सोयाबीन की खेती करने वाले कृषकों के लिए उपयोगी सलाह
सिवनीPublished: Sep 03, 2019 12:10:17 pm
कृषि विशेषज्ञ दे रहे फसल को रोग से बचाने के उपाय
सिवनी. किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग ने सोयाबीन की फसल लेने वाले किसानों को खरीफ सीजन में सोयाबीन फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए आवश्यक सलाह दी जा रही है। किसानों को बताया कि जिले के जिन क्षेत्रों में सोयाबीन फसल पर सेमीलूपर, तम्बाकू की इल्ली एवं चने की इल्ली का प्रकोप हो, वहां आवश्यक उपाय किए जा सकते हैं।
बताया कि इन रोगों से फसल बचाव के लिए क्वीनॉलफॉस 25 ईसी या इन्डोक्साकार्य 14.5 एससी या फ्लूबेन्डीयामाइड 39.35 एससी या फ्लूबेन्डीयामाईड 20 डब्ल्यूजी 250 से 300 मिली अथवा स्पायनोटेरम 11.7 एससी का उपयोग किया जा सकता है। इसी प्रकार सोयाबीन की फसल में पत्ती खाने वाली इल्लियों के साथ सफेद मक्खी के प्रकोप के नियंत्रण के लिए मिश्रित कीटनाशक बीटासायफ्लूथ्रीन और इमिडाक्लोप्रीड 350 का उपयोग या थायमिथॉक्सम लेम्बडा सायहेलोथ्रीन का संयुक्त छिड़काव किया जा सकता है।
सोयाबीन की फसल में माइरोथिसियन लीफ स्पॉट एन्थ्रकनोज, एरियल ब्लाइट एवं चारकोल रॉट की बीमारी नियंत्रण के लिए फसल पर टेबूकोनाझोल 625 मिलीण्ए टेबूकोनाझोल सल्फर 1 किग्रा, हेक्झाकोनाझोल 500 मिली या पायरोक्लोस्ट्रोबिन 500 ग्रा प्रति हेक्टेयर का छिड़काव कर सकते हैं। जिन स्थानों पर गर्डल बीटल का प्रयोग शुरू हो गया है, वहाँ पर थाइक्लोप्रीड 217 एससी, प्रोफेनोफास 50 ईसी या ट्रायझोफास 40 ईसी का छिड़काव किया जा सकता है। पीला मोजाइक बीमारी को फलाने वाली सफेद मक्खी के प्रबंधन के लिए खेत में यलो स्टीकी टेऊप का प्रयोग करें जिससे मक्खी के वयस्क नष्ट किये जा सकें। साथ ही पीला मोजाइक रोग से ग्रसित पौधों के अवशेषों को खेत से निकालकर नष्ट कर दें।
कहा कि रोग की तीव्रता अधिक होने पर थायमिथाक्सम 25 डब्ल्यूजी का छिड़काव कर सकते हैं। सोयाबीन फसलों में चूहों से नुकसान होने पर प्रबंधन के लिए आटे एवं ज्वार के बीज को जिंक फास्फाइड पाउडर के साथ मिलाकर या बाजार में उपलब्ध एन्टी कोआगुलेन्ट बिस्किट का उपयोग करें। बोआई के समय संतुलित पोषण का उपयोग न होने पर फसल कमजोर एवं पीली हो जाती है जिसमें कीट एवं बीमारियों का प्रकोप अधिक होता है। ऐसी स्थिति में संतुलित पोषण के लिए एनपीके का घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव किया जा सकता है। बीज उत्पादन के लिए उगाई जाने वाली सोयाबीन की फसल में पत्तियां, फूल का रंग एवं रोये के रंग के आधार पर अन्य किस्मों के पौधों को निकाल दिया जाए ताकि बीज की शुद्धता बनी रहे। लगातार वर्षा के कारण जलभराव की स्थिति में पानी के निकास के लिए नालियों की व्यवस्था की जानी चाहिए।