अचरज की बात तो यह है कि बीते ५ साल के दौरान जिले की लगभग 391 पंचायतों में से एक भी ग्राम पंचायत ने मटेरियल परीक्षण नहीं कराया है, जबकि मनरेगा से लेकर अन्य शासकीय योजनाओं के निर्माण कार्य कराए जा रहे हैं। हाल ऐसे हैं कि बड़े ठेकेदार से लेकर नपा और अन्य सरकारी विभाग पालीटेक्निक से मनमानी प्रमाण पत्र लेकर सरेआम मनमानी गुणवत्ताहीन निर्माण करा रहे हैं।
अरबों के भवन और सड़क का निर्माण
जिले में मेडिकल कॉलेज से लेकर इंजीनियरिंग कॉलेज, यूनिवर्सिटी, नगरपालिका द्वारा माडल सड़क, पीडब्लूडी और आरईएस द्वारा भवन और सड़क निर्माण, वन विभाग और हाउसिंग बोर्ड द्वारा भवन निर्माण के अलावा पीआईयू द्वारा जिले के हर ब्लाकों में करोड़ों रुपए की लागत से कन्या परिसर निर्माण जैसे महत्वपूर्ण कार्य कराए जा रहे हैं, लेकिन इन भवनों में उपयोग किए जा रहे मटेरियलों की टेस्टिंग में विभागीय अधिकारी और ठेकेदार तथा ग्राम पंचायतों के सचिव मनमानी कर रहे हैं। ऐसे में मटेरियल टेस्टिंग नहीं होने से निर्माण कार्यों की गुणवत्ता को लेकर तकनीकी जानकार स्वयं सवाल उठा रहे हैं।
हर मैटीरियल की टेस्टिंग की सुविधा
संभागीय मुख्यालय में शासन द्वारा लगवाई गई मशीनें डिजिटल और ऑटोमैटिक हैं। इन मशीनों के माध्यम से रेत, सीमेंट, गिट्टी, मिट्टी, मुरुम, पत्थर के अलावा लोहे और सरिया से लेकर हर सामग्री की जांच और परीक्षण की सुविधा होने के बावजूद सरकारी मशीनों का उपयोग नहीं होने से जहां एक ओर मशीनें जंग खा रही हैं, वहीं बिना परीक्षण कराए ही मनमानी घटिया और गुणवत्ताहीन कार्य लगातार पांच सालों से अधिक समय से कराए जा रहे हैं। इस ओर संभाग के प्रशासनिक अधिकारी तक मामले को नजर अंदाज कर रहे हैं।
मशीनें क्यों लगाईं, जब टेस्ट ही नहीं कराना
सिविल विभाग के सहायक यंत्री एमके शुक्ला के मुताबिक जिले में शासन द्वारा लगाई गई डिजिटल मशीनों से सरकारी विभाग और ठेकेदारों द्वारा मैटीरियल का बिना परीक्षण कराए निर्माण कार्य घटिया स्तर के कराए जा रहे हैं। इससे गुणवत्ता प्रभावित होती है, आखिर किस लिए मशीनें लगाई गई हैं जब परीक्षण ही नहीं कराया जाता।