साहब! अच्छे इलाज के लिए स्टॉफ के हाथ जोडऩे पड़ते हैं… पत्रिका की टीम ने गुरुवार को जब एसके अस्पताल की व्यवस्थाओं का जायजा लिया तो स्थिति बेहद डरावनी निकली। दोपहर एक से चार बजे बाद ट्रोमा वार्ड में केवल एक डॉक्टर थे। जबकि इस दौरान 10 के करीब गर्भवती महिलाओं को डिलीवरी के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया। संबंधित डॉक्टर भी गायनिक के नहीं होने के कारण केवल गर्भवती महिलाओं को भर्ती करने की औपचारिकता निभाई गई। इसके बाद गर्भवती महिला के साथ आए तीमारदार या तो कागजी कार्रवाई के लिए भटकते दिखाई दिए या उपचार के लिए स्टॉफ की गुहार लगाते दिखे। हालात यह थे कि गर्भवतियों को बिना ट्रॉली के ही प्रसव कक्ष तक ले जाया जा रहा था।
आनंदपाल ने फेसबुक पर दी धमकी, कहा-जिनका टाइम नजदीक है, वो बचना शुरू कर दें मरीज की शाम तक नहीं दी जानकारी… गांव से अपनी पत्नी को डिलीवरी के लिए लेकर आया शेर सिंह दो बजे एसके अस्पताल पहुंचा था। यहां कागजी कार्रवाई में उसका आधा घंटा खराब हो चुका था। परेशान होकर गर्भवती महिला को भी ट्रोमा वार्ड के बेड पर बैठना पड़ा। इसके बाद डॉक्टर ने उसे संभालते हुए प्रसव कक्ष की तरफ भिजवा दिया। इस दौरान भी बिना ट्रॉली ही उसे वार्ड तक पहुंचाया गया। शेर सिंह ने बताया कि शाम की छह बजे तक स्टाफ ने उसे जानकारी नहीं दी कि डिलीवरी कब होगी।
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यहां आज तक नहीं लगी ड्यूटी डिलीवरी के लिए एमसीडब्ल्यूसी वार्ड में 24 घंटे गायनिक डॉक्टर की सुविधा मौजूद रहनी चाहिए। लेकिन, अभी तक अस्पताल प्रशासन की ओर से यह व्यवस्था लागू नहीं की गई है। जबकि वार्ड में 24 घंटे डॉक्टर लगाने की मांग पहले भी कई बार उठाई जा चुकी है।
पत्रिका से बातचीत में बोले झाझडिय़ा, कहा-खेल नीति तोड़ रही युवाओं के अरमान हर महीने होती है 600 डिलीवरी एसके अस्पताल में हर महीने करीब 600 डिलीवरी होती हैं। इनमें प्रतिदिन भर्ती होने वाली पांच से छह गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी ऑपरेशन के जरिए की जाती है। डॉक्टरों के अनुसार डिलीवरी के लिए जिले सहित नागौर, चूरू, झुंझुनूं से महिलाओं को भिजवाया जाता है।
फतेहपुर रोड की फरीदा दोपहर एक बजे बाद डिलीवरी के लिए एसके पहुंची। प्रसव पीड़ा हिम्मत तोड़ रही थी। लेकिन, ट्रोमा वार्ड की औपचारिकता पूरी करने के लिए करीब 30 मिनट वह वहीं खड़ी रही। इसके बाद परिजन उसे बिना ट्रॉली के प्रसव कक्ष तक लेकर पहुंचे। यहां डॉक्टर की जगह केवल नर्सिंग स्टाफ था। बिना देखरेख के करीब घंटाभर उसे तड़पना पड़ा। इसके बाद नर्सिंग स्टाफ द्वारा उसकी डिलीवरी करा दी गई। फरीदा की जेठानी आबिदा और उसके पति असमल का कहना था कि जब तक डिलीवरी नहीं हुई। बिना डॉक्टर के उनकी सांसे भी थमी सी रही।
डॉक्टरों की कम संख्या के अनुसार एमसीडब्ल्यूसी वार्ड में 24 घंटे गायनिक डॉक्टर की व्यवस्था संभव नहीं है। बावजूद इसके गर्भवती महिला या प्रसूता को बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने का प्रयास रहता है। हालांकि, मेडिकल कॉलेज शुरू हो जाने के बाद यह समस्या नहीं रहेगी।
डा. एसके शर्मा, पीएमओ