शाहडोलPublished: Apr 21, 2020 08:58:07 pm
brijesh sirmour
गांवों के बड़े-बुजुर्ग बांट घरों में बांट रहे है बेहतर जीवन के अनुभव
नशा से दूर होने पर महिलाओं में खुशी तो छोटे बच्चों को मिलने लगा जीवन का आनंद
शहडोल. संभागीय मुख्यालय से करीब आठ किलोमीटर दूर स्थित ग्राम ङ्क्षसदुरी के जिस मंच पर कभी फड़ सजते थे। युवाओं की महफिलें जमती थी और लोगों में कभी तकरार तो कभी कशमकश होती है। वहां आज सन्नाटा पसरा हुआ है। लॉकडाउन ने सभी ग्रामीणों को अपने-अपने घरों में रहने को विवश कर दिया है। जिसका फायदा यह हुआ कि घर के बुजुर्गों को परिवार को ज्यादा समय देने का मौका मिलने लगा और वह अपने जीवन के अनुभवों को परिवार के बीच बांटने लगे। सबसे ज्यादा घर के बच्चों को बुजुर्गों के साथ रहने का मौका मिला, तो किस्से कहानियों के माध्यम से बच्चों को जीवन का आनंद आने लगा। इस गांव की महिलाओं का सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि लॉकडाउन ने गांव के बड़े बुजुर्गों और युवाओं को नशा से काफी दूर कर दिया है।
नशा को छोड़ नाती-पोतों पर लगाया ध्यान
ग्राम ङ्क्षसदुरी के बुजुर्ग शंभूलाल पटेल ने बताया कि गांव के मंच पर जब चौपाल लगती थी तो कभी बीड़ी तो कभी पान गुटखों का दौर भी चलता था, मगर जब से लॉकडाउन हुआ है, तब से वह घर पर ही रहकर नाती-पोतों के साथ खेलते हैं और उनको किस्से कहानी सुनाते है।
गांव में नहीं होने देंगी बाल-विवाह
गांव की बुजुर्ग महिला संतरिया पटेल ने बताया कि इन दिनों वह परिवार के छोटे बच्चों के साथ आगामी 26 अप्रैल को अक्षय तृतीया पर गुड्डे-गुडिय़ों के ब्याह रचाने की तैयारी कर रही है। उन्होने बताया कि इस बार गांव में वह बाल-विवाह कदापि नहीं होने देगी।
नहीं सजने देते ताश के पत्तों के फड़
ग्राम सिंदुरी के बुजुर्ग शेखलाल पटेल ने बताया कि जब से लॉकडाउन लगा है, तब से वह गांव की गलियोंं में घूम-घूमकर ताश के पत्तों के फड़ सजाने वालों की तलाश करते है। उन्हे इस बात की खुशी है कि अब गांव में कहीं भी ताश के पत्तों के फड़ नहीं सजते हैं।