ये व्यथा है गोहपारू के सोन टोला में रहने वाले उस मां की, जिसे एक साल पहले दलालों से बहला-फुसलाकर अपहरण कर लिया था और मेरठ में सौदा कर दिया था। लॉकडाउन में फैक्ट्रियां और उद्योग बंद हुए तो किशोर के हाथ से काम छूट गया। ठेकेदारों ने छोड़ दिया तो किसी तरह चंदा करके वापस अपने गांव लौट आया। मां मुन्नी बाई कहती है, घर पर कोई नहीं था तब बेटे को ले गए थे। वापस आते ही पूरे गांव से लेकर शहर तक ढूंढा था।
लोगों को कहता था-किराया दूंगा, चलो लेकिन सबने साथ छोड़ा
गांव लौटै किशोर के पिता अमृतलाल बताते हैं, घर की जिम्मेदारियां थी। आर्थिक संकट था, फिर भी बेटे की तलाश के लिए दिल्ली और महाराष्ट्र भी गया लेकिन नहीं मिला। लोगों को कहता था किराया भी दूंगा। मजदूरी भी दूंगा लेकिन सबने साथ छोड़ दिया था। उम्मीद छोड़ दी थी, लॉकडाउन नहीं होता तो शायद कभी बेटा वापस भी नहीं आता। पुलिस में भी शिकायत की थी। थाने जाता था तो पुलिस कहती थी ढूंढ रहे हैं, जल्द मिलेगा।
रात तीन बजे से कराते थे काम, नहीं देते थे पैसा
किशोर के अनुसार, मेरठ में ले जाकर दूसरे व्यक्ति ने पैसा ले लिया था। यहां पर रात तीन बजे से काम कराते थे। मना करने पर मारपीट भी करते थे। पैसा मांगने पर बोलते थे तुम्हारे घर भेज दिया है। घर वालों से कभी बात नहीं करने देते थे। गांव जाने के लिए कहने पर मारपीट और प्रताडऩा दी जाती थी।
जब तक हिम्मत थी तलाश किया, तीन साल बाद लॉकडाउन में लौटा घर
शहडोल के अमलाई निवासी एक किशोर ने तीन साल बाद घर वापसी की है। पढ़ाई के दबाव और परिजनों की डांट के बाद किशोर घर से भाग गया था। दूसरे जिले चला गया था। कुछ दिन फुटपाथ पर रातें गुजारी। बाद में मजदूरी शुरू कर दी थी। कोरोना लॉकडाउन में फैक्ट्रियां बंद हुई तो हाथ से रोजगार छूट गया। खाने का संकट आया तो किशोर ने घर वापसी की। तीन साल बाद घर आए लापता किशोर को देख परिजनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पिता कहते हैं, जब तक हिम्मत थी गांव और शहर में तलाश की। नहीं मिली तो पोस्टर चिपकाए। महानगरों में जाकर होटल और गली – चौराहों पर बेटे को तलाशते दिन- रात बिताए लेकिन कहीं नहीं मिला। तीन साल बाद किशोर ने घर वापसी की है। शुरुआत के एक- दो साल हमने बहुत तलाश की थी लेकिन जब नहीं मिला तो हमने उम्मीद छोड़ दी थी। पिता कहते हैं, कोरोना के चलते भले ही संकटकाल हो लेकिन लॉकडाउन की वजह से बेटे ने वापसी की है। अब अच्छे से पढ़ाकर नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे।
हर साल सैकड़ों अगवा, कोरोना काल में 15 बच्चे लौटे घर
आदिवासी अंचल में हर साल सैकड़ों बच्चों को रोजगार और अच्छी मजदूरी का प्रलोभन देकर अगवा कर लिया जाता है। गांव-गांव दलाल सक्रिय हैं। बहला-फुसलाकर अगवा करने के बाद बच्चों का दूसरे प्रांत में सौदा कर देते हैं। इसके बाद महानगरों में बंधक बनाकर बच्चों से मजदूरी कराई जाती है। पूर्व में शहडोल के आदिवासी अंचलों में मानव तस्करी के बड़े नेटवर्क का पुलिस ने खुलासा किया था। यहां से पांच सौ से ज्यादा बच्चों को पुलिस ने बंधनमुक्त भी कराया था। अभी भी पांच सैकड़ा से ज्यादा बच्चे ऐसे हैं, जिन पर गुमशुदगी दर्ज है। सालों पहले घर से दहलीज लांघी थी लेकिन वापस नहीं आए। कोरोना संकटकाल में उद्योग और फैक्ट्रियां बंद होने की स्थिति में हाथ से रोजगार छूट गया है। इस स्थिति में ठेकेदारों ने ऐसे मजदूरों को भी छोड़ दिया है। पुलिस क्राइम रिकार्ड के अनुसार, शहडोल में लॉकडाउन से लेकर अब तक 15 बच्चे ऐसे हैं, जो खुद से गांव आए हैं।