सिवनीPublished: Jun 03, 2019 02:29:08 pm
santosh dubey
ग्राम तिघरा में जारी श्रीमद् भागवत कथा
कलियुग में श्रीमद्भागवत कथा है रामबाण
सिवनी. मन की दो परिस्थितियां होती है, भय और लोभ। मन हमेशा भय या लोभ से ग्रसित होता है। मन ही माया के बंधन में बंधा रहता है। अत: मन ही बंधन का कारण है। इसलिए मन को गोविन्द के चरणों में लगा दो यही मुक्ति का साधन है। उक्ताशय की बात ग्राम तिघरा में जारी श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक स्वामी सुशीला नंद महाराज ने श्रद्धालुजनों से कही।
उन्होंने आगे कहा कि श्रीमद्भागवत इस संसार के लिए आध्यात्मिक रस वितरण का प्याऊ है। यही एक मात्र वह शास्त्र है, जो जीव से कहता है कि तुम मेरी शरण में आओ मैं तुम्हें मुक्ति प्रदान करूंगा, लेकिन जीव जीवन भर माया के सांसारिक बंधनों में पड़कर ईश्वर से विमुख रहता है और दुख आने पर भगवान की शरण में आता है। राजा परीक्षित ने भगवान की कथा अपने दु:ख की निवृत्ति के लिए नहीं अपितु अपना संताप मिटाने के लिए सुनी थी। कलियुग में श्रीमद् भागवत की कथा जीवमात्र के लिए रामबाण हैं।
उन्होंने आगे कहा कि मनुष्य जब सत्य को ढूंढने के लिए निकलता है तो उसे भक्ति अपने अंदर ही मिल जाती है। भागवत कथा हमारे भीतर छिपे गुणों को जागृत करती है। भागवत कथा ऐसा संवाद है जो कि मनुष्य के लिए अपने आप को सत्य का भान कराने वाला है। उन्होंने कहा कि भागवत कथा श्रवण मात्र से हृदय में ऐसी भावनाएं समापित होती हैं, जिससे व्यक्ति मन, वाणी व कर्म से प्रभू में लीन हो जाता है।
श्रीमद् भागवत कथा में प्रथम दिन शनिवार को गांव में कलश यात्रा निकाली गई जिसमें बड़ी संख्या में ग्रामवासी मौजूद थे। ग्रामवासियों द्वारा कराई जा रही श्रीमद्भागवत कथा प्रतिदिन दोपहर तीन बजे से शाम छह तक कथा का वाचन किया जा रहा है। कथा का समापन आठ जून को पूर्णाहूति एवं भण्डारा, महाप्रसाद के साथ होगा।