scriptजो जैसा करेगा कर्म, उसे भोगना पड़ेगा वैसा फल | Whatever the karma will have it will have to suffer | Patrika News

जो जैसा करेगा कर्म, उसे भोगना पड़ेगा वैसा फल

locationसिवनीPublished: Dec 17, 2017 11:47:25 am

Submitted by:

sunil vanderwar

अष्टोत्तरशत कथा का अंतिम दिन

Whatever the karma will have it will have to suffer

सांदीपनि (guru sandipani:–
भगवान श्रीकृष्ण के गुरु आचार्य सांदीपनि थे। उज्जैयिनी वर्तमान में उज्जैन में अपने आश्रम में आचार्य सांदीपनि ने भगवान श्रीकृष्ण को 64 कलाओं की शिक्षा दी थी। भगवान विष्णु के पूर्ण अवतार श्रीकृष्ण ने सर्वज्ञानी होने के बाद भी सांदीपनि ऋषि से शिक्षा ग्रहण की और ये साबित किया कि कोई इंसान कितना भी प्रतिभाशाली या गुणी क्यों न हो, उसे जीवन में फिर भी एक गुरु की आवश्यकता होती ही है।
भगवान श्रीकृष्ण ने 64 दिन में ये कलाएं सीखीं थी। सांदीपनि ऋषि परम तपस्वी भी थे, उन्होंने भग

सिवनी. नगर के सिद्धपीठ मठ मंदिर परिसर में चल रहे अष्टोत्तरशत १०८ श्रीमद् भागवत सप्ताह कथा ज्ञान यज्ञ में शनिवार को कथा के अंतिम दिन सुदामा चरित्र, कृष्ण-उद्धव संवाद, शुकदेव महाराज की विदाई के प्रसंग पर मथुरावाले काष्र्णि स्वामी विश्वचैतन्य महाराज के द्वारा संगीतमय कथावाचन किया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही।
काष्र्णि कलाप समिति द्वारा भव्य पंडाल में अंतिम दिवस की कथा का वाचन करते महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं को श्रीमद् भागवत गीता के माध्यम से जीवन उपयोगी शिक्षा दी। बताया कि श्रीमद् भागवत कथा जीवन को संवारने वाली है। बड़े सौभाग्य से पावन कथा सुनने का अवसर प्राप्त होता है। भागवत कथा सुनने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। गृहस्थ जीवन में भी रहकर मोक्ष की प्राप्ति आसानी से होती है।
उन्होंने कहा कि भौतिक जगत में कर्म प्रधान है। जो प्राणी जैसा कर्म करेगा उसे वैसा ही फल भोगना पड़ेगा। गीता हमें सत्कर्म करते हुए सांस्कृतिक सुखों के पीछे न भागकर केवल परमात्मा की भक्ति में संलग्न रहने व जीवन के यथार्थ को पाने का संदेश देती है। संसार में जो कुछ भी दिख रहा है घर-परिवार, रिश्ते-नाते, धन-दौलत, सुख-समृद्धि कुछ भी काम आने वाला नहीं है। सब यहीं छोडक़र जाना है। इसलिए भौतिक सुखों में लिप्त रहना ठीक नहीं है। भगवान की भक्ति ही मुक्ति देने वाली है। परमात्मा की शरण में जाने से ही शांति मिलती है।
महाराज ने श्रीकृष्ण-सुदामा चरित्र की व्याख्या करते कहा कि कभी भी मित्र से कपट नहीं करना चाहिए। उसे धोखा नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि सुदामा दरिद्र होने के बावजूद भी अपने मित्र श्रीकृष्ण से कुछ मांगने नहीं जाते थे। एक दिन उनकी पत्नी ने सुदामा को मित्र श्रीकृष्ण से मिलने भेजा। जब सुदामा द्वारिका नगरी पहुंचे तब द्वारपालों ने ब्राह्मण सुदामा को द्वार पर ही रोक दिया। स्वयं द्वारिकाधीश भगवा? कृष्ण ?? दौड़ कर आए और अपने मित्र सुदामा को ले जाकर स्वर्ण सिंहासन पर बिठाया और उनकी चरण पादुका का प्रक्षालन किया।
काष्र्णि स्वामी ने कथा का भावपूर्ण वाचन करते कहा कि सुदामा के पैरों में छालों को देखकर भगवान कृष्ण की आंखों में आंसू छलक आए, जिससे उनके पैरों का प्रक्षालन भी हुआ हो गया। भगवान कृष्ण ने सुदामा के पैरों के पानी को प्रसाद समझकर पी लिया। कृष्ण ने रुक्मणी से कहा कि सुदामा के चरण पडऩे से द्वारिका नगरी पवित्र हो गई। कथावाचक महाराज ने सुदामा-कृष्ण मित्रता का वर्णन श्रद्धालुओं को सुनाया। देख सुदामा की दीन दशा, करुणा करके करुणानिधि रोए। पानी परात को हाथ छुए नहि नैनन के जल से पग धोए, सुनाकर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस प्रसंग पर श्रद्धालु भी भाव से भावुक हो गए।
सुदामा चरित्र की कथा का रसपान कराते हुए कहा कि दुनिया में कहीं पर भी श्रीकृष्ण-सुदामा जैसी मित्रता दूसरी नहीं मिलेगी। उनकी मित्रता निस्वार्थ थी। जबकि आज लोग बगैर अपने फायदे के किसी से मित्रता करना तो दूर बात तक नहीं करते हैं। महाराज ने कथा की दक्षिणा मांगते हुए कहा कि आप अपने दुर्गुणों की आहूतियां दें। अंतिम दिन की कथा में महाराज ने भागवत की महत्ता को विस्तार से समझाते हुए कहा कि कथा से ही मानव की सभी व्यथा दूर होगी। अंत में सभी से सद्कर्मों पर चलने का आव्हान किया। आयोजन समिति के सदस्य शिवनंदन पटेल ने बताया कि १७ दिसंबर रविवार को हवन एवं पूर्णाहुति होगी।
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जेल में बंदियों ने पाया आध्यात्मिक ज्ञान
उपजेल लखनादौन पहुंची ऋचा गोस्वामी
फोटो १६ सिवनी ०१- बंदियों पर पुष्पवर्षा करतीं ऋचा गोस्वामी।
फोटो १६ सिवनी ०२- उपस्थित वक्ता व जेल स्टाफ।

सिवनी. उपजेल लखनादौन में शुक्रवार को आध्यात्मिक आयोजन किया गया। इस अवसर पर स्वामी महेन्द्रानंद महाराज की सुपुत्री ऋचा गोस्वामी अपने सहयोगी मुकेश मिश्रा एवं अन्य सदस्यों के साथ उपस्थित हुईं। जेलर अभय वर्मा एवं जेल स्टाफ एवं बंदियों के द्वारा पुष्प गुच्छ, माला से अभिनंदन किया गया।
इस अवसर पर प्रखर वक्ता ऋचा गोस्वामी द्वारा बंदियों को जीवन उपयोगी ज्ञान प्रदान किया गया। उन्होंने सच्चे मार्ग पर चलने, मानव सेवा, बुरे कर्मों को छोडऩे का उदाहरण के साथ मार्गदर्शन किया गया। साथ ही राम चरित्र एवं कृष्ण चरित्र की व्याख्या कर जेल स्टाफ एवं बंदियों को ईश्वर के सद्संगति, सदाचार की शिक्षा दी। बंदियों को आध्यात्म से जीने की राह सिखाते गोस्वामी ने उन पर पुष्पवर्षा की।
आध्यात्मिक आयोजन के अवसर पर सहायक जेल अधीक्षक सहित मुख्य प्रहरी राजेन्द्र तिवारी, घनश्याम भाजीपाले, चुन्नीलाल हनवत, मिहीलाल पटेल, रामकुमार खंगार, दुवेन्द्र सिलावट, फैजान काजी सहित अन्य की उपस्थिति रही।

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