प्रकृति की रक्षा में अपना योगदान देना चाहिए
सिवनीPublished: Feb 05, 2019 11:26:06 am
ग्राम पौंडी में हो रही भागवत कथा
सिरेघाट स्थित शाक द्विपीय मग बाह्मण समाज की और से जोगमाया मंदिर के जीर्णोद्वार पर भव्य शोभायात्रा का आयोजन किया या। इस अवसर पर शहर में जुलूस निकाला गया। जुलूस में कई झांकियां में बच्चे सजे हुए थे। जोधपुर के महाराजा गजसिंह दरबार ने भी कार्यक्रम में शिरकत की। शोभायात्रा का रास्ते भर लोगो ने स्वागत किया।
सिवनी. विकासखंड छपारा के अंतगर्त आने वाले ग्राम पौंडी में श्रीमदभागवत कथा जारी है। कथा वाचन वृन्दावन धाम से आए कथा वाचक पंडित नीलेश शास्त्री ने उपस्थित जनों को धर्म उपदेश देते कहा कि कथा कत्था की तरह है जैसे पान में सुपारी, चूना सब हो लेकिन कत्था न हो तो पान में लालिमा प्रकट नही होती है। इसी तरह जीवन में कथा न हो वो जीवन नहीं है।
भागवत कथा न हो तो लालिमा प्रकट नहीं होती। मनुष्य का शरीर एक नशेनी है नशेनी की भूमिका चढाने की ही नहीं उतारने की भी होती है। जैसे दीवार पर लगा देंगे तो ऊपर चढेंगे और कुंआ में लगा देंगे तो नीचे उतरेंगे। मनुष्य श्रेष्ठ कर्म से ऊपर चढता है और बुरे कर्म से नीचे उतरता है। श्रीमद भागवत कथा में भागवत शब्द की महिमा का वर्णन हुआ है। भागवत का पहला अक्षर भ है। भगवान का पहला अक्षर, भक्त का, भक्ति का भ, जिस देश में जन्मे उसका पहला अक्षर भी भ। जीवन में विकास के साथ प्रकाश चाहिए। विकास बहिरंग होता है और प्रकाश अंतरंग होता है। इसके साथ शास्त्री ने परीक्षित की उत्पत्ति, श्रष्टि का वर्णन, भक्त धु्रव के चरित्र की विवेचना आदि की कथाएं सुनाते हुए कहा कि पौधारोपण करना पुण्य का कार्य है मनुष्य को अपने जीवन काल में कम से कम एक वृक्ष को अवश्य गोद लेना चाहिए और प्रकृति की रक्षा में सहायक बनना चाहिए। गौतम बुद्ध ने कहा है कि जिसकी संतान न हो वृक्ष को तैयार करके वह शांति प्राप्त कर सकता है।
विधि से श्रवण करने पर यह निश्चय ही भक्ति प्रदान करता है। संसार में देने से बढकर कोई अन्य दुष्कर कार्य नहीं है, क्योंकि दिन रात कठिन परिश्रम से अर्जित प्राणों से भी प्रिय धन सम्पत्ति को दान के द्वारा त्यागना निश्चय ही बडा कठिन कार्य है। दान के द्वारा दाता एक ही जन्म में अनेक जन्मों के लिए पुण्य अर्जित कर लेता है। संसार में दानवीरों की कीर्ति सदा अक्षुण्ण बनी रहती है। उदारणार्थ राजा शिवि, दधीचि, निमि, बलि, कर्ण, परशुराम, राजा हरिशचन्द्र इत्यादि दान के कारण ही अमर- कालजयी हो गये। आयोजनकर्ता समिति द्वारा भक्तों का अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर धर्मलाभ लेने को कहा गया है।