शाहडोलPublished: Jul 06, 2022 01:05:50 pm
Ramashankar mishra
नीट की परीक्षा पास कर इंदौर से एमबीबीएस कर रहा आदिवासी परिवार का छात्रबेटे के खर्च के लिए भेज देते हैं मजदूरी, सूद में रुपए लेकर करा रहे पढ़ाईप्रशासन और बड़े उद्योगों से नहीं मिली मदद, बैंकों से भी निराशा ही लगी हाथ
बेटे को डॉक्टर बनाने पिता का संघर्ष, कर्ज लेकर जमा की फीस, एक एकड़ भूमि, उसे भी बेचने तैयार
शहडोल. मां बीमार होती थी इलाज के लिए ले जाता था। जहां डॉक्टर को इलाज कर दूसरों की जान बचाता देख डॉक्टर बनने का सपना संजो लिया। इस सपने को साकार करने के लिए पूरी लगन से पढ़ाई की और नीट की परीक्षा पास कर ली। अब उसके सपने के सामने सबसे बड़ी समस्या पैसे की आन खड़ी हुई। मेहनत मजदूरी कर अपना व अपने परिवार का पेट पालने वाले माता-पिता में इतना सामथ्र्य नहीं था कि बेटे की पढ़ाई के लिए पैसे जमा कर सकें। फिर भी उन्होने हार नहीं मानी और समूह, साहूकार व जहां काम करते हैं वहां से कर्ज लेकर बेटे की फीस जमा कर पढ़ाई के लिए इंदौर भेज दिया। अब पूरे माह मेहनत मजदूरी करने के बाद जो भी पैसे मिलते हैं वह उन्हे बेटे को खर्चे के लिए भेज देते हैं। ये कहानी है जिला मुख्यालय से लगभग 20 किमी दूर ग्राम नवलपुर के सोन टोला निवासी बलीराम बैगा की। जिसने शासकीय विद्यालय से हायर सेकेण्ड्री तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद घर पर रहकर तैयारी की और दूसरी बार में नीट की परीक्षा पास कर इंदौर के एएमसीआई मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढाई कर रहा है।
घर में रहकर की पढ़ाई, दूसरी बार में हुआ सफल
बलीराम डॉक्टर तो बनना चाहता था लेकिन उसका परिवार इतना सक्षम नहीं था कि वह प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए बाहर जाकर कोचिंग कर सके। इसके लिए उसने घर पर रहकर ही तैयारी प्रारंभ की। वर्ष 2020 में उसने नीट की परीक्षा दी जिसमें सफल नहीं हो पाया। जिसके बाद वह और कड़ी मेहनत करने लगा उसकी यह मेहनत रंग लाई और सितम्बर 2021 में दूसरे अटेम्प्ट में उसने नीट की परीक्षा उत्तीण करने में सफल हो गया। बलीराम का कहना है कि वह एमबीबीएस के बाद एमडी एमएस करने के बाद अपने माता-पिता के सभी सपनों को साकार करना चाहता है।
मेहनत मजदूरी कर करते हैं गुजारा
बलबीर के पिता ननतोरबा व मां जानकी बाई दोनो ही मेहनत मजदूरी करते हैं। ननतोरबा महीने भर की मजदूरी के बाद जो भी पैसे पाते हैं उसे वह बेटे के खर्चे के लिए भेज देते है। दूसरों की जमीन अधिया में लेकर खेती करते हैं और जानकी बाई थोड़ा बहुत मजदूरी करती है जिससे घर का गुजारा होता है।
जमीन के नहीं मिल रहे थे दाम, कर्ज लेकर जमा की फीस
नवलपुर के सोन टोला निवासी ननतोरबा बैगा अपने बेटे का सपना किसी भी कीमत में पूरा करना चाहते थे। नीट की परीक्षा पास करने के बाद एमबीबीएस में प्रवेश के लिए फीस जमा करनी थी। जिसके लिए वह अपनी कुल 1 एकड़ जमीन बेचने तैयार था। इसके लिए उसने काफी प्रयास भी किया लेकिन इतने कम पैसे मिल रहे थे कि उससे फीस जमा नहीं होती और जमीन भी हाथ से चली जाती। ऐसे में फीस जमा करने के लिए पिता ने समूह, साहूकार और जहां काम करता है वहां से कर्ज लिया। इसके बाद भी पूरे पैसे एकत्रित नहीं हुए तो अपनी जान-पहचान वालों से भी पैसे लिए और बेटे की फीस जमा की।
कहीं से भी नहीं मिली मदद, बैंक ने भी लौटाया
बेटे के मेडिकल कॉलेज में दाखिले के परिवार के सदस्यों ने सभी प्रयास किए लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं मिली। आस-पास बड़े उद्योग भी हैं। उसी गांव से गैस भी निकाली जा रही है। कुछ दूरी पर पेपर मिल भी है, उन्होने भी इस आदिवासी परिवार की कोई विशेष मदद नहीं की। इस बीच बलबीर के पिता ने बैंक के भी चक्कर काटे लेकिन एडमीशन के पहले कोई भी बैंक कर्ज देने के लिए तैयार नहीं थे। जबकि मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए ही फीस जमा करने भटक रहे थे।