सिवनीPublished: Jan 03, 2018 10:05:25 am
santosh dubey
छुई में जारी श्रीराम कथा
सिवनी. विन सत्संग विवेक ना होई अर्थात बिना सत्संग के विवेक एवं ज्ञान प्राप्त नहीं होता सत्संग की बड़ी महिमा है। भगवान के भक्तों को सत्संग बड़ा प्यारा होता है। भक्ति ही गुणों की खान है। परमात्मा की भक्ति है तो दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाता है। उक्ताशय की बात श्रीराम मंदिर प्रांगण छुई में सार्वजनिक गणेश उत्सव समिति छुई के तत्वावधान में आयोजित संगीतमय श्रीराम कथा के दूसरे दिन श्रोताओं को कथा का अमृतपान कराते हुए कथावाचक वर्षा देवी ने कहा।
वर्षा देवी ने आगे बताया कि परमात्मा श्रीराम का जन्म पृथ्वी का भार उतारने के लिए दीन दुखियों की सेवा करने के निमित्त हुआ था कर्म ही प्रधान है। संसार में किसी को दु:ख और सुख देने वाला कोई नहीं है। सब अपने अपने कर्मों का फल भोंकते हैं, मनुष्य को जब विवेक प्राप्त हो जाए तब-तब भगवान के चरणों में अगाध प्रेम में हो जाता है। परमात्मा का एक बार जो नाम ले लेता है, वह भवसागर से पार हो जाता है।
मांगी नाव न केवट आना तुम्हारे मरम न जाना गंगा पार जाने के लिए भगवान श्रीराम के पैर पखार कर नाव पर बिठाया भगवान श्रीरामजी को गंगा पार कराया जब भगवान श्रीरामचंद्र नाव से उतरकर केवट को गंगा पार करने कि मेहनत देने लगे तो केवट ने भगवान श्रीरामचंद्र से गंगा पार करने की मेहनत नहीं लिया। केवट ने कहा हे प्रभु जिस प्रकार मैंने आपको नाव से गंगा पार कराई है। उसी प्रकार आप मुझे भवसागर से पार कर देना।
गंगा पार कर भगवान रामचंद्र महर्षि वाल्मीकि और महर्षि भारद्वाज के आश्रम पर पधारे और भगवान श्रीरामचंद्र पूछने लगे महर्षि वाल्मीकि ने कहां हे प्रभु ऐसी कौन सी जगह है, जहां पर आप नहीं है। आप मेरे हृदय पर निवास करें। भगवान श्रीरामचंद्र को चित्रकूट में निवास करने को कहा।
समय की महत्व को बताते हुए कहा कि मनुष्य बड़ा नहीं होता समय बलवान होता है और बताया कि रावण ने सोचा नहीं था कि एक दिन ऐसा आएगा कि दसों शीश कट जाएंगे और उसका सर्वनाश हो जाएगा। अर्जुन का एक दिन ऐसा आया कि वह साधारण भीलों के द्वारा लुट गया। वही अर्जुन, वही बाण, वही गांडीव जो सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी था किंतु यह समय की बलवंता बनता है।