scriptइस नदी की टूट रही सांसे, 65 किमी में जगह-जगह टूटी जलधारा: घट रहा जिले के पहले बांध का जलस्तर | Breaking breath of this river, broken water stream at places in 65 km: | Patrika News
शाहडोल

इस नदी की टूट रही सांसे, 65 किमी में जगह-जगह टूटी जलधारा: घट रहा जिले के पहले बांध का जलस्तर

उमरार नदी पर रखा उमरिया का नाम, पूरे शहर की बुझाती है प्यास, अब अस्तित्व पर संकटपहली बार बांध से विस्थापित गांवों में नदी सूखने से नजर आने लगा टापू

शाहडोलMay 17, 2022 / 12:08 pm

Ramashankar mishra

इस नदी की टूट रही सांसे, 65 किमी में जगह-जगह टूटी जलधारा: घट रहा जिले के पहले बांध का जलस्तर

इस नदी की टूट रही सांसे, 65 किमी में जगह-जगह टूटी जलधारा: घट रहा जिले के पहले बांध का जलस्तर

शहडोल. उमरिया नगर के साथ आसपास के 25 गांवों के लिए जीवनदायिनी मानी जाने वाली उमरार नदी के स्वयं के जीवन पर संकट मंडरा रहा है। आकाशकोट के सुआसिन खोह से निकलकर लगभग 65 किमी सफर तय कर चंदिया के खैरभार में छोटी महानदी में मिलने वाली उमरार नदी की कई जगह जलधारा टूट गई है। उद्गम से प्रवाह समाप्त होने के चलते इसमें बने जिले के पहले बांध का जलस्तर भी पहली बार सबसे निचले स्तर तक खिसक गया है। अब स्थिति यह है कि जलभराव के चलते जिन गांवों को विस्थापित किया गया था, वहां टापू नजर आने लगे है। जबकि इस बांध से आसपास के लगभग 25 गांवों के खेतों तक नहरों से पानी पहुंचता था और फसल लहलहाती थी। नदी के लगातार दोहन और बिछ रहे कंक्रीट के जाल की वजह से नदी के अस्तित्व पर संकट हैं। जबकि इसी नदी के पानी से उमरिया नगर की प्यास भी बुझती थी। अधिकारी-जनप्रतिनिधि भी नदी संरक्षण को लेकर आगे नहीं आ रहे हैं।
नदी में मिल रहे 12-15 नाले-नालियां
उमरार नदी के नाम से उमरिया शहर का नाम पड़ा है। पानी से पूरे शहर की प्यास बुझती है और इसी के अस्तित्व को शहर वासी समाप्त करने में तुले हुए हैं। बताया जा रहा है कि यहां शहर के लगभग 12-15 छोटे-बड़े नालों का पानी उमरार में आकर मिलता है। जिसकी वजह से पूरी नदी मैली हो गई है। नदी की सफाई के लिए कोई भी आगे नहीं आ रहा है लेकिन इसे मैला करने में पूरा शहर लगा हुआ है।
निकाल लिए काले पत्थर, मर रही अंतर धारा
उमरार में सबसे ज्यादा काले पत्थर पाए जाते थे, इसके किनारे-किनारे गोंदिला घांस पाई जाती थी। जिसकी वजह से नदी में सबसे ज्यादा पानी संचय होता था। खनिज कारोबारियों ने इन्हे ही समाप्त कर दिया है। नदी से पत्थर निकाल लिए गए वहीं भारी वाहनों के आवागमन की वजह से इसके किनारे-किनारे पाई जाने वाली यह घास भी समाप्त हो गई। जिसके चलते नदी की अंतर धारा ही मर गई है।
जिले का पहला बांध, 25 गांवों के खेतों में लहलहाती थी फसल
उमरार में वर्ष 1982 में जिले का पहला बांध बना था। जिससे आस-पास के 25 गांवों में गर्मी के दिनों में भी हरी-भरी फसल लहलहाती थी। इन गांवों में नहर के माध्यम से सिंचाई के लिए बांध का पानी पहुंचाया जाता था। पिछले दो वर्ष से यह स्थिति है कि गर्मी के दिनो में एक बूंद पानी खेतों तक नहीं पहुंच पा रहा है। उमरार बांध बनने की वजह से विस्थापित गांव के पुराने लोग बताते हैं कि लगभग 40 वर्ष के अंतराल में पहली बार जिन गांवों में बांध का पानी भरा रहता था वहां टापू नजर आने लगे हैं। इसको लेकर अब समाजसेवी आगे आ रहे हैं। उमरिया का 12 सदस्यीय दल उमरार की परिक्रमा कर रहा है। इसके बचाव के उपाय भी बताए जा रहे हैं। दल उमरार के उद्गम से चंदिया के खैरभार में छोटी महानदी तक जाएगा।
उमरार को बचाने शुरू की परिक्रमा
उमरिया नगर की जीवनदायनी कहलाने वाली उमरार नदी के संरक्षण का समाजसेवियों ने बीड़ा उठाया है। 12 सदस्यीय दल उमरार की परिक्रमा कर रहा है। दिन में लगभग 10 किमी का सफर तय कर यह दल अलग-अलग गांवों में पहुंचकर नदी संरक्षण को लेकर लोगों से संवाद कर रहा है। उन्ही नदी का महत्व समझाने के साथ ही इसके बचाव के उपाय भी बताए जा रहे हैं। जिसमें राष्ट्रीय नदी संवाद अभियान के देवस्वरूपा नंद व रवीन्द्र के साथ बाला सिंह तेकाम व संतोष द्विवेदी टीम के साथ लोगों को प्रेरित करने का काम कर रहे हैं।

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