scriptमन के हारे हार है, मन के जीते जीत | The losers of the mind are lost, win the win of the mind | Patrika News

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत

locationसिवनीPublished: May 15, 2018 12:11:06 pm

Submitted by:

santosh dubey

निष्काम भक्ति से प्रसन्न होते हैं भगवान, हवन पूजन के साथ कथा का समापन आज

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सिवनी. सच्ची मित्रता अमीरी गरीबी से ऊपर होती है। भगवान कृष्ण और सुदामा की मित्रता इसकी मिसाल है। मित्रता में छल कपट और स्वार्थ कोई स्थान नहीं होता है। निस्वार्थ भाव से निभाई जाने वाली मित्रता ही सच्ची मित्रता कहलाती है। उक्ताशय की बात श्रीमद् भागवत कथा वाचक शुभम कृष्ण शास्त्री ने ग्राम परतापुर बम्होड़ी में जारी श्रीमद् भागवत कथा में उपस्थित श्रद्धालुजनों से कही।
उन्होंने कहा कि यदि भक्तजनों में पात्रता हो तो भगवान स्वयं चलकर अपने भक्तों के पास आता है। जैसा कि भगवान श्रीराम अपने भक्त शबरी के पास में स्वयं चलकर ही तो आए थे। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को निष्काम कार्यों की आदत डालनी चाहिए. भगवान से भक्ति के बदले में कुछ भी नहीं मांगना ही निष्काम भक्ति कहलाती है। क्योंकि भगवान दयालु होता है और वह स्वयं अपने भक्तजनों की चिंता रखता है। इसलिए भक्तजनों को भी अपने भगवान की निष्काम भावन से भक्ति की जानी चाहिए। भागवत कथा श्रवण से आनंद प्राप्त होता है। आनंद का अनुभव तब ही होगा जब आप दूसरों के अंदर भगवान को देखेंगे। ईश्वर को कहीं ढूंढने की आवश्यकता नहीं है, वह तो हर कण में व्याप्त है। लोग मंदिर , मस्जिद जाते हैं, तीर्थ यात्रा करते हैं पर आचरण वैसा नहीं करते हैं। ईश्वर अपने भीतर ही है दूसरे की मदद करते हैं तो वह भी ईश्वर का ही कार्य करते हैं। उन्होंने कहा कि अपने आप को अच्छा बनाने की कोशिश करें। व्यक्ति को बुराई दूर करने के लिए अपनी इच्छा शक्ति मजबूत करनी पड़ेगी। मन के हारे है मन के जीते जीत।
उन्होंने आगे कहा कि भगवान के प्रति अनुराग हो तो मनुष्य को किसी व्यक्ति के आगे हाथ पसारकर मांगने की जरूरत नहीं पड़ती है। श्रीकृष्ण के बालसखा सुदामा गरीब ब्राह्मण परिवार के थे। दीनहीन दशा में सुदामा एक दिन अपनी पत्नी के आग्रह पर द्वारिकाधीश भगवान श्रीकृष्ण के धाम पर जाते हैं। फटेहाल सुदामा के मुंह से श्रीकृष्ण को बचपन का मित्र बताने पर द्वारिकावासी उनका मजाक उड़ाते हैं। लेकिन सुदामा के आने का संदेश पाते ही भगवान श्रीकृष्ण नंगे पैर दौड़कर उन्हें गले लगाते हैं तो दरबारी आश्चर्यचकित रह जाते हैं।
महाराज ने कहा कि जब भगवान कृपा करते हैं तो दरिद्री भी मालामाल हो जाता है। कृष्ण ने सुदामा के दो मुट्ठी चावल के बदले उन्हें तीन लोक का अधिपति बना दिया था। उन्होंने कहा कि सुदामा को विपुल एश्वर्य देकर यह बताया कि मेरा भजन करने वाले को प्रारंभ में दु:ख सहना पड़ सकता है, लेकिन दु:ख की घड़ी में भी मै उसकी चारों ओर से रक्षा करता हूं। सुदामा के जीवन की विशेषता यह रही कि सोने की नगरी के स्वामी द्वारिकाधीश से उन्होंने कोई याचना नहीं की। परमात्मा पर भरोसा करके अपने धर्म का पालन करते हुए उन्हें भगवत कृपा से सब कुछ मिल गया।

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