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शौर्य की गाथा : वीर सैनिकों ने ऐसे जीता था कारगिल युद्ध

locationसिवनीPublished: Jul 25, 2019 12:00:19 pm

Submitted by:

sunil vanderwar

कारगिल विजय दिवस, तीन दिवसीय आयोजन प्रारंभ

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सिवनी. शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय सिवनी के एनसीसी छात्र-छात्राओं ने बुधवार को कारगिल विजय दिवस के प्रथम कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें कारगिल युद्ध से संबंधित संपूर्ण जानकारी एनसीसी अधिकारी द्वारा दी गई। एनसीसी अधिकारी ने बताया कि मुख्यालय के निर्देश पर तीन दिवसीय आयोजन होने हैं।
प्रथम दिवस के कार्यक्रम में वरिष्ठ शिक्षक एससी सिंह, डीके ठाकुर, एनएल काकोडिय़ा ने विद्यार्थियों को देश के वीर सैनिकों की ऐतिहासिक विजय के लिए अद्भुत साहस और शौर्य की गाथा को विस्तार से बताया। एनसीसी केडेट्स व विद्यार्थियों में भी सैनिकों की विजयगाथा को जानकर सेना व सैनिकों को सलामी देते स्वयं भी देश सेवा का जज्बा बयान किया।
विद्यालय के एनसीसी अधिकारी अनिल राजपूत ने बताया कि 26 जुलाई 1999 के दिन भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध के दौरान चलाए गए ऑपरेशन विजय को सफलतापूर्वक अंजाम देकर भारत भूमि को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराया था। इसी की याद में 26 जुलाई अब हर वर्ष कारगिल दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन है उन शहीदों को याद कर अपने श्रद्धा सुमन अर्पण करने का है, जो हंसत-हंसते मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। यह दिन समर्पित है उन्हें, जिन्होंने अपना आज हमारे कल के लिए बलिदान कर दिया।
कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि के विषय में बताया कि कारगिल युद्ध जो कारगिल संघर्ष के नाम से भी जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में मई के महीने में कश्मीर के कारगिल जिले से प्रारंभ हुआ था। इस युद्ध का कारण था बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों व पाक समर्थित आतंकवादियों का लाइन ऑफ कंट्रोल यानी भारत-पाकिस्तान की वास्तविक नियंत्रण रेखा के भीतर प्रवेश कर कई महत्वपूर्ण पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लेह-लद्दाख को भारत से जोडऩे वाली सड़क का नियंत्रण हासिल कर सियाचिन-ग्लेशियर पर भारत की स्थिति को कमजोर कर हमारी राष्ट्रीय अस्मिता के लिए खतरा पैदा करना था।
वरिष्ठ शिक्षक सिंह ने बताया कि पूरे दो महीने से ज्यादा चले इस युद्ध में भारतीय थलसेना व वायुसेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल पार न करने के आदेश के बावजूद अपनी मातृभूमि में घुसे आक्रमणकारियों को मार भगाया था। स्वतंत्रता का अपना ही मूल्य होता है, जो वीरों के रक्त से चुकाया जाता है।
शिक्षक ठाकुर ने कहा कि कारगिल युद्ध में शामिल हुए सैनिकों का साहस हिमालय से ऊँचा था। इस युद्ध में हमारे लगभग 527 से अधिक वीर योद्धा शहीद व 1300 से ज्यादा घायल हो गए थे। जिनमें से अधिकांश अपने जीवन के 30 वसंत भी नही देख पाए थे। इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया, जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के समक्ष लेता है। इन रणबांकुरों ने भी अपने परिजनों से वापस लौटकर आने का वादा किया था, जो उन्होंने निभाया भी। मगर उनके आने का अन्दाज निराला था। वे लौटे, मगर लकड़ी के ताबूत में। उसी तिरंगे मे लिपटे हुए, जिसकी रक्षा की सौगंध उन्होंने उठाई थी। जिस राष्ट्रध्वज के आगे कभी उनका माथा सम्मान से झुका होता था, वही तिरंगा मातृभूमि के इन बलिदानी जांबाजों से लिपटकर उनकी गौरव गाथा का बखान कर रहा था। कार्यक्रम में देश के लिए शहीद हुए सैनिकों को सभी ने मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
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