कुपोषण से इस कदर शिशु को चपेट में ले रखा था कि 16 माह की उम्र में सिर्फ तीन किलो वजन था। हड्डियों से मांस चिपक गया था। पूरे शरीर में सिर्फ हड्डियों का पिंजर बचा था। इलाज के लिए पीआइसीयू और एनआरसी में भर्ती किया था लेकिन लगातार हालत बिगड़ रही। इलाज के लिए जबलपुर रेफर कर दिया था। जहां पर लगभग एक माह तक इलाज के बाद दम तोड़ दिया।
नहीं ले पा रहा था सांस, खाना तक नहीं दे पा रहे थे
कुपोषण के चलते शिशु की हालत काफी बिगड़ गई थी। स्थिति यह थी कि सांस तक नहीं ले पा रहा था। मुंह से खाना खाना भी मुश्किल था। बाद में डॉक्टरों द्वारा आइवी फ्यूड दिया जा रहा था।
कुपोषण के चलते शिशु की हालत काफी बिगड़ गई थी। स्थिति यह थी कि सांस तक नहीं ले पा रहा था। मुंह से खाना खाना भी मुश्किल था। बाद में डॉक्टरों द्वारा आइवी फ्यूड दिया जा रहा था।
मैदानी अमले से लेकर बड़े अधिकारी तक ही लापरवाही उजागर
कुपोषित बच्चे की मौत के मामले में पहले दिन से ही लापरवाही बरती गई थी। कलेक्टर ने जांच कराई थी तो मैदानी स्तर से लेकर बड़े अधिकारियों की अनदेखी सामने आई थी। कुपोषित बच्चे का मुद्दा सामने आने के बाद जांच में सामने आया था कि प्रभारी जिला कार्यक्रम अधिकारी मनमोहन सिंह कुसराम बिना पूर्व सूचना के अवकाश पर चले गए थे।
कुपोषित बच्चे की मौत के मामले में पहले दिन से ही लापरवाही बरती गई थी। कलेक्टर ने जांच कराई थी तो मैदानी स्तर से लेकर बड़े अधिकारियों की अनदेखी सामने आई थी। कुपोषित बच्चे का मुद्दा सामने आने के बाद जांच में सामने आया था कि प्रभारी जिला कार्यक्रम अधिकारी मनमोहन सिंह कुसराम बिना पूर्व सूचना के अवकाश पर चले गए थे।
कुपोषित बच्चे के इलाज में भी लापरवाही मिली थी। कलेक्टर ने सहायक संचालक राजीव गुप्ता को प्रभार दिया था। इसी तरह आंगनबाड़ी कार्यकर्ता राजकुमारी राय ने भी लापरवाही की थी। पीआइसी और एनआरसी में भर्ती करने में कोई प्रयास नहीं किया गया था। कार्रवाई के लिए कलेक्टर ने अधिकारियों को पत्र लिखा था। इसी तरह कलेक्टर ने आयुक्त को सहायक संचालक मनमोहन सिंह कुसराम और सीईओ करकेली रमेश मंडावी के बिना सूचना अवकाश पर जाने पर कार्रवाई के लिए प्रस्ताव कमिश्नर के पास भेजा था। उधर बच्चे के इलाज में लापरवाही बरतने के मामले में सुपरवाइजर गायत्री त्रिपाठी निलंबित कर दिया गया था।