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ससुर थे नेहरू सरकार में सलाहकार, पुत्रवधू जी रहीं मुफलिसी में

locationशाहडोलPublished: Mar 04, 2018 01:01:45 pm

Submitted by:

shivmangal singh

संकटों से जूझ रहा पद्म भूषण डॉ. वेरियर ऐल्विन का परिवार

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अजय जैन, करंजिया (डिंडोरी). नेहरू सरकार में आदिवासी मामलों के सलाहकार रहे डॉ. वेरियर एल्विन की पुत्रवधू और उनके पोते मुफलिसी में गुजर-बसर कर रहे हैं। इतना ही नहीं वेरियर की पत्नी कोशी एल्विन भी गरीबी से जूझतीं रहीं और चल बसीं। सबसे बड़ी त्रासदी ये है कि इस गरीब परिवार के पास पद्म भूषण एल्विन की यादें तक नहीं बची हैं। मदद दिलाने के बहाने मीडिया और एनजीओ के लोग एक-एक करके उनकी यादें भी घर से ले गए हैं।
आदिवासियों के जीवन पर अध्ययन करने एवं पद्म भूषण अवार्ड से सम्मानित डॉ. वेरियर एल्विन का परिवार उनके जाने के बाद से ही मुसीबतों से जूझ रहा है। डिंडोरी जिले के ग्राम रैतवार मे रहने वाली आदिवासी महिला कोशी बाई से एल्विन ने 1941 में शादी की थी। डॉ. वेरियर एल्विन की पत्नी कोशी बाई के देहांत के बाद उनके परिवार मे उनकी बहू शांति एल्विन एवं उनके पोती 32 वर्षीय आकृति, पोते प्रमोद एवं अरुण रहते हैं।
अपना घर भी नहीं परिवार के पास
डॉ वेरियर एल्विन की पुत्रवधू शांति ने बताया कि उनका परिवार मजदूरी करके किसी तरह चल रहा है। वर्ष2010 में वह आशा कार्यकर्ता बन गई है। रोजी-रोटी का वही एक मात्र जरिया है। बताया कि संपत्ति के नाम पर महज एक टूटी झोपड़ी है। उसके भी उनके पास कोई कागजात नहीं हैं। बताया कि कोशी बाई को वित्तीय सहायता के रूप मे 1000 रुपये की पेंशन दी जा रही थी, जो उनकी मृत्यु के दो साल पहले ही बंद कर दी गई थी।

बेटे के अंतिम संस्कार के लिए नहीं थे पैसे
कोशी एल्विन और वेरियर एल्विन का साथ महज आठ साल का रहा। एल्विन ने कोशी से वर्ष 1941 में शादी की थी, 1949 में दोनों का तलाक हो गया था। इस बीच कोशी के दो बेटे हुए। बड़े बेटे जवाहर एल्विन की मौत पहले ही हो गई थी। दूसरे बेटे विजय की मौत 2005 में हुई। कोशी एल्विन भी वर्ष 2006 में चल बसीं। शांति ने बताया कि जब उनके पति विजय की मौत हुई तो उनके कफन के लिए भी कोशी बाई के पास पैसे नहीं थे। एक स्थानीय व्यक्ति ने दो सौ रुपए दिए तब उनका अंतिम संस्कार हुआ।

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डा. वेरियर एल्विन एक नजर
डा. वेरियर एल्विन का जन्म इंग्लैण्ड में 29 अगस्त 1902 को हुआ। एल्विन ने ऑक्सफोर्ड से पढ़ाई की और एक मिशनरी के तौर पर वे 192७ में भारत आए। उन्होंने यहां आकर पुणे में क्रिश्चियन सर्विस सोसायटी ज्वाइन की। इसके बाद उन्होंने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पूर्वी महाराष्ट्र का भ्रमण किया। गांधी के प्रभाव में आने की वजह से उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने मध्यप्रदेश, उड़ीसा और पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में आदिवासी जीवन पर अध्ययन किया। वे नेफा (नार्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी) के साथ जुड़े और उसके बाद वे शिलांग में ही बस गए।
आदिवासी समुदाय के बीच अध्ययन को देखते हुए उन्हें 1945 में एंथ्रोपोलॉजिल सर्वे ऑफ इंडिया का डिप्टी डायरेक्टर बनाया गया। आजादी के बाद उन्होंने भारत की नागरिकता ले ली। एल्विन को पं. जवाहरलाल नेहरू ने आदिवासी मामलों का सलाहकार नियुक्त किया। वेरियर एल्विन की आत्मकथा ‘द ट्राइबल वल्र्ड ऑफ वेरियर एल्विनÓ को साहित्य अकादमी अवॉर्ड भी दिया गया। एल्विन को 1961 में पद्मभूषण अवॉर्ड भी मिला। ‘द बैगा’ उनकी सबसे मशहूर पुस्तक है। एल्विन की 1964 में दिल्ली में हार्टअटैक से मौत हो गई।
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