संभाग का इकलौता संस्कृत महाविद्यालय उपेक्षा का दंश झेल रहा है। जिसके चलते यहां न तो छात्र संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है और न ही इस ओर किसी का रुझान ही है। यही वजह है कि संस्कृत महाविद्यालय में प्रवेश लेने वाले छात्रों की संख्या साल दर साल घटती जा रही है। यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नही जब यह विद्यालय नाम का विद्यालय रह जायेगा और यहां पढ़ाने वाले तो रहेंगे लेकिन पढऩे वाला कोई नहीं होगा।
इस सत्र में संस्कृत महाविद्यालय की छात्र संख्या की ओर नजर दौड़ाई जाये तो वह बहुत ही दयनीय है। दर्ज छात्रों के आंकड़े चौका देने वाले हैं। स्नातक व स्नातकोत्तर की 10 कक्षाओं में महज 28 छात्र अध्ययनरत है। छात्रों की यह दर्ज संख्या ही महाविद्यालय की स्थिति का आंकलन करने के लिये काफी है। छात्रों के साथ ही प्राध्यापकों की स्थिति भी चौकाने वाली ही है। नाम के इस महाविद्यालय में प्राध्यापकों के महज तीन पद स्वीकृत है। जिसमें भी दो पदों में नियमित सहायक प्राध्यापक अपनी सेवा दे रहे हैं वहीं एक पद रिक्त होने पर
अतिथि शिक्षक से इसे भरा गया है। छात्र संख्या भले ही कम हो लेकिन यहां पदस्थ सहायक प्राध्यापकों को कक्षा का संचालन करना ही पड़ता है। एक सहायक प्राध्यापक को 15-16 प्रश्रपत्र पढ़ाने पड़ते हैं। जिसके चलते उन्हे परेशानी का सामना करना पड़ता है।
विद्यालय की भी यही स्थिति
संस्कृत महाविद्यालय के साथ ही संस्कृत विद्यालय का भी संचालन एक ही परिसर से हो रहा है। इस विद्यालय की स्थिति भी संस्कृत महाविद्यालय जैसे ही दयनीय है। कक्षा 6 वीं से 12 वीं तक संचालित इस संस्कृत विद्यालय की सातों कक्षाओं को मिलाकर महज 37 छात्र दर्ज है। जिन्हें पढ़ाने के लिये शिक्षकों के कुल 6 पद स्वीकृत है। जिसमें से 5 पद भरे हैं व एक पद रिक्त है। संस्कृत विद्यालय की इस स्थिति से ही देव भाषा के प्रति छात्रों के रुझान का आंकलन किया जा सकता है।
आधुनिकता की इस दौड़ में सभी तकनीकी शिक्षा की ओर भाग रहे हैं। ऐसे में देव भाषा संस्कृत को सभी भूलते जा रहे है। ऐसे में संभाग का यह इकलौता संस्कृत महाविद्यालय पूरी पूरी तरह से उपेक्षित है और दिन ब दिन यह अपना अस्तित्व खोता जा रहा है। प्रशासनिक स्तर पर भी इस महाविद्यालय की ओर कोई विशेष
ध्यान नही दिया जा रहा है। छात्रों के लिये एकमात्र छात्रावास है वह भी जर्जर स्थिति में है। छात्रों के लिये न तो रहने की समुचित व्यवस्था है और न ही अन्य कोई सुविधायें मुहैया हो रही है। यहां गरीब परिवार के बच्चे ही शिक्षा ग्रहण करने आते हैं लेकन उन्हे भी फीस भरनी पड़ती है। ऐसे में अब वह भी यहां प्रवेश लेने से कतरा रहे हैं।
संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डीबी मिश्रा कहते हैं देवभाषा संस्कृत के प्रति छात्रों का रुझान कम हो रहा है। जिस वजह से महाविद्यालय में छात्रों की संख्या घट रही है। अपने स्तर पर हमारे द्वारा प्रयास किया जाता है कि छात्रों को बेहतर शिक्षा व सुविधायें मुहैया कराई जाये।