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हड्डियों से चिपक गया था मांस, धंस गईं थी आंखें, कुपोषण से सांसें भी साथ छोड़ गईं…

locationशाहडोलPublished: Dec 16, 2020 01:29:53 pm

Submitted by:

shubham singh

– दो माह तक दर्द झेलती रही, नहीं लगी भनक, मंत्री का दौरा प्रस्तावित था, तब सर्वे कराने पर मिली बालिका- कुपोषण और दगना के बाद जिंदगी से जंग हार गई दो माह की आरती- मंत्री के दौरे से पहले जब मैदानी अधिकारी पहुंचा, तब तक बिगड़ चुकी थी स्थित्रि

irresponsibility: malnutrition death in shahdol madhya pradesh

malnutrition death

शहडोल. जन्म के बाद कुपोषण का दंश झेल रही दो माह की आदिवासी बच्ची अंतत: जिंदगी से जंग हार गई। कुपोषण के चलते मांस पूरी तरह हड्डियों से चिपक गया था। आंखें भीतर तक धंस गईं थी। दो माह की उम्र में वजन सिर्फ डेढ़ किलो था। स्वास्थ्य मंत्री के दौरे से पहले सर्वे करते हुए मैदानी अमला कुपोषित बालिका के घर जब तक पहुंचा, उसके पहले ही हालत बिगड़ चुकी थी। बालिका को जिला अस्पताल शहडोल के पीआइसीयू में भर्ती कराया गया था। जहां पर इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। जानकारी के अनुसार, गोहपारू के देवदहा निवासी नानबाई ने 10 अक्टूबर को एक बालिका को जन्म दिया था। बालिका की हालत शुरू से नाजुक थी। वजन काफी कम था और हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी लेकिन मैदानी अमले को भनक नहीं लगी। बाद में आरबीएसके टीम से डॉ प्रियंका मेश्रराम गांव पहुंचकर बालिका को इलाज के लिए जिला अस्पताल में भर्ती कराया था। जहां पर इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।
मंत्री का दौरा प्रस्तावित था, इसलिए गांव में शुरू किया था सर्वे
आरती दो माह तक कुपोषण का दंश झेलती रही। परिजन इलाज के लिए झाडफ़ूंक भी कराते रहे लेकिन महिला बाल विकास का अमला इलाज कराने पूरी तरह फेल रहा। शहडोल अस्पताल में लगातार बच्चों की मौत के बाद गोहपारू के देवदहा में स्वास्थ्य मंत्री का दौरा प्रस्तावित था। इसके पहले ही अधिकारी सतर्क हो गए थे और गांव में सर्वे शुरू कर दिया था। इस दौरान दो माह की आरती गंभीर अवस्था में सामने आई थी।
इलाज नहीं मिला, ठीक नहीं हुई तो गर्म लोहे से दाग दिया
बालिका की हालत लगातार बिगड़ रही थी लेकिन मैदानी अमला पूरी तरह बेखबर था। सांस लेने में तकलीफ और पेट पर नीली नस दिखने पर बाद में परिजनों ने इलाज के नाम पर बालिका के पेट पर गर्म लोहे से भी दाग दिया था। जिसके बाद और हालत खराब हो गई थी।
लापरवाही: घर में असुरक्षित प्रसव, जन्म से ही हो गई थी कुपोषित
आरती की मौत ने महिला एवं बाल विकास के साथ स्वास्थ्य विभाग के लचर सिस्टम की कलई खोल दी है। जानकारी के अनुसार, महिला का घर पर असुरक्षित तरीके से प्रसव हुआ था। जन्म के साथ ही आरती कुपोषित हो गई थी। दो माह तक कुपोषण का दर्द झेलती रही लेकिन मैदानी अमले ने सुध नहीं ली। सवाल उठता है कि बालिका जन्म से कुपोषित थी तो पहले दिन से ही अस्पताल में क्यों भर्ती नहीं कराया गया।
अधिकारियों की दलील: अस्पताल में नहीं रहना चाहती थी मां
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने दलील दी है कि बालिका की मां अस्पताल नहीं आना चाह रही थी। प्रसव के लिए भी परिजन गोहपारू अस्पताल में भर्ती कराए थे लेकिन प्रसूता घर चली गई थी। हाल ही में बालिका को पीआइसीयू में भर्ती कराया गया था लेकिन बालिका को लेकर मां गांव चली गई थी। दोबारा आरबीएसके की टीम गोहपारू और जिला अस्पताल में भर्ती कराई थी।
कुपोषण की स्थिति: जिंदगी मौत से लड़ रहे संभाग में 25 हजार बच्चे
आदिवासी अंचल में कुपोषण जन्म लेते ही मासूमों को अपने क्रूर पंजे में ले रहा है। गांव-गांव कुपोषण का दंश है। पैदा होने वाले बच्चे अपंग पैदा हो रहे हैं। कई बच्चों का गर्भकाल में सिर ही नहीं बन रहा है। थोड़ा उम्र के आगे बढ़ते ही बच्चे कुपोषित हो जा रहे हैं। संभाग में 25 हजार से ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं। शहडोल में वर्तमान में 16114 बच्चे कुपोषण की चपेट मे हैं। इसमें 14 हजार 308 बच्चे कुपोषित हैं। इसके अलावा गंभीर कुपोषित की श्रेणी में 1806 बच्चे हैं। सबसे ज्यादा बुढ़ार में मध्यम कुपोषित बच्चे हैं। बुढ़ार में मध्यम कुपोषित बच्चों की संख्या 3409 हैं। अनूपपुर में 0 से 5 वर्ष के लगभग 5676 कुपोषित बच्चे पाए गए हैं। इनमें 616 बच्चे अतिकुपोषित हैं। अनूपपुर, जैतहरी, कोतमा और पुष्पराजगढ़ में कुपोषित बच्चों के सर्वेक्षण में 59361 बच्चों को चिह्नित किया। इसी तरह संभाग के उमरिया में 35 सौ से ज्यादा मासूम कुपोषित होने के बाद जिंदगी मौत से जूझ रहे हैं। यहां 3198 बच्चे कुपोषित हैं। इसके अलावा 505 बच्चे अतिकुपोषण की श्रेणी में है।

कुपोषण को लेकर लगातार सर्वे कराया जा रहा है। पांच सौ से ज्यादा बच्चों को एनआरसी में भर्ती कर इलाज भी शुरू कराया गया है। लापरवाही पर पूर्व में दो अधिकारियों को निलंबित भी किया है। इस मामले में किसी स्तर की लापरवाही हुई है तो कार्रवाई की जाएगी।
डॉ सतेन्द्र कुमार सिंह, कलेक्टर
इलाज में किसी भी स्तर की लापरवाही नहीं हुई। प्री मैच्योर थी। जन्म के बाद एनआरसी में भर्ती कराए थे लेकिन मां रखना नहीं चाहती थी। जुड़वा होने की वजह से वजन कम था। मैदानी अमला लगातार फॉलो कर रहा था।
मनोज लारोकर, जिला कार्यक्रम अधिकारी
महिला एवं बाल विकास विभाग, शहडोल
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