scriptअनादि अनंत है शिव की महिमा: स्वामी प्रज्ञानानंद | Shiva's glory is eternal: Swami Pragyanananda | Patrika News

अनादि अनंत है शिव की महिमा: स्वामी प्रज्ञानानंद

locationसिवनीPublished: Feb 28, 2020 10:18:51 pm

Submitted by:

sunil vanderwar

मोहगांव सड़क में शिव महापुराण, प्राण प्रतिष्ठा

अनादि अनंत है शिव की महिमा: स्वामी प्रज्ञानानंद

अनादि अनंत है शिव की महिमा: स्वामी प्रज्ञानानंद

सिवनी. सिवनी से २० किमी दूर एनएच सेवन पर कुरई विकासखण्ड के ग्राम मोहगांव सड़क में नवनिर्मित शिव मंदिर में प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा एवं शिव महापुराण का आयोजन हो रहा है। कथा वाचन स्वामी प्रज्ञानानंद महाराज के द्वारा हो रहा है। जिसका श्रवण करने बड़ी संख्या में जिले भर से लोग पहुंच रहे हैं।
कथा स्थल पर शुक्रवार को चतुर्थ दिवस शुक्रवार को महाराज ने कथावाचन करते कहा कि शिवलिंग का अर्थ है भगवान शिव का आदि-अनादि स्वरूप। शून्य, आकाश, अनंत, ब्रम्हांड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे शिव कहा गया है। स्कंद पुराण में कहा है कि आकाश स्वयं है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनंत शून्य से पैदा होए उसी में लय होने के कारण इसे कहा है। वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनंत ब्रम्हाण (ब्रम्हांड गतिमान है) का अक्ष धुरी ही है। शिव का अर्थ है, कल्याणकारी सृजन। सृजनहार के रूप में उत्पादक शक्ति के चिन्ह के रूप में की पूजा होती है। शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादि एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतीक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है।
महाराज ने कहा कि हमारा भगवान से नित्य एवं सनातन संबंध है। जबकि संसार के सारे संबंध मान्यताओं पर आधारित हैं। माने हुए संबंध एक दिन टूट जाएंगे पर प्रभु से हमारे संबंध सदैव एवं अटूट रहेंगे। अपने को कभी अकेला नहीं अनुभव करना चाहिए। याद रखें ईश्वर सदैव आपके साथ है।
ब्रम्हांड में दो ही चीजे हैं, ऊर्जा और पदार्थ। हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है। इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है। ब्रम्हांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है। वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है। स्कंद पुराण में शिवलिंग का अर्थ लय लगाया गया है। लय (प्रलय) के समय अग्नि में सब भस्म हो कर शिवलिंग में समा जाता है और सृष्टि के आदि में शिवलिंग से सब प्रकट होता है। शिव के मूल में ब्रह्मा मध्य में विष्णु और ऊपर प्रणवाख्य महादेव स्थित हैं। देवी, महादेवी और शिवलिंग महादेव हैं। अकेले शिव की पूजा से सभी की पूजा हो जाती है। परम ब्रम्ह परमेश्वर भगवान शिव ने सृष्टि की रचना के पूर्व शक्ति की रचना की शिव और शक्ति में प्रकृति को संचालित किया है। संसार का अंतिम सत्य मृत्यु अर्थात मोक्ष है जो बिना शिव की आराधना के संभव नहीं है। ब्रम्हा द्वारा रचित सृष्टि और विष्णु द्वारा पोषित होने वाली इस सृष्टि में संपूर्ण प्राणी प्रकृति के अधीन हैं, किंतु प्रकृति शिव के अधीन है।
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