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साहब.. इसी झोपड़ी में ठंड गुजार रहा था अनुराज, इलाज के लिए सिर्फ तीन सौ रुपए थे, बाहर से मंगाते थे दवा

locationशाहडोलPublished: Dec 04, 2020 12:17:28 pm

Submitted by:

amaresh singh

नवजात की मौत के बाद छलका परिजनों का दर्द, बोले- मौत के बाद भी नहीं दिया था घर तक जाने वाहन

Even after death, the vehicle was not delivered to the house

साहब.. इसी झोपड़ी में ठंड गुजार रहा था अनुराज, इलाज के लिए सिर्फ तीन सौ रुपए थे, बाहर से मंगाते थे दवा

शहडोल। साहब… पूरा परिवार झोपड़ी में ठण्ड गुजार रहा है। मजदूरी के सिर्फ तीन सौ रुपए बचे हुए थे। बच्चे की हालत बिगड़ी तो इलाज कराने शहडोल ले गए। इस वक्त भी हमारे पास सिर्फ तीन सौ रुपए थे। सोचा था सरकारी अस्पताल है, अच्छा इलाज होगा, मुफ्त में दवाइयां मिल जाएंगी लेकिन अस्पताल से बाहर से दवाइयां मंगाते थे। कहते थे तुम्हारे बेटे को भाप देना है, बाहर से दवाइयां ले आओ। उनके लिए ज्यादा पैसे नहीं होंगे लेकिन मैंने अपने कलेजे के टुकड़े को बचाने के लिए सबकुछ लगा दिया। इतना कहते हुए नवजात के पिता की आंखें भर आती हैं। पिता राजेश बताते हैं, बच्चे की मौत के बाद मदद नहीं मिली। पहले शव ले जाने के लिए भटकते रहे लेकिन मदद नहीं मिली। बाद में गांव के लोगों ने वाहन भेजा और शव लेकर गए। सिंहपुर अंतर्गत सेमरिहा गांव निवासी तीन माह के अनुराज बैगा की मौत के बाद परिवार बार सदमे से बाहर नहीं आ सके है।

मालिश के वक्त फफकने लगती है दादी, मां बेसुध
मां बेसुध है। मालिश का समय होने पर दादी फफक फफककर रोने लगती है। आंसुओं की धार मां का दर्द बयां कर रही है। जब मालिश का समय होता है दादी रोने लगती है। अनुराज अपनी दादा और दादी का दुलारा था। दादी हर दिन उसकी मालिश किया करती थी। मां तो उसकी मौत के बाद से बेसुध हो चुकी है। बच्चे के लिए उसकी आंखों से लगातार आंसू छलक रहे हैं। दादी ज्ञानमति बैगा बच्चे की मौत के बाद से खाना भी ठीक से नहीं खा रही हैं। पूरे परिवार में मातम पसरा हुआ है। अनुराज से पहले उसका एक पांच साल का बड़ा भाई अनीश बैगा भी है। अनुराज का पांच साल बाद जन्म हुआ था। इसलिए सबसे छोटा होने के चलते घर में वह सभी का दुलारा था। दादी कहती है, शायद अच्छा इलाज मिलता तो उसे बचाया जा सकता था।

वेंटिलेटर न होने पर हुई थी बहस, बाद में कहा-मेडिकल कॉलेज से ला रहे
पिता राजेश बैगा ने बताया कि अनुराज लगातार रो रहा था। इस पर उसे हम लोग डॉक्टर को दिखाने जिला अस्पताल में 27 नवंबर को लेकर पहुंचे। यहां डॉक्टरों ने उसे देखने के बाद पीआईसीयू में भर्ती करा दिया। इसके बाद उसका जब इलाज चलने लगा तो मौत से एक दिन पहले डॉक्टरों ने बताया कि उसकी हालत गंभीर है। यहां पर वेंटिलेटर की सुविधा नहीं है। बच्चे को जबलपुर रेफर कर रहे हैं। इस पर हम लोगों से बहस हो गई। बाद में कुछ समय बाद वे लोग बोले कि मेडिकल कॉलेज से वेंटिलेटर लेकर आए हैं और उसे लगाया। इस दौरान बच्चे को भांप देने के लिए दवाइयां बाहर से खरीदकर लाने के लिए कहा गया। हम लोगों के पास मात्र तीन सौ रुपए थे,जिसमेंं से हमने उसके लिए दो सौ रुपए की दवाइयां खरीदी। इलाज के दौरान डॉक्टरों ने लगातार लापरवाही बरती। इससे उसकी 30 नवंबर की सुबह मौत हो गई।

कच्चे मकान में रहता है परिवार, ठंड में गुजर बसर
बैगा परिवार कच्चे मकान में रहता है। आवेदन के बाद भी उसके अभी तक पीएम आवास नहीं मिला है। ठंड झोपड़ी में गुजारते थे। पीएम आवास के लिए सरपंच के यहां कई बार गुहार लगा चुके हैं लेकिन पीएम आवास नहीं मिल रहा है। शौचालय भी खुद के पैसे से बनाया है लेकिन उसका पैसा बैंक की योजना के तहत नहीं मिला है। राजेश बैगा सहित परिवार के अन्य लोग जीवन-यापन के लिए मजदूरी करते हैं। घर की आर्थिक हालत भी ठीक नहीं है। मृत बच्चे के घर पर आने के बाद गांव का सरपंच आया था लेकिन उसने किसी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं की। इसके अलावा कहीं से किसी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं मिली है।

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