scriptविलुप्त होने की कगार पर कालीन बुनाई केन्द्र | Carpet weaving center on the verge of extinctions | Patrika News

विलुप्त होने की कगार पर कालीन बुनाई केन्द्र

locationशाहडोलPublished: Feb 18, 2019 09:42:40 pm

Submitted by:

Ramashankar mishra

संसाधन और बजट का अभाव, 300 सिल्पी प्रभावित

Carpet weaving center on the verge of extinction

Carpet weaving center on the verge of extinction

विलुप्त होने की कगार पर कालीन बुनाई केन्द्र
संसाधन और बजट का अभाव, 300 सिल्पी प्रभावित
फोटो-१७
शहडोल. आदिवासियों को रोजगार उपलव्ध कराने और उच्च गुणवत्तायुक्त कालीन तथा काष्ट की प्रतिमा बनाने के लिए संभागीय मुख्यालय से लगे छतवई स्थित संत रविदास मध्यप्रदेश हस्त शिल्प एवं हथकरघा विकास निगम द्वारा लगभग २ करोड़ रुपए की लागत से बनाया गया कालीन बुनाई और काष्ठ प्रतिमाओं का केन्द्र संसाधन और बजट के अभाव में विलुप्त होने की कगार पर है। इसके विकास और आदिवासियों के रोजगार को लेकर प्रशासन और जन प्रतिनिधियों की उपेक्षा सामने परिलक्षित हो रही है। बताया गया है कि वर्ष १९९२-९३ में इस केन्द्र की स्थापना की गई थी और यहां लगभग ३०० आदिवासी और हरिजन महिलाओं सहित पुरुषों को प्रशिक्षित कर शिल्पी बनाया गया, लेकिन अब हालात ऐसे हैं कि जिन आदिवासी महिलाओं को रोजगार का साधन रहा अब उस केन्द्र में सिल्पियों की जगह सन्नाटा पसरा हुआ है।
साल भर में सात लाख का बजट-
आदिवासियों और हरिजनों को रोजगार उपलव्ध कराने के लिए शासन द्वारा २०१८-१९ में महज ७ लाख रुपए का बजट दिया गया है, जिससे दिया गया बजट ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहा है। बताया गया है कि इस क्षेत्र के लेदरा, बरेली, रसमोहनी, छतवई देवरी, पेलवाह, खन्नौधी सहित आसपास के गांव के लोगों को प्रशिक्षित कर उनको रोजगार के साधन उपलव्ध कराना था। इन ३०० ग्रामीणों को सिल्पी का प्रशिक्षण तो दिया गया, लेकिन अब इनके हांथो से करघा छूटता दिखाई दे रहा है।
राज्य स्तर पर मिली ख्याति-
बताया गया है कि भदोहीं और पानीपत से कालीन बनाए जाने के लिए रा-मटेरियल कन्हैया मिल के अनुबंध के अनुसार मगाया जाता है, लेकिन बजट के अभाव के कारण रा मटेरियल नहीं मिल पा रहा है। बताया गया है कि कालीन बुनाई के मामले में दो सिल्पियों रामनरेश बैगा और बिहारीलाल साहू को राज्य स्तरीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इसी तरह कई महिलाएं सावित्री देवी, माया सिंह, श्यामकली, पतरैसी, दुर्गा, शुष्मा, सहित लगभग ५० ऐसी महिला सिल्पी हैं जिन्होने अपनी कला से लोगों को लोहा मनवाया है।
यहां जाती थी कालीन- बताया गया है कि भदोहीं और पानीपत की तर्ज पर बनी कालीनें देश के चेन्नई एंपोरियम, नोएड़ा एंपोरियम, कालीकट एंपोरियम, मृगनयनी एंपोरियम भोपाल के अलावा काष्ठ की बनी मूर्तियां और आदिवासी कलाकृतियां भेजी गई हैं। वहीं क्षेत्रीय स्तर पर बांधवगढ़ उत्सव, विन्ध्य उत्सव, बाणगंगा मेला तथा शिवरात्रि पर अमरकंटक में लगने वाले मेले के दौरान इनकी डिमांड होती है। बताया गया है कि अब यह कालीन बुनाई और काष्ठ शिल्प का केन्द्र संसाधन के अभाव के कारण विलुप्त होने की कगार पर खड़ा है।
शासन से बजट की मांग
कालीन बुनाई और काष्ठ सिल्प के लिए शासन से बजट की मांग की गई है। ७ लाख रुपए का बजट इस साल मिला था, जिसमें २०-२० महिलाओं को सिल्पी का प्रशिक्षण दिया गया है। राशि के अभाव के कारण रेगुलर कालीन बुनाई और काष्ठ प्रतिमाओं का निर्माण नहीं हो पाता।
एसएस पाण्डेय
प्रभारी प्रबंधक
हस्त सिल्प केन्द्र
छतवई
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो