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मध्यप्रदेश के इस जिले का हर चौथा किसान इस प्रथा से परेशान

locationशाहडोलPublished: Apr 21, 2018 12:07:45 pm

Submitted by:

shivmangal singh

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Every fourth farmer in the district is upset with this Pratha

शहडोल- वर्तमान में जिले के 886 गांवों में करीब एक लाख 68 हजार 326 किसान हैं और जिले का लगभग हर किसान ऐरा प्रथा से खासा परेशान है और उसे प्रतिवर्ष खेतों में खड़ी फसल का 30 से 40
फीसदी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इस समस्या का समाधान भी किसानों के पास ही है, लेकिन कुछ पशुपालकों की लापरवाही का खामियाजा सभी किसानों को भुगतना पड़ रहा है।

जिले में ऐरा प्रथा अभिशाप के रूप में उभर कर सामने आ रहा है। इसको समाप्त करने के लिए प्रशासनिक स्तर पर कई प्रयास किए गए हैं, लेकिन उनके आज तक कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आ पाए हैं और जिले में ऐरा प्रथा आज भी जड़वत बनी हुई है। इस समस्या पर जिले किसानों ने बैठकें कर काफी चिन्तन मनन किया है, मगर उसके कोई सार्थक परिणाम आज तक नहीं आए हैं।

गांवों में पशुपालकों द्वारा पालतू जानवरों को खुले में छोड़ देते है और उनको गौशाला या अपने घरों में बांधने की कोई व्यवस्था नहीं करते। नतीजतन ऐसे जानवर अपना पेट भरने के लिए दिन-रात गांव व उसके आसपास के खेतों में विचरण कर अन्नदाताओं की फसलों को चराते है।
जिससे संबंधित किसान की फसल उत्पादन पर विपरीत असर पड़ता है और उसकी लागत घट जाती है। स्वतंत्र विचरण करने वाले मवेशियों को रोकने के लिए कभी-कभी गांवों में लड़ाई-झगड़ा भी हो जाता है, लेकिन उनकी समस्याओं का निदान नहीं होता।

बड़े आंदोलन की जरूरत
जिले के अधिकांश किसानों का कहना है कि जिले के कई गांवों की चरनोई भूमि बंजर पड़ी हुई है और कांजी हाउस दुर्दशा के शिकार है। जिससे मवेशी स्वतंत्र विचरण कर किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचा रहेे हैं। इसके लिए जिले में एक बड़े आंदोलन की जरूरत महसूस की जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों की घोषित अधिकांश चारागाह की जमीन पर बेजा कब्जा होने की वजह से पशुओं का निवाला छिन गया है। वह गांव के खेतों में फसल चरने को मजबूर होते हैं और गांव से खदेड़े जाने पर मवेशियों का पलायन शहरी क्षेत्र में बढ़ गया है। गांवों में जब मवेशियों को खेतों से खदेड़ा जाता है तब संबंधित पशु का मालिक लाठी लेकर लडऩे को तैयार हो जाता है।

इनका कहना है
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंन्द्र सिंह के मुताबिक यदि पशुपालक अपने मवेशियों को घरों में बांधकर रखे और उनके खानपान पर विशेष ध्यान दे तो यह प्रथा स्वमेव समाप्त हो जाएगी। इसके अलावा इस प्रथा को रोकने के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर कांजी हाउस को दुरूस्त कर उसका विधिवत संचालन किया जाना आवश्यक हैं। ऐरा प्रथा से निजात पाने के लिए सबसे पहले किसानों और पशुपालकों को जागरूक होना जरूरी है।

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