scriptअगर इस नेता की पत्नी उतरी चुनाव में तो मध्यप्रदेश के बड़े-बड़े दिग्गज हो जाएंगे चित | if this Leader's wife landed in election.... | Patrika News

अगर इस नेता की पत्नी उतरी चुनाव में तो मध्यप्रदेश के बड़े-बड़े दिग्गज हो जाएंगे चित

locationशाहडोलPublished: Mar 13, 2018 11:50:19 am

Submitted by:

shivmangal singh

पढि़ए पूरी खबर…

Interesting stories of Narmada Parikrma Sharing in social media

Shubham baghel

शहडोल- सोशल मीडिया की ताकत एक पत्रकार से अधिक कौन समझ सकता है, पत्रकार यदि नेता बनने की राह पर हो तो कहने ही क्या ? हम बात कर रहे हैं दिग्विजय सिंह की पत्नी अमृता सिंह की। इस समय दिग्विजय सिंह और उनकी पत्नी अमृता सिंह पैदल ही नर्मदा यात्रा पर निकले हुए हैं। इस यात्रा के अमृत में डूबकर अमृता सिंह कदम दर कदम निखर रहीं हैं। इसका सबूत है उनका फेसबुक अकाउंट।
यात्रा में वे एक मंजे हुए राजनेता की तरह लोगों को प्यार बांंट रहीं हैं। आदिवासी महिलाओं, बच्चों को गले लगा रहीं हैं। उन्हें अपने इमोशंस की डोर में बांध रहीं हैं। इसके तुरंत बाद वे पत्रकारों जैसी तेजी दिखाते हुए सोशल मीडिया पर गांव-गरीबी और गलियों की दुर्दशा को अपडेट भी कर रहीं हैं। जिस तरह से अमृता सिंह लगातार दिग्विजय सिंह के साथ कदम दर कदम आगे बढ़ रही हैं, अपने इस नर्मदा यात्रा के दौरान लगातार नए-नए लोगों के बीच जा रही हैं, मिल रही हैं, उन्हें समझ रही हैं, अगर वो चुनाव में उतर गईं और उन्हें कहीं से टिकट मिल गया। तो दिग्विजय सिंह की पत्नी बड़े-बड़े नेताओं को चित कर सकती हैं। क्योंकि इस नर्मदा यात्रा के दौरान उनकी भी पॉपुलरिटी उतनी ही बढ़ रही है।

मप्र के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह और पत्नी अमृता सिंह के नर्मदा परिक्रमा का जत्था इन दिनों नर्मदा घाटों से सटे आदिवासी अंचलों से गुजर रहा है। आध्यात्मिक नर्मदा यात्रा से गुजरते हुए वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की पत्नी अमृता कई किस्सों को सोशल मीडिया में लगातार साझा कर रही हैं। यात्रा के दौरान नर्मदा किनारे बसे आदिवासी गांवों को जकड़े अंधविश्वास, लाडलियों के साथ परायापन, कुरीतियां और सरकार की कमियों को भी उजागर कर रही हैं।

Interesting stories of Narmada Parikrma Sharing in social media

वो सोशल मीडिया में बता रही हैं कि किस तरह आदिवासी आज भी पिछड़ेपन से गुजर रहे हैं। गांवों की हकीकत बयां कर रही हैं कि गर्मी के दिनों में पानी के लिए किस तरह त्राहि- त्राहि मचती है और ग्रामीण झिरिया और नालों पर प्यास बुझाने के लिए निर्भर रहते हैं। आज भी कई गांव ऐसे हैं जहां बारिश के वक्त पहुंचना मुश्किल है। इतना ही नहीं यात्रा के अनुभवों के किस्सों को भी फेसबुक में बता रही हैं।

अमृता सिंह नर्मदा यात्रा के दौरान आदिवासी समाज से काफी जुड़ गई हैं। सोशल मीडिया फेसबुक पर आदिवासी महिलाओं से जुड़े कई पोस्ट साझा किया है। जिसमें अमृता ने कहा कि आदिवासी समाज प्रेम के तारों को जोर से पकड़ रखा है।

कई जगहों में आदिवासी के साथ नृत्य में दिग्विजय और अमृता जमकर थिरकते नजर आ रहे हैं। अमृता ने साझा किया है कि इतर, गोंड, भील, भिलाला, कोरकू जनजातियां विशेष सांस्कृतिक रिवाजों के साथ देश
की वृहद पहचान में शामिल हो रही हैं। आदिवासी इलाकों में कहीं-कहीं शिक्षा का घोर अभाव है। बहुसंख्य आदिवासी आबादी एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में काम के लिए पलायन कर रही है। झाबुआ, अलीराजपुर और नंदुरबार के गरीब आदिवासी गुजरात में जगह जगह मजदूरी करते मिले। खेती के सीजन में 50 फीसदी आदिवासी गांव खाली हो जाते हैं।

Interesting stories of Narmada Parikrma Sharing in social media

इन कमियों को फेसबुक में किया है उजागर
नैनबड़ा से पद्यबड़ा में कई गांव ऐसे मिले, जहां सिर्फ बिजली पोल खड़े हैं लेकिन ट्रांसमिशन के लिए तार ही नहीं हैं। 26 से ज्यादा बिजली के पोल ऐसे नजर आए।
जबलपुर बड़पुरा मार्ग में नर्मदा यात्रा के दौरान कुछ किसान मिले। कई ऐसे हैं जो खेती और जमीन के पट्टा से वंचित हैं।
बेलथारी के नजदीक कठई में 1999 का सड़क बनाने का आदेश था। अब सड़क बन रही है। कई स्कूलों में ताला लटका हुआ है।
निसरपुर गांव हर दिन अपनी बर्बादी का इंतज़ार कर रहा है। सरदार सरोवर डैम बनने से इस गांव को डूब क्षेत्र घोषित किया जा चुका है। प्रस्तावित ऊँचाई 142 मीटर की गई तो इस गांव का अस्तित्व भी शायद नहीं बचेगा। सरकार पुनर्वास के लिए गांव से बाहर पंद्रह सौ एकड़ ज़मीन पर पुनर्वास कॉलोनी बना रही है। 60 किसान भूमिहीन हो गए।
नर्मदा किनारे राह भटक गए। और सुरासामल पहुंच गए। जहां किसानों ने बताया कि गुजरात संदेश में पढ़ा था कि सरकार कपास में 500 रुपये बोनस सब्सिडी देगी, लेकिन नहीं मिला।

12 गांवों की 500 महिलाएं डायन प्रथा का शिकार
सोशल मीडिया में अमृता ने नर्मदा यात्रा के दौरान राजगढ़ और शाजापुर के 12 गांवों की कुरीतियों को उजागर किया है। अमृता के अनुसार स्थानीय पाटीदार समाज ने, कभी किसी पीढ़ी में एक महिला को डायन घोषित कर दिया था। फिर उससे पैदा हुई बच्ची भी डायन हुई। बच्ची से पैदा हुई लड़कियां भी डायन ही कहलाती गईं। आज आलम ये है कि राजगढ़ और शाजापुर के 12 गाँवों में करीबन 500 महिलाएं डायन प्रथा की शिकार हैं। घर के लोग इनके हाथ का बनाया खाना नहीं खाते, शुभ कार्यों से दूर रखते हैं।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो