scriptये है अजीब परम्परा, हर कदम पर खतरा, फिर भी है ऐसा जुनून… | This strange tradition, at every step there is danger, yet there is su | Patrika News

ये है अजीब परम्परा, हर कदम पर खतरा, फिर भी है ऐसा जुनून…

locationसिवनीPublished: Mar 28, 2019 11:49:50 am

Submitted by:

sunil vanderwar

३५ हाथ लम्बे चिकने खम्भे पर चढ़कर झंडा तोडऩे की है परम्परा

seoni

ये है अजीब परम्परा, हर कदम पर खतरा, फिर भी है ऐसा जुनून…

सिवनी. जान का जोखिम उठाकर सीधे, चिकने खम्भे पर चढऩा और चोटी पर लगे झंडे को तोडऩे का पारम्परिक आयोजन हर साल की तरह इस बार भी केवलारी ब्लॉक के ग्राम पंचायत पाथरफोड़ी माल में हुआ। साहस और जोखिम भरे इस पारम्परिक आयोजन देखने बड़ी संख्या में जिले भर से लोग पहुंचे।
साहस और जोखिम भरी परम्परा –
झंडा कार्यक्रम तीन दशक से भी ज्यादा समय से होता आ रहा है। यह आदिवासी समाज के द्वारा आयोजित किया जाता रहा है। बताया कि परम्परा अनुसार गांव के जंगल वाले बर्रा में ३५ हाथ लम्बे यानि करीब ६० फीट के लेडिय़ा की सीधी लकड़ी के खम्भे को गाड़ा गया है। खम्भे की चोटी पर एक झंडा, नारियल और रुपए लटकाए जाते हैं। इस वर्ष भी ऐसा किया गया। इसके अलावा खम्भे पर आइल, ग्रीस और गेरू लगाया गया, ताकि कोई भी आसानी से इस पर चढ़ नहीं पाए। तब खम्भे पर चढऩे की हिम्मत कम ही लोग दिखा पाए।
आधे रास्ते पर ही टूट गई हिम्मत –
ढुटेरा निवासी मनीष मिश्रा ने बताया कि हम करीब तीस वर्ष जब बच्चे थे, तब से इस पारम्परिक आयोजन को देख रहे हैं। यह आदिवासी संस्कृति से जुड़ी परम्परा है। आदिवासी वर्ग के लोग पूजन के बाद इस आयोजन को करते हैं। बताया कि इस वर्ष झंडा तोडऩे के लिए अनिल भलावी और सोहन मरावी ने प्रयास किया था, लेकिन कुछ ही ऊंचाई पर चढऩे के बाद वे हिम्मत हार गए और खम्भे से उतर आए।
शिवकुमार ने तोड़ लाया झंडा –
ग्राम पंचायत पाथरफोड़ी माल के सरपंच यशोदा तुलसीराम भलावी ने बताया कि इस वर्ष ३५ हाथ ऊंचे खम्भे पर चढ़कर झंडा तोडऩे में चीचबंद गांव के शिवकुमार कुमरे सफल रहे। शिवकुमार ने कहा कि सीधे-चिकने खम्भे पर बहुत ही धैर्य और सूझबूझ के साथ चढ़ाई की और चोटी पर पहुंचकर झंडा तोडऩे में सफलता पाई। उन्हें सरपंच यशोदा तुलसीराम भलावी व समिति के द्वारा पुरस्कार स्वरूप 3151 रुपए एवं एक छल्ला एवं वस्त्र प्रदान किए गए। इस मौके पर ग्राम के सचिव शिवलाल बुंदेला एवं सहायक सचिव राकेश ठाकुर पंच सहित क्षेत्रीय ग्राम दूधिया, कालीमाटी, झगरा, चीचबंद, ढुटेरा, चोरपिपरिया आदि गांव से बच्चे, महिला-पुरुष सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण शामिल हुए। प्रतिवर्ष होने वाले इस जोखिम भरे खेल में सुरक्षा, व्यवस्था व चिकित्सा के उपाय नजर नहीं आए। पुलिस, प्रशासन व चिकित्सा अमला की गैरहाजिरी चर्चा का विषय बनी रही।
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