वन में बसे भील समुदाय को गंगा मां से मिली थी शबरी
शाहडोल
Published: May 23, 2022 12:22:38 pm
शहडोल. जनपद पंचायत सोहागपुर अंतर्गत कंकाली माता मंदिर परिसर में भक्तिमती शबरी और निषादराज गुह्य नाटक का मंचन किया गया। जिसमें भक्तिमती शबरी के पूर्व जन्म के साथ ही शबरी अवतार में भगवान राम के प्रति अगाध भक्ति का मंचन किया गया। उल्लेखनीय है कि रामकथा साहित्य में वर्णित वनवासी चरित्रों पर आधारित वनवासी लीलाओं का मंचन किया जा रहा है।
इसी तारतम्य कंकाली मंदिर अंतरा में भी डक्त नाट्यों का मंचन किया गया। वनवासी लीला नाट्य भक्तिमति शबरी कथा में बताया कि पिछले जन्म में माता शबरी एक रानी थीं जो भक्ति करना चाहती थीं लेकिन माता शबरी को राजा भक्ति करने से मना कर देते हैं। तब शबरी मां गंगा से अगले जन्म भक्ति करने की बात कहकर गंगा में डूब कर अपने प्राण त्याग देती हैं। अगले दृश्य में शबरी का दूसरा जन्म होता है और गंगा किनारे गिरि वन में बसे भील समुदाय को शबरी गंगा से मिलती हैं। उनका विवाह करने का प्रयोजन किया जाता है लेकिन जानवरों की बलि देने का विरोध कर मतंग ऋषि के आश्रम में पहुंचती हैं, जहां ऋषि मतंग माता शबरी को दीक्षा देते हैं। अत्यधिक वृद्धावस्था होने के कारण मतंग ऋषि माता शबरी से कहते हैं कि इस जन्म में मुझे तो भगवान राम के दर्शन नहीं हुए लेकिन तुम जरूर इंतजार करना भगवान जरूर दर्शन देंगे। लीला के अगले दृश्य में गिद्धराज मिलाप, कबंद्धा सुर संवाद, भगवान राम एवं माता शबरी मिलाप प्रसंग मंचित किए गए। भगवान राम एवं माता शबरी मिलाप प्रसंग में भगवान राम माता शबरी को नवधा भक्ति कथा सुनाते हैं और शबरी उन्हें माता सीता तक पहुंचने वाले मार्ग के बारे में बताती हैं। लीला नाट्य के अगले दृश्य में शबरी समाधि ले लेती हैं।
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