आचार्य ने कहा कि भूल और अपराध संसार में सभी से होती है परंतु जो समझाने से समझ जाए वही तो मानव है निर्बलता और कृपणता के वशीभूत होकर धर्म का परित्याग नही करना है। ऐसे जीवन उपयोगी संदेश देते महाराज ने कहा कि हमें सुख के लिए, शान्ति के लिए, पर्यावरण शुद्धि के लिए, यज्ञ कर्म करना चाहिए। महाराज ने कहा कि अग्नि में डाले गए पदार्थ सूक्ष्म होकर वृक्ष, वायु, पृथ्वी, सूर्य , चन्द्र आदि सभी लाभकारी देवों को शुद्ध, स्वस्थ, पवित्र रखते हैं और ये देव हमें स्वस्थ एवं सुखी बनाते हैं।
भौतिक और सांसारिक वस्तुओं से सहज सुख की अनुभूति नही की जा सकती उसके लिए सत्कर्म और महापुरुषों का संयोग उनकी कृपा जीवन में होनी जरूरी है। ईश्वर कृपा सभी जीवों पर सामान रूप से होती है सुख और दु:ख मनुष्य जीवन के दो प्रमुख सत्य है सुख का अर्थ अभीष्ट की प्राप्ति नही है अपितु उसमें संतोष का भाव होना परमावश्यक है।

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