100 कमरों की होगी संत धर्मशाला, शंकराचार्य महाराज ने किया भूमिपूजन
सिवनीPublished: Feb 28, 2021 04:17:45 pm
मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायकों ने भी दिया धार्मिक कार्य में सहयोग
100 कमरों की होगी संत धर्मशाला, शंकराचार्य महाराज ने किया भूमिपूजन
सिवनी. गुरु रत्नेश्वर धाम दिघोरी में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज की कुटिया के सामने चार एकड़ की भूमि पर संत धर्मशाला के निर्माण का भूमिपूजन स्वयं शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने शनिवार की शाम को उपस्थित लोगों के समक्ष किया है। इस स्थल पर सौ कमरों और दो हाल का व्यवस्थित संत धर्मशाला बनाई जाएगी। गौरतलब है कि गुरूधाम दिघोरी में हाल ही में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपने राज्य के मंत्री के साथ पहुंचे थे, उन्होंने घोषणा कर १० एकड़ भूमि शंकराचार्य महाराज के आश्रम के लिए प्रदान किए जाने की बात कही थी।
इसी क्रम में दिघोरी में बनने जा रही धर्मशाला में सनातनी अपने परिजनों के नाम पर एक-एक कमरे का निर्माण करवा रहे हैं। अभी तक करीब 32 लोगों ने इसके लिए स्वीकृति दे दी है। इसके अलावा सिवनी विधायक दिनेश राय ने इस निर्माण कार्य के लिए चालू वित्तीय वर्ष और अगले वित्तीय वर्ष में कुल 40 लाख की राशि देने की घोषणा की है। इसके अलावा पांच लाख चौरई के विधायक सुजीत चौधरी और पांच लाख की राशि लखनादौन के विधायक योगेन्द्र सिंह बाबा ने दी है। महाराज के द्वारा किए गए भूमिपूजन के समय सिवनी विधायक दिनेश राय, गुरू रत्नेश्वर धाम में आयोजित हुई भागवत कथा के सदस्य और दिघोरी ट्रस्ट के अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक रजनीश सिंह, जिला भाजपा अध्यक्ष आलोक दुबे, जिला पंचायत अध्यक्ष मीना बिसेन सहित अन्य मौजूद रहे।
कथाप्रांगण से धर्मसभा को सम्बोधित करते शंकराचार्य महाराज ने कहा कि विशाद को दूर करने के लिये जो ज्ञान दिया जाता है उसे गीता कहते हैं। अपनों को बचाना और दूसरों को दंडित होने देना कार्पण्य दोष कहलाता है। अन्याय से राज नहीं करना चाहियेए जो अन्याय के साथ राज करता है उसका पतन हो जाता है। यही स्थिति दुर्योधन के साथ हुई थी और अन्याय के कारण ही महाभारत का युद्ध हुआ था और दुर्योधन एवं उसके राज का पतन हो गया था। यह धर्मोपदेश गीता उपदेश का सार बताते हुए शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने कही है।
महाराज ने कहा कि कृष्ण नारायण के अवतार थे और नर और नारायण दोनों ज्ञानी हैं और दोनों ने मिलकर ही संसार के कल्याण के लिए कुरूक्षेत्र में युद्ध किया। भगवान श्रीकृष्ण ने संसार के कल्याण के लिये गीता का उपदेश अर्जुन को दिया था। यह उपदेश अर्जुन को उस समय देना पड़ा जब कुरूक्षेत्र में युद्ध के मैदान में खड़े होकर अर्जुन को मोह हो गया।
महाराज ने गीता उपदेश देने के पहले बताया कि महाभारत का युद्ध दुर्योधन का अन्याय और उसे मिली पीड़ा का ही परिणाम है। क्योंकि पाण्डवों का महल ऐसा बना था कि वहाँ जलए थल और थलए जल दिखता था। एक बार जब दुर्योधन इनके महल में पहुंचा और जल के भ्रम में अपने वस्त्र उठाकर चलने लगा तो इस घटना को देखकर द्रोपदी ने अट्हास कर दिया और कहा कि अंधे का पुत्र अंधा होता है। द्रोपदी के द्वारा दुर्योधन की जो बेइज्जती की गई थी वही महाभारत का कारण बनी।
महाराज ने कहा कि कौरव और पाण्डव के युद्ध में न्याय और सत्य की जीत हुई थी, क्योंकि पाण्डव न्याय और सत्य के साथ चल रहे थे। महाराज ने कथा का विश्राम करते हुए कहा कि आप सब लोग अपने जीवन में सदाचार लाएं। इससे आपका लोक और परलोक दोनों सुधरेगा और यह सब देखकर आपकी संतान भी इसका अनुशरण करेगी।