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गर्ल्स में कलर कान्टेक्ट लेंस का क्रेज, इस तरह आंखों का बदल रही हैं कलर

locationशाहडोलPublished: Jul 14, 2019 01:21:07 pm

Submitted by:

shubham singh

ब्लू और ब्राउन कलर आइस को लेकर है आकर्षण, महंगे के बाद भी कर रहे उपयोग

Patrika

आंखों में मेलानिन की मात्रा के हिसाब से आंखों के रंग बनते हैं

शहडोल। कलर कान्टेक्ट लेंस अब युवा पीढ़ी के बीच काफी पसंदीदा होते जा रहे हैं। रंगीन लेंस को लेकर सबसे ज्यादा गल्र्स और महिलाओं में क्रेज है। शहडोल में हर माह ८ से १० लोग अपनी आंखों का रंग इन कलर कान्टेक्ट लेंस के माध्यम से बदल रहे हैं। डॉक्टर्स की मानें तो ब्लू और ब्राउन कलर आईस को लेकर लोगों में काफी ज्यादा आकर्षण देखने को मिल रहा है। हर माह ८ से १० लोग अलग-अलग रंगों के कान्टेक्ट लेंस के लिए पहुंच रहे हैं। महंगे होने के बाद भी लोगों के बीच यह पसंदीदा बने हुए हैं। अब कान्टेक्ट लेंस चश्में के विकल्प के रूप में भी बढ़ चढ़कर सामने आ रहे हैं। कई स्टूडेंट्स और गल्र्स व महिलाएं जिन्हे चश्मा लगा होता है, वे पर्सनालिटी में सुधार के लिए कान्टेक्ट लेंस का उपयोग कर रही हैं।

हजार से 15 सौ में एक लेंस, सबसे ज्यादा युवा
कलर कान्टेक्ट लेंस सबसे ज्यादा युवाओं में देखने को मिल रहा है। विराट आई केयर की मानें तो २० से ४० साल की उम्र के लोग सबसे ज्यादा कलर आइस को लेकर आकर्षित हैं। एक सेट के लिए हजार से १५ सौ लेने में अलग-अलग कलर के लेंस ले रहे हैं। कई लोगों में तो इतना क्रेज हैं कि दो से तीन लेंस रखे हुए हैं। उनका कहना था कि ये टेंपरेरी होता है। कुछ समय बाद लोग अलग कलर का उपयोग करते हैं।

कलर कान्टेक्ट लेंस में सजगता बेहद जरूरी
जिला अस्पताल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ वारिया के अनुसार, रंगीन कॉन्टेक्ट लेंस सिर्फ अलग-अलग रंग के साथ आंखों का रंग बदल देते हैं, लेकिन लंबे समय तक इन लेंसों के पहनने पर कॉर्निया (नेत्र गोलक की ऊपरी पर्त) में खुजली, कॉर्निया में संक्रमण या अल्सर, कन्जंक्टिवाइटिस और दृष्टि में कमी जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। उनका कहना है कि नेत्र विशेषज्ञ से परामर्श लेकर कॉन्टेक्ट लेंस के बारे में कुछ सजगताएं रखकर काफी हद तक इन समस्याओं को आसानी से दूर किया जा सकता है। इससे कई नुकसान
इन तीन तरह के लेंस का उपयोग

सॉफ्ट लेंस: ये सबसे ज्यादा प्रयोग होते हैं। इन्हें आसानी से प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन इनके कुछ नुकसान भी होते हैं। इससे पहले जितनी साफ नजर नहीं हो पाती है। इंफेक्शन का भी खतरा होता है।
सेमी सॉफ्ट लेंस : ये उपयोग में आसान होते हैं और इनके आर पार ऑक्सीजन जा सकती है। इसलिए इनसे आंखों को कोई परेशानी नहीं होती है। एक दिन में इन्हें 10-12 घंटे तक पहना जा सकता है।
हार्ड लेंस : यह प्लास्टिक से बना होता है जो लचीला नहीं होता। यह छोटा होता है, इन्फेक्शन की संभावना भी कम रहती है। इस लेंस के आर पार ऑक्सीजन नहीं जा सकती है।
कई लोगों के पास दो से तीन कलर लेंस
गल्र्स और महिलाओं में ज्यादा क्रेज देखने को मिल रहा है। जिलेभर में अलग-अलग जगहों से ८ से १० लोग
कलर कान्टेक्ट लेंस लेते हैं। लोगों में ब्लू और ब्राउन कलर आइस को लेकर काफी ज्यादा आकर्षण है। कई ऐसे लोग भी हैं, जो दो से तीन कलर लेंस रखे हैं। पार्टी और अन्य समारोह के वक्त ज्यादा उपयोग होता है।
डॉ रमेश खत्री, संचालक
विराट आई केयर, शहडोल
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