सिवनी

द्वंद्व से परे व्यक्ति कर्म के बंधन में नहीं बंधता

श्रीमद्भागवत गीता ज्ञानयज्ञ बंडोल में

सिवनीDec 28, 2017 / 11:46 am

santosh dubey

सिवनी. जीवन एक यज्ञ है। इस यज्ञ को पूरा करने के लिए हम जो कर्म करते हैं वह कर्मयोग है। उक्ताशय की बात सामुदायिक भवन, सब्जी बाजार चौक बंडोल में चल रही श्रीमद्भागवत गीता ज्ञान यज्ञ में योग ? शक्ति ब्रह्माकुमारी गीता ने श्रद्धालुजनों से कही।
उन्होंने आगे कहा कि ज्ञान को जब हम कर्म में लाते हैं तब जीवन में श्रेष्ठता आती है। भगवान ने अर्जुन को बतलाया कि सभी यज्ञों में श्रेष्ठ ज्ञान यज्ञ है। उन्होंनें कहा श्रीमद्भागवत गीता में जो शिक्षा दी गई है वह हमारे जीवन के लिए बहुत जरूरी है। गीता के माध्यम से भगवान ने मन को संतुलित रखने के लिए बहुत अच्छी-अच्छी बातें बतलाई हैं। जिसने शरीर की इन्द्रियों को वश में किया हुआ है, वह अपरिग्रही है। वह कर्म के बंधन में नहीं बंधता। जो द्वंद से परे है, सफलता-असफलता में समान रहता है। उन्होंने बताया कि गीता में भगवान ने अर्जुन से कहा कि मनुष्यात्मा स्वयं ही अपना मित्र है और स्वयं ही शत्रु भी है। मनुष्य को आत्मा उन्नति में लगे रहना चाहिए। जो मनुष्य अपनी इन्द्रियों के परवश है वह स्वयं ही शत्रु है। उन्होंने श्रीमद्भागवत गीता के वर्तमान परिवेश में महत्व को बतलाते हुए कहा गीता एक ऐसा अनुपमेय शास्त्र है, जिसमें एक भी शब्द सदुपदेश से खाली नहीं है। वास्तव में जिन मनुष्यों ने गीता को यथार्थ रीति से नहीं सुना एवं पढ़ाए वे ही कह दिया करते हैं कि गीता तो केवल संन्यासियों के लिए बनायी गई है और धारण करना अर्जुन का काम है। वे अपने परिवार के अन्य सदस्य को भी इसी संशय से गीता का पठन नहीं कराते कि गीता ज्ञान से कदाचित घर के सदस्य घर छोड़कर संन्यासी हो जाएं।
आपने कहा कि सुखमय जीवन जीने के लिए गीता का पठन-पाठन वर्तमान समय में अति आवश्यक है, अति दुर्लभ मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर अपने अमूल्य समय का एक क्षण भी दु:खमूलक क्षणभंगुर भोगों को भोगने में समय नष्ट करना उचित नहीं है। श्रद्धालुओं ने भागवत कथा में बड़ी संख्या में भाग लेकर श्रीकृष्ण के जीवन चरित्र से अपने जीवन को धन्य किया।
योग शक्ति गीता दीदी ने सुबह आठ बजे जिंदगी को बनाएं आसान शिविर लगाकर व रात्रि 8 बजे से 10.30 बजे तक ज्ञान दर्शन व सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत लोगों को तनाव को कैसे अलविदा करें इसकी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि आज हम एक-दूसरे के विचारों भावनाओं को समझने के कारण हमारे संबंधों में तनाव हो रहा है। संबंधों में मधुरता के लिए तीन बातें आवश्यक है। पहला मेरा मेरे साथ संबंध, दूसरा मेरा दूसरों के साथ संबंध तीसरा मेरा परमात्मा के साथ संबंध। पहला तीसरा संबंध हमने नहीं जोड़ा है। जब हम भगवान के सामने जाते हैं तो कहते हैं कि भगवान मुझे माफ कर देना। मै तो नींच हूं, कपटी हूं, नालायक हूं आदि-आदि। परन्तु विडंबना यह है कि हम यह दुनिया के सामने नहीं बताते हैं। अर्थात हमने जो कहा वो हम स्वीकार नहीं करते हैं। अर्थात भगवान से ही झूठ बोल रहे हैं। आपका बच्चा आप से आकर कहे कि मै तो बुद्धू हूं, बेकार हूं, नालायक हूं तो आपको कैसा लगेगा? क्या आप उसे प्यार करेंगे? नहीं ना तो फिर भगवान कैसे पसंद करेगा। भगवान को भगवान समझें बल्कि आपका सच्चा संबंधी है। भक्त प्रहलाद ने भगवान को भगवान कभी नहीं समझा। बल्कि सदा पिता के रूप में ही देखा समझा। मीरा ने भी सदा साजन के संबंध रूप में भगवान को अपना बनाया। सती अनुसुइया ने भी भगवान को अपना बच्चा बनाकर रखा। द्रोपदी ने भगवान को अपना भाई बनाया।

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